घासीदास बाबा के बारे में
घासीदास बाबा का जन्म 1756 में छत्तीसगढ़ के ग्राम गुहनी (अब छत्तीसगढ़ के कबीरधाम जिले में) हुआ था। वे पंथी धर्म के प्रवर्तक थे, जो धार्मिक एकता और समानता का प्रचार करते थे। उनका जीवन समाज में समानता, धर्मनिरपेक्षता, और हर व्यक्ति को सम्मान देने के लिए समर्पित था। घासीदास बाबा ने जातिवाद, अंधविश्वास और सामाजिक भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाई। उन्होंने लोगों को यह सिखाया कि सभी लोग भगवान के समक्ष समान हैं, और किसी भी व्यक्ति को जाति, धर्म या स्थिति के आधार पर भेदभाव का सामना नहीं करना चाहिए।
गुरु घासीदास एक ऐसे गुरु थे जिन्होंने मूर्तियों की पूजा को वर्जित किया, क्योंकि उनका मानना है कि उच्च वर्ण के लोगों और मूर्ति पूजा में गहरा संबंध है. गुरु घासीदास की प्रमुख रचनाओं में उनके सात वचन सतनाम पंथ के ‘सप्त सिद्धांत’के रूप में जाने जाते हैं. उन्होंने समाज को सत्य और अहिंसा के रास्ते पर चलने का उपदेश दिया. उन्होंने मांस और मदिरा सेवन को समाज में पूरी तरह से बंद करवा दिया था. उनके द्वारा दिये गए उपदेश को जिसने आत्मसात कर जीवन में उतारा उसी समाज को आगे चलकर सतनामी समाज के रूप में जाना जाने लगा.
पंथी धर्म – Ghasidas Birth Anniversary
पंथी धर्म को घासीदास बाबा ने स्थापित किया, जिसमें मुख्यत: सच्चाई, अहिंसा और समानता पर जोर दिया गया। उनका संदेश था:
- “एक ही भगवान है, सभी समान हैं।”
- “दुनिया में कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए, सभी लोग बराबर हैं।”
घासीदास बाबा ने धार्मिक और सामाजिक सुधारों के लिए कई महत्वपूर्ण पहल की। उनका विश्वास था कि लोग केवल ईश्वर के प्रेम और सच्चाई की ओर बढ़कर ही समाज में समरसता और शांति स्थापित कर सकते हैं।
घासीदास बाबा की शिक्षाएँ
- समानता और एकता: उन्होंने हमेशा यह सिखाया कि सभी इंसान समान हैं और समाज में किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं होना चाहिए।
- अंधविश्वास का विरोध: घासीदास बाबा ने अंधविश्वास और अंध धार्मिक प्रथाओं के खिलाफ आवाज उठाई।
- सच्चाई की खोज: उनका जीवन सत्य की खोज और धर्म के प्रति श्रद्धा से भरा हुआ था। वे अपने अनुयायियों को जीवन में सच्चाई और सत्य के मार्ग पर चलने की सलाह देते थे।
Ghasidas Birth Anniversary
18 दिसंबर को घासीदास जयंती (Ghasidas Birth Anniversary) के मौके पर, उनके अनुयायी समाज सुधार और जागरूकता अभियान चलाते हैं। इस दिन विशेष पूजा, सभा और धार्मिक आयोजनों का आयोजन किया जाता है। लोग उनके उपदेशों को याद करते हैं और उनकी शिक्षाओं को अपने जीवन में लागू करने का संकल्प लेते हैं। इस प्रकार, घासीदास बाबा का योगदान छत्तीसगढ़ और भारतीय समाज में महत्वपूर्ण रहा है, और उनकी जयंती सामाजिक और धार्मिक सुधार की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।