फिल्म इंडस्ट्री में हमेशा से ही कुछ परिवारों का वर्चस्व रहा है…बॉलीवुड से लेकर मॉलीवुड और कॉलीवुड तक…हर इंडस्ट्री में स्थिति कुछ ऐसी ही है…लेकिन इसके बावजूद कई स्टार ऐसे हुए, जिन्होंने तमाम मुश्किलों का सामना करते हुए अपने दम पर अपनी पहचान बनाई और वह कर दिखाया, जो किसी ने सपने में भी नहीं सोचा था…देश के पहले स्टार दलित फिल्ममेकर पा रंजीथ भी उन्हीं में से एक हैं. जो पिछले लंबे समय से अपनी फिल्मों के माध्यम से जातिगत उत्पीड़न और भेदभाव को उजागर कर रहे हैं…हाल ही में उनकी चियान विक्रम स्टारर फिल्म थंगलान रिलीज हुई है, जो जातिगत संघर्ष को दिखाती है…
ये स्टार दलित डायरेक्टर कौन है
वाशिंगटन पोस्ट की खबर के मुताबिक पा रंजीथ की मां अक्सर उनसे अपनी जाति का खुलासा न करने की बात करती थी. लेकिन इसके बावजूद रंजीथ ने उस क्षेत्र में कदम बढ़ाया जिसमें उनके समुदाय से कुछ ही लोग आगे बढ़े थे. उन्होंने अपने काम से दलितों को पहचान देना शुरु किया, कुछ ही वर्षों में रंजीथ ने ऐसी फिल्में बनाई हैं जिसमें दलितों से जुड़े मुद्दे प्रमुखता से उठाए गए हैं.
फिल्म इंडस्ट्री में पा रंजीथ ने जब 2006 में कदम रखा था, तब उनसे कहा गया था कि वे अपने बैकग्राउंड (पृष्ठभूमि) और पहचान के बारे में किसी से कुछ न बोले. इससे भी ज्यादा इस बात पर जोर दिया गया था कि वे यह खुलासा न करें कि वे दलित हैं.
ध्यान देने वाली बात है कि तमिल फिल्म इंडस्ट्री में आने से पहले पा रंजीथ ने फिल्मों में अपने लोगों यानी दलितों को पर्दे पर शराबी, मूर्ख, गुंडे और गांव के बेवकूफों के तौर पर देखा था. लेकिन रंजीथ की फिल्मों में वंचित समाज से आने वाला उनका किरदार हालात का मारा, परास्त और लाचार नहीं दिखता है.
द प्रिंट को दिए गए इंटरव्यू में रंजीथ ने बताया था कि “मैंने फिल्मों को डायरेक्ट करने का निर्णय इसलिए किया था क्योंकि मेरी (दलितों की) जीवनशैली, मेरे लोगों और मेरे स्थान को रीप्रेजेंट नहीं किया जा रहा था.” उन्होंने सवाल करते हुए कहा था कि “आजादी के इतने साल बीत जाने के बाद भी मुख्यधारा में दलितों के लिए कहां जगह है? खासकर कलाओं और सांस्कृतिक आंदोलनों में दलित कहां हैं?”
रंजीथ का जन्म 1982 में चेन्नई के एक कमरे वाले अपार्टमेंट में हुआ था, वह अपार्टमेंट AIADMK के संस्थापक एम.जी. रामचंद्रन की एक योजना के अंतर्गत बनाया गया था. बचपन से ही रंजीथ भेदभाव से जुड़े सवाल करते थे जैसे कि दुकानदार ने छुट्टे उनके हाथ में क्यों नहीं दिया? या फिर उन्हें अलग से पानी क्यों दिया गया?
रंजीथ ने एनिमेशन के क्षेत्र में करियर बनाने के लिए मद्रास फाइन आर्ट्स कॉलेज में एडमिशन लिया था. लेकिन वह अपने बड़े भाई प्रभु से काफी प्रभावित थे, जोकि दलित संगठन से जुड़े वकील थे. प्रभु ने ही रंजीथ को डॉ. अम्बेडकर से रूबरू करवाया था. जब रंजीत कॉलेज में थे तब उन्होंने एक फिल्म चैंबर ज्वॉइन किया था और वहां उन्होंने काफी वैश्विक सिनेमा देखा.
अपने एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया था कि साल 2002 की फिल्म सिटी ऑफ गॉड (City of God) के निर्देशन ने उन्हें काफी प्रभावित किया था. इसके अलावा वो बर्डमैन (2014), फैंड्री (2013), बैटल ऑफ अल्जीयर्स (1966) और पाराशक्ति (1952) से भी प्रभावित रहे हैं.
इंडियन एक्सप्रेस को दिए गए इंटरव्यू में रंजीथ ने कहा था कि कॉलेज के दिनों में मैंने सैंकड़ों फिल्में देखी थीं, उन्हीं में से एक थी निर्माता माजिद मजीदी की ईरानी फिल्म चिल्ड्रेन ऑफ हैवन (1997). यह एक अहम पड़ाव था मेरे जीवन का, मैंने उस फिल्म का सबटाइटल नहीं पढ़ा था क्योंकि मेरी अंग्रेजी काफी खराब थी. लेकिन मुझे अच्छी तरह याद है कि इसे देखकर मैं खूब रो रहा था. यह एक चिंगारी की तरह थी, जिसके बाद मैंने एक निर्देशक की तरह सोचना शुरु किया.
द वायर को दिए गए इंटरव्यू में रंजीथ ने अपने फेवरेट डायरेक्टर के बारे में कहा था कि उन्हें बर्डमैन बनाने वाले एलेजांद्रो गोंजालेज, द रेवेनेंट के अमोरेस पेरोस और इनके अलावा आंद्रेई टारकोवस्की और स्पाइक ली की फिल्में पसंद हैं.
रंजीथ ने साल 2006 में थगपंसमी नामक एक फिल्म में सहायक निर्देशक के रूप में शुरुआत की थी. उन्हें पहला ब्रेक तक मिला था जब उनके दोस्त मणि ने रंजीथ को न्यूकमर प्रोड्यूसर सी.वी कुमार से मिलवाया था. उस समय सी.वी. कुमार एक ट्रैवल एजेंसी के मालिक थे उन्होंने 2012 में रंजीथ की पहली फिल्म अट्टाकथी को प्रोड्यूस किया था.
उनकी फिल्म तब और बड़ा वेंचर बन गई जब तमिल इंडस्ट्री के एक प्रमुख स्टूडियो, स्टूडियो ग्रीन, बोर्ड में शामिल हुआ और फिल्म डिस्ट्रीब्यूशन के राइट्स खरीद लिए. स्टूडियो ग्रीन ने ही उनकी अगली फिल्म मद्रास को प्रोड्यूस किया, जिसके बाद अभिनेता सूर्या ने उनसे कोलैबरेशन के लिए अप्रोच किया था.
फिल्म में दलित कैरेक्टर
द वायर को दिए गए इंटरव्यू में रंजीथ ने कहा था कि जब मैं दलित कैरेक्टर के बारे में लिखता हूं तो सबसे पहले इन कहानियों में खुद को रखता हूं और यह सवाल करता हूं कि समाज में मैं कहां खड़ा हूं? मेरे लिए सबसे बड़े आदर्श बाबासाहेब यानी डॉ भीमराव अम्बेडकर रहे हैं. जब उन्हें लगा कि वे यानी गांधी और कांग्रेस, दलितों के मुद्दों को संबोधित नहीं करते हैं तो बाबासाहेब ने गांधी और कांग्रेस का विरोध किया. मैंने उन्हें प्रेरणा के रूप में देखा है. मुझे हिम्मत अम्बेडकर से मिलती है. अम्बेडकर ब्राह्मणवादी व्यवस्था में बुद्ध के समायोजन की बात करते हैं. उन्होंने यह भी बताया कि किस तरह से गहरे रंग की त्वचा को एक संकेतक बनाया जाता है, कैसे जीवन शैली ने हमें वेदों की कहानियों में खलनायक बना दिया है….
आपको बता दें कि हाल ही में इनकी फिल्म थंगलान सिनेमाघरों में रिलीज हुई है, जो अतीत में दलित और आदिवासियों पर हुए अत्याचार को प्रदर्शित करती है. चियान विक्रम स्टारर इस फिल्म को काफी पसंद किया जा रहा है…फिल्म का कलेक्शन भी 100 करोड़ से पार हो गया है..