अंबेडकर विवाद के बीच अखिलेश यादव का नया ‘पैंतरा’, जानिए क्या कह रहे हैं पूर्व मुख्यमंत्री?

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UP Politics: हाल में हुए अंबेडकर विवाद के बाद देश में सियासी घमशान चालू हो गया है। जिसके बाद कई  पार्टियों ने मोर्चा खोला है, वही अब उत्तरप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, समाजवादी पार्टी (सपा) के अध्यक्ष, ने हाल ही में एक नया राजनीतिक रणनीति अपनाई है, जिसमें वह दलितों को अपने पक्ष में लाने के लिए सक्रिय हो गए हैं। इसके पीछे उनका उद्देश्य भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के वोटबैंक में सेंधमारी करना है, जो मुख्य रूप से दलित समुदाय पर निर्भर करते हैं।

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जानें क्या है पूरा मामला ?

लोकसभा चुनाव में पीडीए फॉर्मूले से मिली जीत से गदगद समाजवादी पार्टी की आने वाले समय में राजनीतिक स्टाइल बदली हुई दिखाई देने वाली है. पार्टी इस रणनीति पर जल्द ही अमलीजामा पहनाएगी. सपा PDA कि हर जाति के महापुरुषों को भी चर्चा में लाएगी. दलितों वोटर्स को लुभाने के लिए मास्टरस्ट्रोक चला है. संविधान और आंबेडकर का मुद्दा पहले से पार्टी जोरशोर से उठा रही है. अखिलेश यादव का यह कदम सपा के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि दलितों को अपनी ओर खींचने से वह यूपी की राजनीति में बीजेपी और बसपा से मुकाबला कर सकते हैं, जो दोनों दल अक्सर इस समुदाय के वोटों पर जोर देते हैं। अखिलेश यादव ने कुछ प्रमुख योजनाओं और घोषणाओं के माध्यम से दलितों के बीच अपनी स्थिति मजबूत करने की कोशिश की है, जैसे कि उनके कल्याण के लिए विशेष योजनाओं का निर्माण और अन्य सामाजिक लाभ देना।

इसके साथ ही, वह दलित नेताओं और उनके संगठनों को भी पार्टी में शामिल करने की योजना बना रहे हैं ताकि उनकी राजनीतिक स्थिति को और सुदृढ़ किया जा सके। सपा इस समुदाय में अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है, और यह देखा जा रहा है कि यह रणनीति बीजेपी और बसपा दोनों के लिए एक चुनौती बन सकती है। यह राजनीतिक बदलाव और रणनीतियाँ यूपी में आगामी चुनावों के लिए अहम साबित हो सकती हैं।

दलित वोटरों पर नजरें

समाजवादी पार्टी (सपा) की नजरें दलित वोटरों पर इस समय केंद्रित हैं क्योंकि पार्टी आगामी विधानसभा चुनावों में मजबूत पकड़ बनाने के लिए दलित समुदाय को अपने पक्ष में करने की कोशिश कर रही है। दलित समुदाय उत्तर प्रदेश सहित देश के विभिन्न हिस्सों में एक महत्वपूर्ण और प्रभावशाली वोट बैंक के रूप में पहचाना जाता है, और सपा जानती है कि इस समुदाय का समर्थन उसे चुनावों में सफलता दिला सकता है। सपा ने इस समुदाय को साधने के लिए विभिन्न योजनाओं और नीतियों का प्रस्ताव किया है, जैसे कि शिक्षा, रोजगार, सामाजिक सुरक्षा और अन्य सरकारी योजनाओं में दलितों के लिए विशेष प्राथमिकता। पार्टी का प्रयास है कि वह दलितों को यह भरोसा दिला सके कि उनकी भलाई के लिए सपा के पास ठोस नीतियां हैं।

सपा के नेता और प्रमुख अखिलेश यादव इस समूह के बीच अपनी उपस्थिति बढ़ाने के लिए निरंतर कार्यक्रमों का आयोजन कर रहे हैं, साथ ही साथ पार्टी के पारंपरिक सहयोगियों, जैसे कि पार्टी के मुस्लिम और यादव वोट बैंक के साथ गठबंधन को भी मजबूत करने की कोशिश कर रहे हैं। सपा की नजरें दलित वोटरों पर हैं। बसपा के खिसकते जनधार में बड़ी सेंधमारी के साथ बीजेपी के वोटबैंक में सेंध लगाना चाहती है। लोकसभा चुनाव में पीडीए नैरेटिव असरदार साबित हुआ है। सपा के 8 दलित चेहरे जीतकर लोकसभा पहुंचे हैं। इनमें से कई ऐसी रहीं जो बीजेपी की गढ़ कही जाती थीं। सबसे चर्चित अयोध्या का रिजल्ट रहा जहां बीजेपी की हार ने हर किसी को हैरान किया था. यहां सपा के दलित चेहरे अवधेश प्रसाद जीते थे।

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सपा ने किया पीडीए चर्चा का आयोजन

सपा प्रमुख संविधान को लेकर बीजेपी सरकार पर लगातार हमला बोलते हैं। बीते दिन सपा मुख्यालय पर भी उन्होंने बीजेपी पर तीखे सियासी तीर चलाए. उनका कहना है कि बीजेपी और उसके सहयोगी संगठन बाबा साहब का संविधान बदलना चाहते हैं। बीजेपी जितनी ताकतवर होगी, उतना ही संविधान पर वह हमला करेगी। देश की अखंडता के लिए आंबेडकर के बताए रास्ते पर चलना होगा. आगे कहा कि संविधान पीडीए की ताकत है। सपा इसको बचाने के लिए लड़ाई लड़ रही है। सपा ने 26 दिसंबर यानी आज से सेक्टरवार पीडीए चर्चा आयोजन का दांव चला है. जिसमें लोगों को संविधान को बचाने की शपथ दिलाई जाएगी और बाबा साहब के विचारों को पहुंचाया जाएगा। एक महीने का यह प्रोग्राम 25 जनवरी यानी गणतंत्र दिवस के एक दिन पहले तक चलेगा। इसमें पार्टी कार्यकर्ता शिरकत करेंगे। जहाँ सामाजिक न्याय, आरक्षण, बेरोजगारी, महंगाई, जातीय जनगणना और स्थानीय मुद्दों पर चर्चा होगी।

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