डॉ भीमराव अंबेडकर और महात्मा गांधी के बीच की पहली मुलाकात, जिसने बदल दिया था देश का ‘नजरिया’

Ambedkar vs Gandhi Details
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Ambedkar vs Gandhi Details : महात्मा गांधी और बाबा साहेब अंबेडकर के बीच रिश्ते कभी सामान्य नहीं रहे. जब मिले..उनके बीच तल्खी ही दिखी. गांधी के दिखावे को लेकर बाबासाहेब ने कई बार टिप्पणी की थी. दलितों को लेकर गांधी के सोच का भी उन्होंने कभी समर्थन नहीं किया था. गांधी भी तमाम मौकों पर बाबासाहेब के कट्टर विरोधी बने रहे. कई बार तो बाबा साहेब के विरोध में गांधी अनशन तक करते दिखे. इस लेख में आज हम आपको गांधी और बाबा साहेब अंबेडकर की पहली मुलाकात के बारे में बताएंगे.

गांधी और अंबेडकर संवाद – Ambedkar vs Gandhi Details

तारीख थी 14 अगस्त 1931 की…इसी दिन बाबासाहेब और गांधी के बीच पहली मुलाकात हुई थी. खुद गांधी ने एक पत्र लिखकर बाबा साहेब को आमंत्रित किया था. ऐसा कहा जाता है कि गांधी की बातें इतनी आत्मीयता भरी होती थी कि विरोधी भी उनसे मिलकर उनके कायल हो जाते थे लेकिन अंबेडकर को लिखे पत्र में गांधी की भाषा थोड़ी रुखी थी. इसके बावजूद बाबा साहेब उनसे मिलने पहुंच गए. जब बाबा साहेब उनसे मिलने गए तो गांधी के मुंह से पहला ही वाक्य निकला…तो डॉक्टर, आपको इसके बारे में क्या कहना है? यहां ‘इसके’ से गांधी का मतलब दलितों की समस्याओं से था.

महात्मा गांधी के बेरुखेपन भरे शब्द और उनकी दमकती आवाज का जवाब बाबा साहेब ने भी अपने अंदाज में दिया. उन्होंने हल्के तंज के साथ कहा, ‘आपने यहां मुझे आपकी अपनी बात सुनने के लिए बुलाया था. कृपा करके वह कहिए जो आपको कहना है. या आप चाहें तो मुझसे कोई सवाल पूछें और फिर मैं उसका जवाब दूं.’ Ambedkar vs Gandhi Details

बाबा साहेब की बोलचाल की ये भाषा सुनकर गांधी थोड़े सहज हुए. उन्होंने कहा, ‘मुझे पता लगा है कि आपको मेरे और कांग्रेस के खिलाफ कुछ शिकायते हैं. लेकिन मैं आपको बताऊं कि अपने स्कूल के दिनों से ही मैं अछूतों की समस्या के बारे में सोचता रहा हूं. तब तो आपका जन्म भी नहीं हुआ था. आपको शायद यह भी मालूम होगा कि इसे कांग्रेस के कार्यक्रम में शामिल कराने के लिए मुझे कितनी कोशिश करनी पड़ी….और यह सचमुच आश्चर्य की बात है कि आप जैसे लोग मेरा और कांग्रेस का विरोध करते हैं. अपना रुख जाहिर करने के लिए खुलकर बोलिए.’

गांधी की इस टिप्पणी के जवाब में बाबा साहेब ने जो बात कही, उससे गांधी और अंबेडकर के बीच के कड़वाहट को साफ देखा जा सकता है. बाबा साहेब ने गांधी को जवाब देते हुए कहा, ‘यह सच है कि जब आपने अछूतों की समस्या के बारे में सोचना शुरू किया तब मेरा जन्म भी नहीं हुआ था. सभी बूढ़े और बुजुर्ग लोग हमेशा अपनी उम्र की दुहाई देते हैं. यह भी सत्य है कि आपके कारण ही कांग्रेस ने इस समस्या को मान्यता दी. लेकिन मैं आपसे कहूंगा कि कांग्रेस ने इस समस्या को औपचारिक मान्यता देने के अलावा कुछ भी नहीं किया. आप कहते हैं कि कांग्रेस ने अछूतों के उत्थान पर बीस लाख रुपये खर्च किए. मैं कहता हूं कि ये सब बेकार गए. इतने में मैं अपने लोगों का नजरिया बदलकर रख देता. लेकिन इसके लिए आपको मुझसे बहुत पहले मिलना चाहिए था.’

गांधी कभी समाजसुधारक नहीं थे

Ambedkar vs Gandhi Details – ऐसा कहा जाता है कि इस संवाद के बाद माहौल काफी देर तक तनावपूर्ण बना रहा था. इसके बाद 1932 में जब अंग्रेजी हुकूमत ने दलितों को एक अलग निर्वाचन का अधिकार और साथ ही 2 वोटों का अधिकार दिया. दलितों को मिले 2 वोट के अधिकार का मतलब था कि अपने 1 वोट से वो अपना प्रतिनिधि चुन सकते थे और दूसरे से वो सामान्य वर्ग के किसी प्रतिनिधि को चुन सकते थे. गांधी…जो शुरु से ही दलितों के उत्थान के पक्षधर थे…वो दलितों के मिले इस अधिकार के खिलाफ हो गए. उनका ये मानना था कि इससे दलितों और सवर्णों के बीच खाई बढ़ेगी, जिसका असर पूरे हिंदू समाज पर पड़ेगा. इसी के चलते गांधी ने यरवदा जेल में आमरण अनशन शुरू कर दिया.

गांधी यह भूल गए कि दलितों और शोषित तबकों की लड़ाई के लिए अंबेडकर ने 1928 से ही इसकी लड़ाई शुरु की थी, जिसके बाद अंग्रेज 1932 में दलितों को यह अधिकार देने पर राजी हुए थे. लेकिन जैसे ही गांधी का अनशन शुरु हुआ, देश भर में बाबा साहेब के पुतले फूंके जाने लगे…दलितों की बस्तियां जलाई गई, जिसके बाद अंबेडकर को झुकना पड़ा था. इसी का परिणाम था पूना पैक्ट.

अपनी पहली मुलाकात के बाद गांधी और अंबेडकर की दूसरी मुलाकात यरवादा जेल में हुई और पूना पैक्ट तय हुआ. इसके बाद विवशता में दलितों के अलग निर्वाचन क्षेत्र और दो वोट के अधिकार को वापस ले लिया गया. बाबा साहेब के मन में गांधी की छवि अब पूरी तरह से स्पष्ट हो चुकी थी. गांधी दलितों के कितने बड़े हितैषी थे..इसका भांडा फूट चुका था. साल 1955 में अंबेडकर ने बीबीसी को दिए इंटरव्यू में यह साफ़ कहा कि ‘गांधी जी कभी एक समाज सुधारक नहीं थे वो बिलकुल रूढ़िवादी हिन्दू थे. उन्होंने ने एक पॉलिटिशियन की तरह काम किया है इसलिए मैं उन्हें महात्मा कहने से भी इनकार करता हूं.’

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