भगत सिंह और उनके साथियों की शहादत से हर देशवासी स्वाधीनता के लिए छटपटाने लगा था. 23 साल की उम्र में फांसी पर चढ़ जाने वाले एक नौजवान ने आजादी की ऐसी अलख जगाई, जिसने अंग्रेजी हुकूमत के आसमान में भी सुराख कर दिया. लेकिन क्या आप जानते हैं कि दलितों के मसीहा बाबा साहेब अंबेडकर और पिछड़ों के हक के लिए अपना जीवन खपा देने वाले पेरियार, भगत सिंह को लेकर क्या सोचते थे? अगर नहीं जानते तो हम बताते हैं…
पेरियार का भगत सिंह के प्रति सम्मान
23 मार्च 1931 को ब्रिटिश हुकूमत ने भगत सिंह को फांसी पर लटका दिया था. देश की आजादी के लिए उन्होंने हँसते हँसते अपने प्राणों की आहुति दे दी थी. उनकी फांसी के बाद बाबा साहेब अंबेडकर और ईवी रामासामी पेरियार ने अपने अपने सामाचार पत्रों में फांसी को लेकर अपनी राय रखी थी.
13 अप्रैल 1931 को लिखे अपने सम्पादकीय में अंबेडकर ने भगत सिंह, राजगुरु,और सुखदेव की फांसी को देश के लिए बलिदान के रूप में रेखांकित किया था. अपने सम्पादकीय में उन्होंने यह स्पष्ट किया था कि उनके साथ न्याय नहीं हुआ था बल्कि अन्याय हुआ था.
वो आगे लिखते हैं कि अगर सरकार को यह उम्मीद हो कि इस घटना से ‘अंग्रेजी सरकार बिल्कुल न्यायप्रिय है या न्यायपालिका के आदेश पर हुबहू अमल करती है’ ऐसी समझदारी लोगों के बीच मजबूत होगी और लोग उसका समर्थन करेंगे तो यह सरकार की नादानी है, क्योंकि यह बलिदान ब्रिटिश न्याय देवता की शोहरत को अधिक धवल और पारदर्शी बनाने के इरादे से किया गया है. इस बात पर किसी को भी यकीन नहीं है.
उन्होंने लिखा कि खुद सरकार भी इस समझदारी के आधार पर अपने आप को सन्तुष्ट नहीं कर सकती है. फिर बाकियों को भी इसी न्यायप्रियता के आवरण में वह किस तरह सन्तुष्ट कर सकती है? न्याय देवता की भक्ति के तौर पर नहीं बल्कि विलायत के कन्जर्वेटिव-राजनीतिक रूढिवादी पार्टी और जनमत के डर से इस बलिदान को अंजाम दिया गया है, इस बात को सरकार के साथ दुनिया भी जानती है.
अपने सम्पादकीय की शुरुआत में बाबा साहेब अंबेडकर ने उन आरोपों का जिक्र किया, जिनके तहत इन तीनों को फांसी दी गयी थी. उसके बाद उन्होंने इन तीनों सपूतों की बहादुरी की चर्चा करते हुए लिखा, ‘हमारी जान बख्श दें’ इस तरह की दया की अपील तीनों में से किसी ने भी नहीं की थी. हां,फांसी पर चढाने के बजाय हमें गोलियों से उड़ा दिया जाए ऐसी इच्छा भगत सिंह ने की थी. ऐसी खबरें जरूर आई हैं लेकिन उनकी इस आखिरी इच्छा का भी सम्मान नहीं किया गया.’
अंबेडकर ने अपने लेख में भगत सिंह की फांसी के संदर्भ में भारत और ब्रिटेन में हुई खुली और गुप्त राजनीति की चर्चा की थी, उन्होंने महात्मा गांधी और उस समय के वायसराय लार्ड इर्विन की भूमिकाओं पर भी टिप्पणी की थी. अंबेडकर की राय में गांधी और इरविन भगत सिंह की फांसी की सजा को आजीवन कारावास में बदलने के हिमायती थे. बाबा साहेब के मुताबिक गांधी ने इरविन से इसका वादा भी लिया था.
लेकिन ब्रिटेन की आंतरिक राजनीति और ब्रिटेन की जनता को खुश करने लिए इन तीनों को फांसी दी गई. उन्होंने अपने संपादकीय के अंत में लिखा, ‘लुब्बोलुआब यही है कि जनमत की परवाह किए बगैर, गांधी-इरविन समझौते का क्या होगा, इसकी चिन्ता किए बिना विलायत के रूढ़िवादियों के गुस्से का शिकार होने से अपने आप को बचाने के लिए भगत सिंह की बलि चढ़ायी गई. यह बात अब छिप नहीं सकेगी यह बात सरकार को पक्के तौर पर मान लेनी चाहिए.’
भगत सिंह की फांसी को लेकर बाबा साहेब के यही विचार थे. अब आइए इस मामले पर पेरियार के विचारों को भी जान लेते हैं.
भगत सिंह की फांसी के करीब 5 दिन बाद 29 मार्च 1931 को पेरियार ने अपने समाचार पत्र ‘कुदी-अरासु’ में इस विषय पर ‘भगत सिंह’ शीर्षक से सम्पादकीय लेख लिखा. पेरियार के लेख की मूल भाषा तमिल थी. पेरियार के संपादकीय की शुरुआत ही इस लाइन से थी कि ‘शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति होगा जिसने भगत सिंह के फांसी दिए जाने पर दुःख न प्रकट किया हो. और न ही ऐसा कोई व्यक्ति होगा जिसने उन्हें फांसी के तख्ते तक तक पहुंचाने के लिए सरकार की निंदा न की हो’.
भगत सिंह के बारे में डॉ. आंबेडकर के विचार
उन्होंने अपने संपादकीय में भगत सिंह की फांसी के मुद्दे पर गांधी और ब्रिटिश शासन के बीच खुले और गुप्त संवाद की चर्चा की थी. पेरियार ने इस पूरे संदर्भ में भारतीय जनता की प्रतिक्रिया का जिक्र करते हुए बताया था कि कैसे देश की जनता भगत सिंह की फांसी के लिए गांधी को जिम्मेदार मानते हुए उनके खिलाफ नारे लगा रही थी.
पेरियार ने भगत सिंह को लेकर लिखा,’हम दावे के साथ कह सकते हैं कि वो एक ईमानदार शख्सियत थे. हम इस बात को पूरे समर्थन और विश्वास के साथ कहना चाहेंगे कि भारत को भगत सिंह के आदर्शों की ही आवश्यकता है. जहां तक हम जानते हैं, वे समधर्म (बहुआयामी समानता) और साम्यवाद के आदर्श में विश्वास रखने वाले व्यक्ति थे.’
उन्होंने लिखा,भगत सिंह का आदर्श सबके लिए समता और साम्यवाद के आदर्श की स्थापना थी. भगत सिंह को कोट करते हुए उन्होंने लिखा, ‘हमारी लड़ाई उस समय तक जारी रहेगी, जब तक साम्यवादी दल सत्ता में नहीं आ जाते और लोगों के जीवन स्तर और समाज में जो असमानता है, वो पूरी तरह समाप्त नहीं हो जाती. यह लड़ाई हमारी मौत के साथ समाप्त होने वाली नहीं है. यह प्रत्यक्ष, अप्रत्यक्ष रूप से लगातार चलती रहेगी.’
धर्म, जाति, ईश्वर, असमानता और गरीबी पर भगत सिंह की चर्चा करते हुए पेरियार हमेशा उनके पक्षधर रहते थे. वो उनके द्वारा समता और साम्यवाद हासिल करने के तरीके से पूरी तरह सहमत न होते हुए भी उनके आदर्शों की प्रशंसा करते थे.भगत सिंह के व्यक्तित्व का अपने शब्दों में चित्रण करते हुए पेरियार ने लिखा, ‘भगत सिंह ने उत्कृष्ट, असाधारण और गौरवशाली मौत अपने लिए चुनी थी, जिसे साधारण इंसान आसानी से प्राप्त नहीं कर सकता. इसलिए हम हाथ उठाकर, अपने सभी शब्द-सामर्थ्य के साथ और मन की गहराइयों से उनकी प्रशंसा करते हैं.’