History of Buddhism: बुद्ध धर्म का इतिहास एक बहुत ही महत्वपूर्ण और गहरे प्रभाव वाले धार्मिक और दार्शनिक मार्ग का प्रतीक है। यह धर्म सिद्धार्थ गौतम के जीवन और उपदेशों पर आधारित है, जिन्हें “बुद्ध” के नाम से जाना जाता है। यहाँ बुद्ध धर्म के इतिहास को संक्षेप में प्रस्तुत किया गया है.
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कैसे शुरू हुआ बौद्ध धर्म?
देश और दुनिया में अलग-अलग धर्म के लोग रहते हैं. भारत में भी विभिन्न धर्मों के लोग निवास करते हैं. दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा धर्म बौद्ध धर्म माना जाता है. इस धर्म के लोग अधिकतर चीन, कोरिया, जापान, श्रीलंका, भारत आदि देशों में रहते हैं. बौद्ध धर्म की उत्पत्ति ईसाई और इस्लाम धर्म से पहले हुई थी. आइये जानते हैं त्रिपिटक ग्रंथ के अनुसार बौद्ध धर्म का इतिहास और कुछ महत्वपूर्ण बातें.
बौद्ध धर्म एक प्राचीन भारतीय धर्म है. बताया जाता है कि 2600 वर्ष पहले इसकी स्थापना भगवान बुद्ध ने की थी. यह दक्षिण और दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों के महत्वपूर्ण धर्मों में से एक है. धर्म लगभग 563 ईसा पूर्व में शुरू हुआ, जो सिद्धार्थ गौतम की शिक्षाओं, जीवन के अनुभवों पर आधारित है.
बौद्ध धर्म से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें
सिद्धार्थ गौतम का जन्म – बुद्ध धर्म की शुरुआत सिद्धार्थ गौतम से होती है, जो एक राजकुमार थे और बाद में “बुद्ध” के नाम से प्रसिद्ध हुए। उनका जन्म लुम्बिनी (वर्तमान नेपाल) में हुआ था। उनके पिता शुद्धोधन एक क्षत्रिय राजा थे। गौतम ने बहुत ही विलासिता में बचपन बिताया, लेकिन जब वे राजमहल से बाहर निकले और उन्हें वृद्धावस्था, रोग, और मृत्यु का सामना करना पड़ा, तो उनका मन दुखों से ग्रस्त हो गया। यही वह क्षण था जब उन्होंने जीवन के सत्य की खोज करने का संकल्प लिया।
आत्मज्ञान की प्राप्ति (ज्ञान प्राप्ति) – गौतम ने 29 वर्ष की आयु में राजमहल को छोड़ दिया और निर्वाण की खोज में निकल पड़े। उन्होंने विभिन्न साधु और योगियों से शिक्षा ली, लेकिन उन्हें सत्य की प्राप्ति नहीं हुई। अंत में, वे बोधगया में एक पीपल के वृक्ष के नीचे ध्यान करने बैठे और वहां उन्हें बोधि ज्ञान प्राप्त हुआ। इस ज्ञान ने उन्हें “बुद्ध” (जिसका अर्थ है “जागृत” या “बुद्धिमान”) बना दिया।
बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार – History of Buddhism
ज्ञान प्राप्त करने के बाद, बुद्ध ने धम्म चक्कप्पवत्तन सूत्र (पहला उपदेश) दिया, जिसमें उन्होंने दुःख (दुःख का अस्तित्व), दुःख के कारण, दुःख से मुक्ति और मुक्ति के मार्ग (आष्टांगिक मार्ग) के बारे में बताया। बुद्ध का यह उपदेश चार आर्य सत्य और आष्टांगिक मार्ग पर आधारित था।
- बुद्ध के उपदेशों का व्यापक रूप से प्रसार हुआ, और उनके अनुयायी “भिक्षु” या “संघ” के रूप में एकजुट हुए। बौद्ध संघ का गठन हुआ और शास्त्रों की रचना की गई।
- बुद्ध के उपदेशों का प्रमुख केंद्र बन गया राजगृह, सारनाथ, और कुषीनगर। यहाँ उन्होंने कई धर्मोपदेश दिए और कई लोगों को अनुयायी बनाया।
- अशोक सम्राट (3rd Century BCE) के समय बौद्ध धर्म का काफी विस्तार हुआ। अशोक ने बौद्ध धर्म को भारतीय उपमहाद्वीप में और उससे बाहर तक फैलाया। उन्होंने कई स्तूपों और शिलालेखों के माध्यम से धर्म का प्रचार किया।
बुद्ध के उपदेशों को फैलाने के लिए अनेक भिक्षु और उपासक उनके साथ रहे। बुद्ध के जीवनकाल के बाद, उनके शिष्यों ने उनके उपदेशों को फैलाया। बौद्ध धर्म समय के साथ हिनयान, महायान, और वज्रयान जैसी शाखाओं में विभाजित हो गया। हिनयान शाखा ने बौद्ध धर्म के शुद्ध रूप को ही माना, जबकि महायान शाखा में बोधिसत्व की पूजा और अधिक ध्यान आकर्षित किया। वज्रयान शाखा ने तंत्रवादी और योगिक तत्वों को प्रमुख रूप से अपनाया।
बौद्ध धर्म का पतन और पुनर्जीवित होना
बुद्ध के मृत्यु के बाद (कृष्ण द्वितीय शताब्दी ईसा पूर्व), बौद्ध धर्म में कई विचारधाराएँ और सम्प्रदाय उत्पन्न हुए। History of Buddhism
- थेरवाद: यह सम्प्रदाय बुद्ध के उपदेशों के पालन में सख्त और पारंपरिक रहा। इसे “जुनियर स्कूल” भी कहा जाता है।
- महायान: यह बौद्ध धर्म का एक अधिक लचीला और समावेशी रूप था, जो तिब्बत, चीन, कोरिया और जापान में फैला।
- वज्रयान: यह तिब्बत में प्रचलित हुआ और इसमें विशेष रूप से मंत्रों और तंत्रों का उपयोग किया जाता है।
बुद्ध के बाद, बौद्ध धर्म विशेष रूप से भारत में फैलने लगा, लेकिन गुप्त साम्राज्य (4वीं-6वीं सदी) के दौरान हिन्दू धर्म के पुनर्निर्माण के साथ बौद्ध धर्म को कुछ हद तक हाशिए पर डाल दिया गया। 7वीं से 12वीं सदी के दौरान भारत में बौद्ध धर्म का प्रभाव कम होता गया और अंततः बौद्ध मठों को ध्वस्त कर दिया गया। हालांकि, आज बौद्ध धर्म विभिन्न देशों में प्रचलित है। बौद्ध धर्म भारत से बाहर नेपाल, श्रीलंका, थाईलैंड, म्यांमार, कंबोडिया, वियतनाम, जापान, कोरिया, तिब्बत, और मध्य एशिया में फैल गया। बता दें, 19वीं और 20वीं सदी में पश्चिमी देशों में भी बौद्ध धर्म का प्रसार हुआ, और इसे एक शांति और साधना का मार्ग माना गया।
डॉ. भीमराव अंबेडकर का बौद्ध धर्म को अपनाना
भारत में बौद्ध धर्म को पुनर्जीवित करने में डॉ. भीमराव अंबेडकर ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने 1956 में धार्मिक रूप से बौद्ध धर्म को अपनाया और लाखों लोगों को इस धर्म से जोड़ा। उन्होंने इसे भारतीय दलितों और पिछड़े वर्गों के लिए सामाजिक और धार्मिक मुक्ति का एक माध्यम माना। बाबा साहब ने बौद्ध धर्म को ही इसलिए चुना क्योंकि उनका मानना था कि यह धर्म प्रज्ञा और करुणा प्रदान करता है. साथ ही समता का संदेश देता है. इनकी बदौलत इंसान एक अच्छा और सम्मानजनक जीवन जी सकता है. प्रज्ञा यानी अंधविश्वास के खिलाफ समझदारी, करुणा यानी दुखियों और पीड़ितों के प्रति संवेदना और समता यानी जात-पात, धर्म, लिंग, ऊंच-नीच से दूर मनुष्य की बराबरी से इंसानी जीवन विकसित होता है. धर्म बदलने के बाद उन्होंने कहा था कि उन्होंने धर्म परिवर्तन नहीं किया है, बल्कि धर्म जनित दासता से छुटकारा पाया है. 14 अप्रैल 1891 को जन्मे बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर ने केवल 65 वर्ष की अवस्था में 06 दिसंबर 1956 को इस दुनिया को अलविदा कह दिया था
वर्तमान समय में बौद्ध धर्म – History of Buddhism
आज बौद्ध धर्म विश्व के कई हिस्सों में प्रचलित है, और इसके अनुयायी विभिन्न देशों में हैं। भारत में, बौद्ध धर्म ने एक नई दिशा ली है, विशेष रूप से डॉ. अंबेडकर के अनुयायियों के माध्यम से। दुनिया भर में बौद्ध धर्म के अलग-अलग रूपों के अनुयायी, जैसे कि थेरवाडा, महायान, और वज्रयान के अनुयायी हैं। History of Buddhism
बौद्ध धर्म की शुरुआत सिद्धार्थ गौतम के ज्ञान प्राप्ति से होती है और यह दुनिया भर में एक गहरे प्रभाव के साथ फैल गया है। बुद्ध ने जीवन के दुखों से मुक्ति पाने के लिए एक स्पष्ट और व्यावहारिक मार्ग बताया, जो आज भी लाखों लोगों के जीवन को प्रेरित करता है।
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