Supreme Court: तमिलनाडू चर्च में जातिगत भेदभाव, दलित ईसाइयो ने लगाई न्याय की गुहार

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Supreme Court Tamilnadu: हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु के कुंभकोणम कैथोलिक डायोसीज के कोट्टापलायम पैरिश में दलित ईसाइयों द्वारा दायर एक याचिका पर नोटिस जारी किया है। इस याचिका में दलित ईसाइयों ने आरोप लगाया है कि चर्च के भीतर जातिगत भेदभाव की समस्याएँ विद्यमान हैं। तो चलिए आपको इस लेख में पूरे मामले के बारे में बताते है।

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याचिका में क्या कहा गया है?

समाज में जातिगत भेदभाव पुराने समय से ही चल रहा है। जो आज भी कई स्थानों में देखने मिल जाता है। सर्वोच्च न्यायालय ने हाल ही में तमिलनाडु के कुंभकोणम कैथोलिक डायोसीज़ के कोट्टापलायम पैरिश से संबंधित दलित कैथोलिक ईसाई समुदाय के सदस्यों द्वारा दायर एक विशेष अनुमति याचिका पर नोटिस जारी किया, जिसमें चर्च में प्रमुख कैथोलिक ईसाइयों द्वारा “अस्पृश्यता” और जाति-आधारित भेदभाव का आरोप लगाया गया था।

याचिका में कहा गया है कि दलित ईसाइयों के साथ चर्च में अछूतों जैसा व्यवहार किया जाता है। उन्हें चर्च के कार्यक्रमों में समान रूप से भाग लेने की अनुमति नहीं है। उन्हें चर्च के प्रशासन में भी शामिल नहीं किया जाता है। दलित ईसाइयों का कहना है कि उन्हें अपने मृतकों को दफनाने के लिए बड़े कब्रिस्तान का इस्तेमाल करने की अनुमति दी जानी चाहिए। इसके अलावा, यह भी कहा गया है कि उन्हें अपने प्रियजनों के शवों को मुख्य पैरिश चर्च में लाने और अन्य समूहों की तरह अंतिम संस्कार की प्रार्थना करने की अनुमति दी जानी चाहिए।

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सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?

आपको बता दें,  इस मामले कि न्यायमूर्ति पी.एस. नरसिम्हा और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने इस मामले की सुनवाई की। याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु सरकार और चर्च को नोटिस जारी किया है। कोर्ट ने उनसे इस मामले में जवाब मांगा है। आपको बता दें कि यह मामला भारत में धार्मिक संस्थानों में जातिगत भेदभाव के मुद्दे को उजागर करता है। दलित ईसाइयों के अधिकारों के लिए यह एक महत्वपूर्ण लड़ाई है।

तमिलनाडु उच्च न्यायालय द्वारा कैथोलिक समुदाय की एक याचिका को खारिज किए जाने के बाद, शीर्ष अदालत ने इस मामले को अपने पास ले लिया। इस याचिका में, समुदाय ने पैरिश के भीतर जाति-आधारित भेदभाव को समाप्त करने के लिए न्यायालय से हस्तक्षेप की मांग की थी।

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