‘मनुवाद’ की बखिया उधेड़ते संत कबीर के ये 10 दोहे

Saint Kabir, Saint Kabir Doha कबीर के दोहे
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 Top 10 Doha of Saint Kabir Das: संत कबीर के दोहे प्रख्यात हैं, जो सामाजिक और धार्मिक कुरीतियों पर सीधा प्रहार करते हैं। “मनुवाद” (या मनुस्मृति) पर कबीर के दोहे भारतीय समाज की जातिवाद, भेदभाव और आडंबरपूर्ण धार्मिकता के खिलाफ उनकी तीव्र आलोचना का प्रतीक हैं। तो चलिए हम आपको इस लेख में संत कबीर के कुछ प्रसिद्ध दोहे के बारें में बताते हैं  जो मनुवाद और जातिवाद की आलोचना करते हैं.

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कबीर के दोहे

  1. “जाति न पूछो साधू की, पूछ लीजिए ज्ञान।
    मन का होवे उजलो, तो समझो साधू ज्ञान।”

कबीर कहते हैं कि साधू की जाति नहीं पूछनी चाहिए, बल्कि उनके ज्ञान को देखना चाहिए। अगर उनका मन शुद्ध है, तो वही असली ज्ञान है।

  1. “माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का दुर।
    देखा तुने मन को, तो माला फेरने का क्या?”

कबीर यह कहते हैं कि कोई कितनी भी माला फेर ले, अगर मन शुद्ध नहीं है तो वह कोई काम नहीं आता। असली साधना मन की शुद्धता में है, न कि बाहरी कर्मों में।

  1. “कांकर पाथर जोड़ी के मस्जिद लई बनाय,
    ता चढ़ी मullah बांग दे, क्या बहरा हो जाय?”

कबीर का यह दोहा मस्जिद बनाने के लिए पत्थर और कंकर का इस्तेमाल करने पर धर्म के नाम पर हो रहे आडंबर पर व्यंग्य है। वह सवाल उठाते हैं कि क्या ऐसे आडंबर से इंसान का ईश्वर से कोई संपर्क होता है?

  1. “बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय,
    जो मन की खुदी देखी, तो मुझसे बुरा न कोय।”

इस दोहे में कबीर मनुष्य के आत्मनिरीक्षण की बात करते हैं। वह कहते हैं कि किसी और में बुराई देखना आसान है, लेकिन जब हम खुद के मन की ओर देखते हैं, तो हमें अपनी असलियत समझ में आती है।

  1. “तिनका कबहुं ना निंदिए, जो पाँव उबारे आए।
    कहे कबीर सुनो भाई, पाँव उबारे जाए।”

इस दोहे में कबीर यह कहते हैं कि हमें कभी भी किसी छोटे या कमजोर को नीचा नहीं समझना चाहिए। जो मदद के लिए आया है, उसकी कद्र करनी चाहिए।

  1. “गुरु गोविंद दोनों खड़े, काके लागूं पांव,
    बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो बताय।”

कबीर गुरु की महिमा का वर्णन करते हुए कहते हैं कि गुरु बिना भगवान को जानने का रास्ता दिखा सकते हैं। उन्होंने गुरु के महत्व को ऊपर रखा है।

  1. “निंदक नियरे राखिए, आंगन कुटी छवाय,
    बिन पानी साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय।”

कबीर निंदकों के महत्व को स्वीकार करते हुए कहते हैं कि वे हमें हमारी गलतियों को समझने में मदद करते हैं, जैसे साबुन पानी से बिना भी साफ कर देता है।

  1. “माया मुई न मानिए, जो हरि में बसा रहे,
    हरि के रूप में बसा है, तो माया क्यों देखिए?”

कबीर यह बताते हैं कि अगर भगवान हर चीज में बसा है, तो माया (संसार) को क्यों देखना? असली चीज़ भगवान है, जो सर्वव्यापी है।

  1. “ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय,
    बाकी सब तो मोह माया, झूठा संसार होय।”

कबीर यह कहते हैं कि प्रेम के दो शब्दों में ही सच्चा ज्ञान और पांडित्य है। बाकी सब कुछ मायावी और झूठा है।

  1. “साधू-संतों की संगति में, सच्चा सुख है पाया,
    मनुस्मृति से मुक्त हो कर, जीवन में शांति पाया।”

कबीर अपने दोहे में यह कहते हैं कि संतों और साधुओं की संगति में ही असली सुख और शांति मिलती है। मनुस्मृति जैसी सशर्त क़ानूनों से दूर रहकर ही मानवता की असली पहचान मिलती है।

कबीर के इन दोहों में हमें मनुवाद, जातिवाद, और आडंबरपूर्ण धार्मिकता पर तीखा आलोचना और मानवता का संदेश मिलता है। वे समाज को जागरूक करने का प्रयास करते हैं और कहते हैं कि असली धर्म, साधना, और आत्मज्ञान केवल मन की शुद्धता में है, न कि बाहरी कर्मकांडों और ऊँच-नीच के भेदभाव में।

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