डॉ. भीमराव आंबेडकर का शिक्षा के क्षेत्र में अपार योगदान रहा है। उन्होंने भारतीय समाज में शिक्षा के महत्व को समझा और समाज के हर वर्ग को शिक्षा देने का प्रयास किया, विशेष रूप से उन समुदायों को जो पारंपरिक रूप से उपेक्षित थे।
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डॉ. आंबेडकर ने शिक्षा को समाज सुधार का एक महत्वपूर्ण माध्यम माना। उन्होंने हमेशा यह माना कि यदि समाज में बदलाव लाना है, तो शिक्षा का प्रसार करना अत्यंत आवश्यक है।
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आंबेडकर ने भारतीय संविधान के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसमें शिक्षा के अधिकार को प्रमुख स्थान दिया गया। संविधान के अनुच्छेद 21-A के तहत, हर बच्चे को नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार दिया गया।
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डॉ. आंबेडकर ने 1945 में "महाड" में "बुद्धिजीवियों की संस्था" स्थापित की, जिससे शिक्षा और जागरूकता के प्रसार के लिए महत्वपूर्ण काम हुआ।
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इसके अलावा, उन्होंने भारतीय समाज में शिक्षा की जरूरतों को पूरा करने के लिए कई स्कूलों और कॉलेजों की स्थापना की।
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डॉ. आंबेडकर ने शिक्षा को एक उपकरण के रूप में देखा, जो सामाजिक समानता की दिशा में एक कदम है। वे मानते थे कि जब तक समाज के हर वर्ग को समान शिक्षा का अवसर नहीं मिलेगा, तब तक समाज में असमानताएँ बनी रहेंगी।
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उनका यह संघर्ष यह दर्शाता है कि शिक्षा के माध्यम से किसी भी असमानता को खत्म किया जा सकता है।