पारसी समुदाय के लोगों ने डॉ अंबेडकर पर हमला क्यों किया था?

अंबेडकर.
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दलित समाज में पैदा होने और ब्राह्मणवादियों की तमाम यातनाओं को सहते हुए बाबा साहेब डॉ भीमराव अंबेडकर बड़े हुए. छुआछूत का विष समाज में इतना अंदर तक भरा हुआ था कि पढ़ने-लिखने से लेकर खाने-पीने तक में उन्हें समस्याओं  का सामना  करना पड़ा. हालांकि, इन सभी मुश्किलों पर कड़ा प्रहार करते हुए बाबा साहेब आगे बढ़े और अपनी पढ़ाई के बलबूते भारत के सबसे शिक्षित व्यक्ति बनें. गांधी उनसे चिढ़ता था…बाबा साहेब से तर्क करने से कांग्रेसी डरते थे. बाबा साहेब ने अपने जीवनकाल में इतना काम किया, जितना लोग शायद कई जन्मों में नहीं कर पाते…लेकिन एक बात बाबा साहेब को हमेशा खली और वह है पारसियों का हमला…

छुआछूत का विष समाज

यह घटना उस समय की है जब 1916 में कोलंबिया यूनिवर्सिटी में बाबा साहेब की पढ़ाई पूरी हो गई थी. उन्होंने वहां से पीएचडी की डिग्री ली. दूसरी ओर,उन्हें मिलने वाली छात्रवृत्ति का समय भी पूरा हो गया था…जिसके कारण उन्हें वापस लौटना पड़ा. दरअसल, वड़ोदरा के महाराज ने बाबा साहेब को छात्रवृत्ति देने की व्यवस्था की थी…साथ ही एक कॉन्ट्रैक्ट भी हुआ था कि पढ़ाई करने के बाद बाबा साहेब वडोदरा सरकार के लिए काम करेंगे.

ऐसे में बाबा साहेब वडोदरा लौट आए. यहीं से मुश्किलें शुरु हुई. डॉ अंबेडकर लौट तो आए थे लेकिन उनकी जाति के कारण वडोदरा में उन्हें कोई घर नहीं मिल रहा था. वह जहां भी जाते, उन्हें हीन दृष्टि से देखा जाता और घर देने से मना कर दिया जाता. ऐसे में मजबूरी में बाबा साहेब को झूठ बोलना पड़ा और खुद को उच्च जाति का बता कर एक पारसी के घर में एक कमरा उन्होंने किराए पर ले लिया.

कुछ दिनों तक सबकुछ ठीक चला लेकिन जल्द ही पारसियों का यह पता चल गया कि डॉ अंबेडकर उच्च नहीं बल्की नीच जाति के हैं. फिर क्या था पारसियों का एक पूरा झुंड बाबा साहेब के कमरे में पहुंच गया. हाथ में लाठी डंडे लिए पारसियों ने बाबा साहेब को प्रताड़ित करना शुरु कर दिया. एक साथ इतने सारे पारसियों को देखकर और उनके हाव भाव को देखकर बाबा साहेब ने अंदाजा लगा लिया कि इन्हें उनके झूठ के बारे में पता चल गया है.

पारसियों ने किया हमला

अब बाबा साहेब करते भी तो क्या करते. वह कमरे के बाहर निकल आए..पारसी उनसे गाली गलौच करने लगे. यहां तक कि बाबा साहेब को जान से मारने की धमकी तक दी गई. मकान मालिक ने उन्हें घर से निकाल दिया. उन्हें कई रातें अलग अलग जगहों पर बितानी पड़ी थी. इसी के बाद दलितों के हितों की रक्षा के लिए बाबा साहेब ने कमर कस लिया और फिर क्या हुआ वह इतिहास में दर्ज है. हालांकि, इतना सब कुछ कर गुजरने के बाद भी पारसियों के हमले की घटना बाबा साहेब कभी भूल नहीं पाएं.

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