डॉ. अंबेडकर की पूजा करना बंद करें… जानें सद्गुरु ने अंबेडकर को लेकर क्यों दिया ऐसा बया

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जग्गी वासुदेव… अपने आप को सद्गुरु, बाबा, योगगुरु और तमाम उपाधियों से अलंकृत करने वाला यह शख्स पिछले कुछ सालों से काफी वायरल है. इसके पास तमाम नेता से लेकर सेलिब्रिटी तक पहुंचते रहते हैं. भारत ही नहीं बल्कि दुनिया के कई हिस्सों में इसकी संस्थाएं हैं. इसके अनुयायी आंख बंद कर इसकी बातों पर भरोसा कर लेते हैं..लेकिन आपको यह नहीं भूलना चाहिए कि यह वही शख्स है, जो डॉ अंबेडकर की पूजा का विरोध करता है…ये वही शख्स है, जिस पर आदिवासियों की जमीन हथियाने के तमाम आरोप लग चुके हैं. ये वही शख्स है, जो अपनी मीठी बातों में लोगों को उलझाकर, उन्हें अपने मोहपाश में बांध लेता है. ये वही शख्स है, जिसके लिए सरकारें सारे नियम कायदे ताक पर रख देती है…इस लेख में हम आपको बताएंगे कि आखिर सद्गुरु जग्गी वासुदेव ने  क्यों डॉ अंबेडकर की पूजा करने का विरोध किया था?

सद्गुरु ने क्यों कहा अम्बेडकर की पूजा बंद करो

रैली फॉर रिवर के नाम पर 800 करोड़ की फंडिंग जुटाने वाला जग्गी वासुदेव, डॉ अंबेडकर के बारे में कहता है कि ‘भारत को यह याद दिलाने की जरूरत है कि अंबेडकर वास्तव में कौन थे। वर्तमान समय में लोग अंबेडकर को केवल दलित प्रतीक के रूप में देखते हैं।‘ उन्होंने कहा कि नेताओं को किसी न किसी पार्टी ने अपने कब्जे में ले लिया है। अगर आप सरदार पटेल के बारे में बात करेंगे तो कांग्रेस कहेगी कि वह तो कांग्रेसी थे, आप उनके बारे में क्यों बात कर रहे हैं। अगर हम अंबेडकर की बात करें तो लोग कहते हैं कि वह दलित थे, आप उनके बारे में क्यों बात कर रहे हैं? जिन लोगों ने इस देश के लिए काम किया है, उनके लिए देशभक्ति की प्रेरणा बनना जरूरी है।’ खासकर अंबेडकर।

सद्गुरु का कहना है कि ‘अंबेडकर ने कभी भी लोकतंत्र को सरकार का एक रूप नहीं माना, बल्कि यह लोगों के प्रति सम्मान और भक्ति दिखाने का एक तरीका है। ये उनके (अंबेडकर) शब्द हैं। अंबेडकर ने सामाजिक लोकतंत्र की बात की थी, राजनीतिक लोकतंत्र की नहीं,’. सद्गुरु के मुताबिक, राजनीतिक लोकतंत्र मौजूद है। कागजों में सब लोग बराबर हैं लेकिन हकीकत में हम सब बराबर नहीं हैं और न ही कोई समाज हर किसी को बराबर लाने में सफल हुआ है। लेकिन सभी को बराबर का दर्जा देना बहुत जरूरी है। भले ही लोगों के बीच समानता न हो, समान अवसर अवश्य होने चाहिए।

सद्गुरु ने कहा कि कानून में सभी लोगों को समान माना गया है लेकिन समाज में अभी भी लोगों के साथ समान व्यवहार नहीं किया जाता है। कई लोग इस मुकाम को हासिल करना चाहते हैं लेकिन ऐसा करने में असफल हो जाते हैं। साथ ही, गैर-आध्यात्मिक प्रक्रिया के बारे में बात करते हुए, सद्गुरु ने कहा कि ‘जब आप अपने भौतिक स्वरूप से पहचाने नहीं जाते हैं तो आपका वंश महत्वपूर्ण नहीं है। वंशवाद को ख़त्म करना होगा तभी समाज में लोकतंत्र आ पायेगा। कई मायनों में हम लोकतांत्रिक व्यवस्था से जागीरदारी चला रहे हैं। जब भी चुनाव होते हैं तो जाति और धर्म एक अहम मुद्दा बन जाता है। क्योंकि हम लोकतांत्रिक तरीकों से जागीरदारी चला रहे हैं।’

वहीं, डॉ अंबेडकर के बारे में बात करते हुए सद्गुरु ने कहा, ‘अंबेडकर का दृष्टिकोण केवल सामाजिक लोकतंत्र का था, राजनीतिक लोकतंत्र का नहीं। हालांकि, कुछ हद तक, यह राजनीतिक लोकतंत्र के कारण है कि सामाजिक लोकतंत्र विकसित नहीं हो रहा है। हालांकि, राजनीतिक लोकतंत्र के माध्यम से हम सामाजिक लोकतंत्र तक पहुंच सकते हैं। लेकिन 70 साल में भी हम इस ओर बहुत धीमी गति से आगे बढ़ रहे हैं। दुर्भाग्यवश, दलितों के पास कानूनी अधिकार तो हैं लेकिन बौद्धिक अधिकार अभी भी उपलब्ध नहीं हैं।’

सद्गुरु ने आगे कहा, अंबेडकर ने अपने जीवन की बागडोर अपने हाथों में ली। वे जिस तरह की पृष्ठभूमि से आये थे। उन्होंने जी प्रतिभा दिखाई वह हर पीढ़ी के लिए प्रेरणा हैं। उन्होंने सामाजिक परिस्थितियों के कारण हार स्वीकार नहीं की। अंबेडकर ने जो काम किया उसका अनुसरण करने के बजाय लोग उनकी पूजा करने लगे। हालांकि, अंबेडकर इस विचार के सख्त खिलाफ थे कि अगर कोई नेता आपके लिए कुछ अच्छा करता है, तो उसे आधा भगवान बना देना गलत है।

सद्गुरु ने इस बात पर जोर दिया कि ‘हमें अंबेडकर की पूजा करने की जरूरत नहीं है बल्कि उनकी तरह अपना जीवन जीने की जरूरत है। अंबेडकर का अनुकरण नहीं बल्कि उनकी पूजा की जा रही है। हमें अंबेडकर के जीवन का अनुकरण करने की जरूरत है। चाहे समाज आपके साथ कुछ भी करे, आप नहीं रुकेंगे, आप अपना जीवन अपने हाथों में लेकर चलेंगे।’

डॉ. अंबेडकर का दृष्टिकोण

ये तो रही जग्गी वासुदेव की बातें जो उसने बाबा साहेब अंबेडकर के लिए कही है लेकिन उसकी इन बातों में भी हमें झोल नजर आता है..या यूं कहें कि ये ऐसी बातें हैं जिन्हें जानकर दलित भाई कहीं न कहीं जग्गी वासुदेव की ओर आकर्षित हो जाएंगे. आपकी जानकारी के लिए बता दें कि जग्गी वासुदेव ने ईशा फाउंडेशन बनाया है तो एक बिजनेस मॉडल के तहत काम करती है. नीलगिरी पहाड़ियों की तराई में 150 एकड़ की हरी भरी भूमि पर ईशा योग केंद्र का हेडक्वार्टर है, जो ईशा फाउंडेशन का ही पार्ट है. यही पर ध्यानलिंग योग मंदिर बनाया गया है, जिसके प्रवेश द्वार पर एक सर्व धर्म स्तंभ है, जिसमें हिन्दू, इस्लाम, ईसाई, जैन, बौद्ध, सिख, ताओ, पारसी, यहूदी और शिन्तो धर्म के प्रतीक चिन्हों को अंकित किया गया है.

ऐसा दावा किया जाता है कि जंगल की जमीन को हथिया कर उस पर इस हेडक्वार्टर की स्थापना हुई है. इसके अलावा जग्गी वासुदेव पर नीलगिरी के तराई क्षेत्र में रहने वाले आदिवासियों के जमीनों को हथियाने का भी आरोप है. इसके खिलाफ कोर्ट में कई पीआईएल दायर किए जा चुके हैं, जिनपर लंबे समय से सुनवाई लंबित है. खबरों की मानें तो एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश डी. हरिपारंथमन ने तो जग्गी वासुदेव के खिलाफ पीएम मोदी के नाम खुला पत्र भी लिखा था..जिसमें उन्होंने सवाल किया था कि जब तमिलनाडु सरकार ने भी जग्गी वासुदेव द्वारा कई जगहों पर अवैध निर्माण और अतिक्रमण की बातों को कबूल किया है तो आज तक एक भी मामले में किसी अतिक्रमण को हटाने का आदेश सरकार द्वारा जारी क्यों नहीं हुआ ? ऐसे तमाम आरोप जग्गी वासुदेव और उसके फाउंडेशन पर लगते रहे हैं. इन पर अपनी पत्नी की हत्या जैसे आरोप भी लगे हैं, जिसकी पुष्टि भीम सेना नहीं करता.

अब बाबा साहेब के बारे में मीठी मीठी बातें करके वह लोगों की नजर में खुद को दलित और आदिवासियों के हितैषी के रुप में प्रोजेक्ट करने की कोशिश कर रहा है..अब ये आप पर निर्भर करता है कि आप ऐसे पाखंडी बाबाओं के चक्कर में मुर्ख बनकर अपना जीवन बिताना चाहते हैं या समझदार होकर आस्था और धार्मिक भावनाओं से ऊपर उठकर सच में बाबा साहेब के सपनों को साकार करना चाहते हैं.

 

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