आरक्षण के मुद्दे पर डॉ अंबेडकर के आगे नतमस्तक हो गए थे सरदार पटेल

Sardar Patel
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देश  की आजादी में और देश को एकजुट करने में  सरदार वल्लभ भाई पटेल के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है…आजाद भारत के पहले उप-प्रधानमंत्री और गृहमंत्री के रूप में उन्होंने देशहित में कई बड़े फैसले लिए..लेकिन बाबा साहेब अंबेडकर द्वारा उठाए गए तमाम मुद्दों पर ये असहमत थे..आरक्षण का मुद्दा भी उन्हीं में से एक था, जिस पर वल्लभभाई पटेल कभी भी बाबा साहेब अंबेडकर से सहमत नहीं हो पाए…आरक्षण को लेकर इन दोनों महापुरूषों के बीच क्या बहस हुई थी…

अंबेडकर दलितों के अधिकारों को सुरक्षित करना चाहते थे

दरअसल, बाबा साहेब अंबेडकर शिक्षा और नौकरियों में आरक्षण की मदद से दलितों के अधिकारों को सुरक्षित करना चाहते थे लेकिन सरदार पटेल आरक्षण को ‘राष्ट्र-विरोधी’ मानते थे। उन्होंने कहा था कि “जो लोग अब अछूत नहीं हैं, उन्हें भूल जाना चाहिए कि वे कभी अछूत थे। हम सभी को एक साथ खड़ा होना होगा।” यहाँ सवाल उठता है कि क्या आज़ादी के इतने सालों बाद भी पटेल की बातों पर भरोसा किया जा सकता है? वहीं, सरदार पटेल सामाजिक न्याय के समर्थक थे लेकिन सामाजिक सुधार के लिए डॉ अंबेडकर जितना आक्रामक दृष्टिकोण नहीं रखते थे। डॉ अंबेडकर जाति व्यवस्था के मुखर आलोचक थे और इसके उन्मूलन की वकालत करते थे, जबकि पटेल मौजूदा सामाजिक ढांचे के भीतर हाशिए पर पड़े समुदायों को एकीकृत करने पर अधिक ध्यान केंद्रित करते थे…

डॉ अंबेडकर संविधान सभा के अध्यक्ष थे लेकिन उनका एक निश्चित लक्ष्य भी था। उन्हें दलितों के हितों की रक्षा करनी थी, जिनका लंबे समय से शोषण हो रहा था, भले ही इसके लिए उन्हें जिद्दी और आक्रामक रणनीति क्यों न अपनानी पड़े। उनका मानना ​​था कि यह दलितों के राजनीतिक और आर्थिक अधिकारों को सुरक्षित करके ही किया जा सकता है, जो कि सरकारी शिक्षा और नौकरियों में आरक्षण के ज़रिए ही किया जा सकता है। इसलिए उन्होंने प्रस्ताव रखा कि सरकार को दलितों और पिछड़े वर्गों के लिए शिक्षा और नौकरियों में एक निश्चित प्रतिशत सीटें आरक्षित करनी चाहिए।

राजनीतिक और आर्थिक सुधार

सरदार पटेल, केएम मुंशी, ठाकुर दास भार्गव और कुछ अन्य उच्च जाति के कांग्रेसी नेताओं ने इसका कड़ा विरोध किया। पटेल ने कहा कि दलित हिंदू धर्म का हिस्सा हैं और उनके लिए एक अलग व्यवस्था उन्हें हमेशा के लिए हिंदुओं से अलग कर देगी। अब कोई इन लोगों से पूछे कि दलितों को हिंदू माना जाता था लेकिन वे व्यवस्था का हिस्सा कब थे? उच्च जातियों ने उन्हें अपना हिस्सा माना और उनके साथ मानवीय व्यवहार कब किया गया? उच्च जातियां आज भी दलितों के साथ वैसा ही व्यवहार करती हैं। हाँ! कुछ मजबूरियों के कारण दलितों की सामाजिक/आर्थिक/राजनीतिक स्थिति में जो बदलाव आया है, वह उच्च जातियों की सोच में बदलाव का नतीजा नहीं है बल्कि शिक्षा के प्रसार का नतीजा है और कुछ नहीं।

जब संविधान निर्माण के दौरान बाबा साहेब द्वारा संविधान में आरक्षण के प्रावधान का पटेल ने विरोध किया तो डॉ. अंबेडकर ने संविधान समिति से अपना इस्तीफा पटेल जी को सौंप दिया, लेकिन सरदार पटेल ने भविष्य को ध्यान में रखते हुए बाबा साहेब का इस्तीफा फाड़ दिया और कहा कि अंबेडकर जी, मैं जिद्दी जरूर हूं लेकिन मूर्ख नहीं हूं… और इस तरह संविधान में एससी/एसटी को नौकरियों में आरक्षण प्रदान करने का रास्ता साफ हुआ था…

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