“रिदम ऑफ दमाम” फिल्म: सिद्धी समुदाय की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक गाथा

Rhythm of DAMMAM, FLIM
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Rhythm of DAMMAM:  “रिदम ऑफ दमाम” (2024) एक संवेदनशील और गहन फिल्म है जो भारत में सिद्धी समुदाय के इतिहास और सांस्कृतिक पहचान पर प्रकाश डालती है। यह फिल्म 29वें इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल ऑफ केरला (IFFK) में “इंटरनेशनल कॉम्पिटिशन” श्रेणी में प्रदर्शित की गई थी। यह आयोजन 13 से 20 दिसंबर तक तिरुवनंतपुरम में आयोजित हुआ था। सिद्धी समुदाय का ऐतिहासिक सफर और उनकी सांस्कृतिक धरोहर इस फिल्म का केंद्रीय विषय था।

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सिद्धी समुदाय: भारत में अफ्रीकी वंशज

सिद्दी समुदाय को 7वीं शताब्दी में अरब व्यापारी भारत लेकर आए थे। बाद में पुर्तगालियों और अंग्रेजों ने भी उन्हें गुलाम बना लिया। सिद्दी लोग बंटू समुदाय के वंशज हैं, जो दक्षिण-पूर्वी अफ्रीका से ताल्लुक रखते हैं। भारत में सिद्दी लोगों की आबादी करीब 50,000 है। वे मुख्य रूप से कर्नाटक, गुजरात, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश के तटीय इलाकों में रहते हैं। गुजरात के जाम्बूर और सिरवान जैसे गांवों में उनकी आबादी ज्यादा है, जबकि कर्नाटक में उन्हें अनुसूचित जनजाति के तौर पर मान्यता प्राप्त है।

“रिदम ऑफ दमाम” की कहानी 12 साल के जयाराम सिद्धी के इर्द-गिर्द घूमती है। जयाराम अपने मृत दादा की आत्मा से प्रेतबाधित है। परिवार उसकी हालत सुधारने के लिए आदिवासी अनुष्ठानों और दमाम संगीत का सहारा लेता है। फिल्म में यह दिखाया गया है कि कैसे जयाराम अपने पूर्वजों के दर्दनाक इतिहास से रूबरू होता है और उनकी गुलामी की त्रासदी को समझता है।

कलाकार और निर्देशन

फिल्म में सिद्धी समुदाय के गैर-कलाकारों को शामिल किया गया है। प्रमुख कलाकारों में चिनमया सिद्धी, प्रशांत सिद्धी, गिरिजा सिद्धी, नागराज सिद्धी, और मोहन सिद्धी शामिल हैं।
फिल्म के निर्देशक जयान चेरियन हैं, जो केरल से हैं। उन्होंने सिटी कॉलेज, न्यूयॉर्क से फिल्म निर्माण में मास्टर डिग्री (MFA) और हंटर कॉलेज से क्रिएटिव राइटिंग और फिल्म में स्नातक किया है।
चेरियन की पिछली फिल्मों में “पापीलियो बुद्धा” (2013) और “का बॉडीस्केप्स” (2016) शामिल हैं, जो अंतरराष्ट्रीय मंचों पर प्रदर्शित की गई हैं।

सिद्धी समुदाय की सांस्कृतिक पहचान

सिद्धी समुदाय की सांस्कृतिक धरोहर लगभग 300 साल पुरानी है। उनका नृत्य और संगीत, विशेष रूप से सिद्धी धमाल, उनकी पहचान का अभिन्न हिस्सा है। दमाम संगीत और पारंपरिक नृत्य उनके सामुदायिक जीवन को दर्शाते हैं। इनके पारंपरिक परिधान हिंदू और मुस्लिम संस्कृति का मिश्रण हैं।

फिल्म न केवल सिद्धी समुदाय के इतिहास को सामने लाती है, बल्कि यह उन आवाज़ों को मंच देती है जो अक्सर अनसुनी रह जाती हैं। यह फिल्म दर्शकों को इतिहास के अंधेरे पन्नों से जोड़ने और समाज के हाशिए पर खड़े समुदायों को समझने का अवसर देती है।

सिद्धी समुदाय का योगदान

सिद्धी समुदाय ने भारत की सांस्कृतिक विविधता को समृद्ध किया है। 1980 के दशक में भारतीय खेल प्राधिकरण (SAI) ने उनके लिए विशेष खेल कार्यक्रम शुरू किए। कर्नाटक के शंकरम बुदना सिद्धी राज्यसभा सदस्य बनने वाले पहले सिद्धी बने। इतिहास में सबसे प्रसिद्ध सिद्धी शासक मलिक अंबर थे, जिन्होंने 16वीं सदी में अपनी सैन्य रणनीतियों और कुशल नेतृत्व से ख्याति अर्जित की।

फिल्म का महत्व – “रिदम ऑफ दमाम” न केवल सिद्धी समुदाय की कहानी को जीवंत बनाती है, बल्कि यह दर्शकों को उनके दर्द, संघर्ष, और संस्कृति को समझने का अवसर देती है। इस फिल्म का प्रीमियर पहले 55वें भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (गोवा) में हुआ था, जहां इसे दर्शकों और समीक्षकों से खूब सराहना मिली।

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