Balotra Dalit Murder Case: बालोतरा में दलित युवक की दिनदहाड़े हत्या के बाद सड़कों पर बवाल मच गया है। यह घटना 10 दिसंबर 2024 को हुई, जब एक दलित युवक की चाकू मारकर हत्या कर दी गई। हत्या की वजह अभी पूरी तरह से स्पष्ट नहीं हुई है, लेकिन इसने समुदाय में गहरा आक्रोश पैदा कर दिया है।
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चाकू मारकर हत्या
यह घटना अत्यंत दुःखद एवं चिंताजनक है। दलित युवक की हत्या से क्षेत्र में तनाव एवं आक्रोश व्याप्त है, जो पूरी तरह अस्वीकार्य है। आरोपियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई एवं मुआवजे की मांग को लेकर प्रदर्शनकारियों का प्रदर्शन उनकी पीड़ा एवं न्याय की तलाश का प्रतीक है। दरअसल, बाड़मेर से सटे बालोतरा जिला मुख्यालय पर तीन दिन पहले दलित युवक की दिनदहाड़े चाकू घोंपकर हत्या के बाद वहां बवाल बढ़ता जा रहा है। मारे गए युवक का शव अभी भी मोर्चरी में रखा हुआ है। मृतक के परिजनों एवं समाज के लोगों ने मुआवजे एवं आरोपियों की गिरफ्तारी की मांग को लेकर शव लेने से इनकार कर दिया है।.
इस हिंसक घटना से पूरे इलाके में तनाव पैदा हो गया है और पुलिस ने सुरक्षा व्यवस्था बढ़ा दी है। बालोतरा पुलिस अधीक्षक गोपाल सिंह भाटी ने बताया कि असाड़ा निवासी विश्ना राम मेघवाल तीन दिन पहले नेहरू कॉलोनी में लाइट डेकोरेशन हटाने गया था। इसी दौरान उसका हर्षदान चारण से सड़क पर वाहन पार्क करने को लेकर विवाद हो गया था। बाद में जब विवाद बढ़ा तो हर्षदान चारण ने विशनाराम पर चाकू से वार कर उसे गंभीर रूप से घायल कर दिया। विशनाराम को तुरंत इलाज के लिए जोधपुर ले जाया गया, लेकिन रास्ते में ही उसकी मौत हो गई।
बालोतरा परिजन बैठे धरने पर
दरअसल, बालोतरा जिले में मंगलवार को दिनदहाड़े गाड़ी हटाने को लेकर हुए विवाद के चलते आरोपियों ने विशनाराम की चाकू घोंपकर हत्या कर दी. इस घटना के बाद मृतक के परिजन और समाज के लोग नाहटा अस्पताल की मोर्चरी के सामने विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. एएसपी गोपाल सिंह के अनुसार, मंगलवार को शहर में विशनाराम पर धारदार हथियार से हमला किया गया और इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई. उन्होंने बताया कि प्रथम दृष्टया आरोपी की पहचान कर ली गई है. पुलिस की ओर से गठित टीमें आरोपी की तलाश कर रही हैं. स्थानीय प्रशासन मामले की जांच कर रहा है और आरोपी की गिरफ्तारी के प्रयास किए जा रहे हैं. इस घटना के बाद समाज के विभिन्न वर्गों में रोष और असंतोष फैल गया है.
दलित, आदिवासी और पिछड़ों पर बढ़े अत्याचार
दलितों, जो कभी अस्पृश्यता के शिकार थे, आज भी कई स्थानों पर भेदभाव और अत्याचार का सामना करते हैं। विशेष रूप से ग्रामीण इलाकों में, जहां जातिवाद की समस्या अधिक गंभीर है, दलितों को सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक रूप से पिछड़ा हुआ माना जाता है। इन पर बढ़ते अत्याचारों में शारीरिक हिंसा, बलात्कार, हत्या, उत्पीड़न और सामूहिक हमले शामिल हैं। वही आदिवासी समुदाय भी लंबे समय से भेदभाव और अत्याचारों का सामना कर रहे हैं। ये समुदाय अक्सर जंगलों, पहाड़ों और अन्य दूरदराज क्षेत्रों में निवास करते हैं, जहां उनके अधिकारों का उल्लंघन किया जाता है।
इसके अलवा भारतीय समाज में पिछड़े वर्ग (OBCs) को भी कई तरह के भेदभाव का सामना करना पड़ता है, खासकर शिक्षा और रोजगार में हालांकि, इन वर्गों के लिए आरक्षण जैसी नीतियाँ हैं, फिर भी कई जगहों पर इनके खिलाफ भेदभाव और अत्याचार होते हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, दलितों और आदिवासियों पर अत्याचार की घटनाओं में वृद्धि हो रही है। उदाहरण के लिए, राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़े बताते हैं कि इन समुदायों के खिलाफ अपराधों की संख्या बढ़ी है, खासकर महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराध के मामले ज्यादा हैं।
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यह घटना उन समस्याओं को फिर से उजागर करती है जिनका सामना दलित समुदाय करता है, खासकर जब बात हिंसा और भेदभाव की हो।