West Bengal news: आज़ादी के इतने साल बाद भी देश में जातिवाद खत्म नहीं हुआ है। इसका जीता जागता उदाहरण पश्चिम बंगाल में देखने को मिला, जहां गांव के 130 दलित परिवार मंदिर में प्रवेश के लिए कड़ी मशक्कत कर रहे हैं। इन लोगों को मंदिर की सीढ़ियां चड़ने का भी अधिकार नहीं है। हाल ही में मनाई गई शिवरात्रि पर भी परिवार को मंदिर में प्रवेश नहीं करने दिया गया। तो चलिए आपको इस लेख में पूरे मामले की जानकारी के बारे में बताते है।
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जानें क्या है पूरा मामला ?
जातिगत हिंसा कोई नई बात नहीं है बल्कि यह लंबे समय से चली आ रही है। आए दिन देश के कोने-कोने से जातिगत उत्पीड़न की कोई न कोई खबर आती रहती है। वही अब ऐसा ही के मामला पश्चिम बंगाल के पूर्वी बर्धमान जिले से सामने आया है। जहाँ एक गांव में 130 दलित परिवारों को गांव के एकमात्र शिव मंदिर में प्रवेश करने से रोक दिया गया है, क्योंकि वे निचली जाति से ताल्लुक रखते हैं। गिधग्राम गांव के दासपाड़ा इलाके के ये सभी परिवार पारंपरिक रूप से मोची और बुनकर समुदाय से ताल्लुक रखते हैं।
इस घटना ने पूरे राज्य में जातीय हिंसा को लेकर नई बहस छेड़ दी है। वही भेदभाव के शिकार ये लोग अब इस लड़ाई को तार्किक निष्कर्ष तक ले जाने की योजना बना रहे हैं। उनका कहना है कि अगर राज्य प्रशासन इस संकट को हल करने में विफल रहता है, तो वे कानूनी मदद लेंगे। वही यह संविधान के अनुच्छेद 25 का उल्लंघन है। इन परिवारों को अब पुलिस और जिला प्रशासन से उम्मीद है।
जिला प्रशासन से की सुरक्षा मांग
वंचित लोगों ने 24 फरवरी को कटवा के एसडीओ को लिखित अपील देकर शिवरात्रि पर मंदिर में पूजा करने के अपने फैसले की जानकारी दी और प्रशासन से सुरक्षा की मांग की। इसके बाद प्रशासन ने मंदिर में उनके प्रवेश पर प्रतिबंध लगाने की पीढियों से चलती आ रही प्रथा का संज्ञान लिया और कार्रवाई की।
लगातार विरोध के कारण पीड़ित शिवरात्रि पूजा करने में विफल रहे, लेकिन 28 फरवरी को एक प्रशासनिक बैठक में पीड़ित परिवारों को भविष्य में मंदिर में पूजा करने की अनुमति देने के लिए हस्ताक्षरित प्रस्ताव पारित किया गया। इस बैठक में कटवा और मंगलकोट के सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस के विधायक, एसडीओ और एसडीपीओ (कटवा), एक स्थानीय सामुदायिक विकास अधिकारी और मंदिर समिति और दास परिवारों के छह-छह सदस्य शामिल हुए।
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देश में कानून व्यवस्था
इस प्रस्ताव पर हस्ताक्षर करने वाले अकोरी दास ने कहा, “अगले ही दिन पुलिस ने हमें फोन करके शिवरात्रि मेले के कारण मंदिर में न जाने के लिए कहा। उन्होंने कहा कि इससे कानून-व्यवस्था की स्थिति खराब हो सकती है। हमारे पास उनकी बात मानने के अलावा कोई विकल्प नहीं था।” बता दे, जातिवाद को खत्म करने के लिए राज्य सरकार और राजनीतिक दल लगातार वादे करते आए हैं, लेकिन इन वादों की हकीकत ज़मीन पर कुछ और ही नजर आती है। इसके लिए सरकार से परामर्श जरूरी होगा। तभी समाज में कुछ बदलाव आएगा और जातिवाद खत्म होगा।