Dalit massacre in Mainpuri: उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद जिले के साधुपुर गांव में 1981 में हुए दलित हत्याकांड के 42 साल बाद, 2023 में जिला न्यायालय ने इस मामले में फैसला सुनाया। इस फैसले में 90 वर्षीय गंगा दयाल को दोषी करार देते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। यह मामला दशकों तक लंबित रहा, और सुनवाई के दौरान अन्य नौ आरोपी काल के गाल में समा गए।
क्या था मामला?
30 दिसंबर 1981 की शाम, फिरोजाबाद के शिकोहाबाद थाना क्षेत्र के साधुपुर गांव में उच्च जाति के एक राशन दुकान मालिक के खिलाफ शिकायत करने पर दलित समुदाय के 10 लोगों की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। हमलावरों ने अपने साथियों के साथ मिलकर घरों में खाना बना रहे दलित परिवारों पर अंधाधुंध गोलियां चलाईं। यह घटना प्रदेश और देशभर में सनसनीखेज बनी, जिसके बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह और प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने गांव का दौरा किया था।
मामले की कानूनी प्रक्रिया और देरी का कारण-हत्या का आरोप लगने के बाद इस मामले की सुनवाई मैनपुरी जिले में शुरू हुई थी क्योंकि उस समय शिकोहाबाद मैनपुरी जिले का हिस्सा था। 1989 में फिरोजाबाद जिले का गठन होने के बाद, शिकोहाबाद फिरोजाबाद का हिस्सा बना, लेकिन मुकदमा मैनपुरी कोर्ट में ही चलता रहा।
2021 में इस मामले को फिरोजाबाद की अदालत में स्थानांतरित किया गया, लेकिन तब तक 10 में से 9 आरोपी मौत का शिकार हो चुके थे। 2023 में जिला न्यायाधीश हरवीर सिंह ने बचे हुए एकमात्र आरोपी गंगा दयाल को हत्या (आईपीसी की धारा 302) के तहत दोषी ठहराया और आजीवन कारावास की सजा सुनाई। साथ ही, उसे ₹50,000 का जुर्माना भी भरने का आदेश दिया गया।
इसके अलावा, हत्या के प्रयास (आईपीसी की धारा 307) के तहत भी उसे 10 साल की जेल और ₹5,000 के जुर्माने की सजा सुनाई गई। इस फैसले के साथ ही, एक लंबे संघर्ष और न्यायिक प्रक्रिया का अंत हुआ।
पीड़ित परिवारों की प्रतिक्रिया
42 साल बाद आए इस फैसले पर पीड़ित परिवारों ने मिश्रित प्रतिक्रिया व्यक्त की। जीवित बचे लोगों में से एक, प्रेमवती (80), ने कहा, “मुख्य आरोपी की मौत हो चुकी है, लेकिन कम से कम अब हमें थोड़ा न्याय मिला है। हमारी पीड़ा को कोई नहीं समझ सकता।”
परिजनों ने सरकार और न्यायपालिका पर इस देरी के लिए भी सवाल उठाए। उनका कहना था कि न्याय मिलने में काफी देरी हुई और सरकार द्वारा वादा किए गए पुनर्वास और सहायता भी पूरी तरह से नहीं दी गई।
सामाजिक और राजनीतिक प्रभाव- यह मामला दशकों तक चर्चा में बना रहा। विपक्षी नेताओं ने इस हत्याकांड के खिलाफ आवाज उठाई थी। पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह और अटल बिहारी वाजपेयी ने पीड़ितों के समर्थन में पदयात्रा की थी।
सरकार ने पीड़ित परिवारों को शिकोहाबाद नगर में दुकानें आवंटित की थीं, लेकिन उन पर दबंगों ने कब्जा कर लिया। ग्रामीणों ने शिकायत की, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई।
न्यायपालिका की भूमिका और न्याय में देरी का मुद्दा
अभियोजन पक्ष ने तर्क दिया कि यह नरसंहार दुर्लभतम मामलों में से एक था और आरोपी को मृत्युदंड मिलना चाहिए था। हालांकि, बचाव पक्ष ने आरोपी की उम्र को देखते हुए सहानुभूति की मांग की, जिससे उसे आजीवन कारावास की सजा दी गई।
इस फैसले ने एक बार फिर न्यायपालिका में प्रक्रियागत देरी और धीमी जांच पर सवाल उठाए हैं। 42 साल का लंबा समय बीत जाने के बाद न्याय की उम्मीद में बैठे परिवारों को राहत तो मिली, लेकिन यह भी दिखा कि हमारे न्यायिक तंत्र को तेजी से काम करने की जरूरत है।
फिरोजाबाद के साधुपुर गांव में 1981 में हुए दलित हत्याकांड में 42 साल बाद 2023 में न्याय मिला। गंगा दयाल को दोषी करार देते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई गई। हालांकि, न्याय मिलने में हुई देरी से पीड़ित परिवार अब भी असंतुष्ट हैं। यह घटना एक बार फिर इस बात को उजागर करती है कि न्याय समय पर मिले, यह लोकतंत्र और मानवाधिकारों की रक्षा के लिए बेहद आवश्यक है।