Rajasthan: पहली दलित महिला बॉडीबिल्डर प्रिया मेघवाल की संघर्ष और सफलता की कहानी

Priya Meghwal, Priya Meghwal Body Builder
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Rajasthan: राजस्थान की सामाजिक और पारंपरिक रूढ़ियों को तोड़ते हुए प्रिया मेघवाल ने बॉडीबिल्डिंग की दुनिया में अपनी एक अलग पहचान बनाई है। बीकानेर की एक साधारण महिला से लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर की बॉडीबिल्डर बनने तक का उनका सफर बेहद प्रेरणादायक है। उन्होंने समाज की बंदिशों को दरकिनार करते हुए न केवल अपनी जगह बनाई बल्कि अन्य महिलाओं के लिए भी एक मिसाल पेश की।

बाल विवाह से बॉडीबिल्डिंग तक का सफर

प्रिया मेघवाल का जन्म राजस्थान के एक पारंपरिक परिवार में हुआ था। उनका जीवन सामान्य नहीं था क्योंकि मात्र आठ साल की उम्र में उनका विवाह कर दिया गया था। शिक्षा के अभाव और पारिवारिक दबाव के बावजूद उन्होंने अपने सपनों को कभी नहीं छोड़ा। उन्होंने पांचवीं तक औपचारिक शिक्षा प्राप्त की और बाद में ओपन यूनिवर्सिटी से स्नातक किया। उनका कहना है कि संघर्षों ने ही उन्हें मजबूत बनाया और आगे बढ़ने की प्रेरणा दी।

बॉडीबिल्डिंग में कदम रखने की प्रेरणा

प्रिया बताती हैं कि उन्होंने पहली बार जब बॉडीबिल्डिंग चैंपियनशिप देखी, तो उन्हें विश्वास नहीं हुआ कि महिलाएं भी इस क्षेत्र में आगे बढ़ सकती हैं। राजस्थान जैसे पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं को घूंघट में रहने की परंपरा थी, लेकिन उन्होंने तय कर लिया कि वह इस रूढ़िवादिता को तोड़ेंगी। जब उन्होंने राजस्थान में बॉडीबिल्डिंग प्रतियोगिता में हिस्सा लिया, तो वहां कोई अन्य महिला प्रतिभागी नहीं थी। यह देख उन्होंने ठान लिया कि वह इस खेल में आगे बढ़ेंगी और राजस्थान की पहली महिला बॉडीबिल्डर बनेंगी।

परिवार और समाज का विरोध

जब उन्होंने बॉडीबिल्डिंग करने का निर्णय लिया, तो उनके परिवार और समाज ने उन्हें कटाक्ष और तानों से घेर लिया। लोग उन्हें ‘मर्दानी’, ‘ट्रांसजेंडर’ और न जाने क्या-क्या कहकर चिढ़ाने लगे। जिम में भी उन्हें कई दिक्कतों का सामना करना पड़ा। साथी जिम ट्रेनीज तक उनके साथ ठीक से बात नहीं करते थे और उन्हें अलग-थलग महसूस कराया जाता था। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और कड़ी मेहनत जारी रखी।

पहली बड़ी जीत और पहचान

उनकी मेहनत रंग लाई जब उन्होंने राजस्थान बॉडीबिल्डिंग चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीता। इसके बाद उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी पहचान बनाई और मिस इंडिया बॉडीबिल्डिंग प्रतियोगिता में टॉप 20 में जगह बनाई। उनकी इस सफलता ने उनके आलोचकों का मुंह बंद कर दिया।

सरकारी सहायता और चुनौतियाँ

जहां भारत में खिलाड़ियों को सरकार द्वारा आर्थिक मदद मिलती है, वहीं प्रिया को कोई सहायता नहीं मिली। उन्होंने अपनी मेहनत और स्वयं की कमाई से ही अपने सपनों को साकार किया। सरकार द्वारा बॉडीबिल्डिंग को मान्यता न दिए जाने के कारण भी उन्हें कई समस्याओं का सामना करना पड़ा। इसके बावजूद उन्होंने अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भाग लिया और भारत का नाम रोशन किया।

राजनीति और समाज सेवा में रुचि – बॉडीबिल्डिंग में सफलता के बाद, प्रिया ने सामाजिक कार्यों में भी योगदान देना शुरू किया। उन्होंने 2023 में हनुमान बेनीवाल की पार्टी से चुनाव प्रचार किया और राजनीतिक गतिविधियों में भाग लिया। उनका कहना है कि राजनीति में समाज का उपयोग होता है, लेकिन जब लोग सत्ता में आ जाते हैं, तो आम जनता को भूल जाते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि अगर समाज चाहे, तो वह राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाने को तैयार हैं।

महिलाओं के अधिकारों के लिए संघर्ष

प्रिया महिलाओं के अधिकारों को लेकर भी बहुत मुखर हैं। वह चाहती हैं कि महिलाएं मानसिक और शारीरिक रूप से सशक्त बनें। उनके अनुसार, महिलाओं को सिर्फ शारीरिक रूप से मजबूत ही नहीं होना चाहिए, बल्कि मानसिक रूप से भी सशक्त होना जरूरी है। वह कहती हैं, “जब एक महिला खुद को मजबूत मानने लगेगी, तो कोई भी उसका शोषण नहीं कर सकता।”

जातिवाद और भेदभाव का सामना

दलित समुदाय से आने वाली प्रिया को जातिवाद और भेदभाव का भी सामना करना पड़ा। कई बार उन्हें यह सुनने को मिला कि वे ‘दलित नहीं लगतीं’, जिससे पता चलता है कि समाज में अभी भी जातिगत भेदभाव कितना गहरा है। उन्होंने कहा कि जातिवाद और छुआछूत जैसी कुप्रथाओं को खत्म करने के लिए समाज को शिक्षित करना बहुत जरूरी है।

बेटी का समर्थन और प्रेरणा

उनकी बेटी उनके जीवन का सबसे मजबूत स्तंभ है। प्रिया बताती हैं कि उनकी बेटी ने हर कदम पर उनका साथ दिया और उनकी डाइट और ट्रेनिंग का पूरा ध्यान रखा। उनकी बेटी ग्राफिक डिजाइनिंग की पढ़ाई कर रही है और अपनी मां के संघर्षों को समझती है। प्रिया कहती हैं, “मेरी बेटी मेरी मां बन गई।”

आगे की राह

आज प्रिया समाज में महिलाओं को जागरूक करने के लिए काम कर रही हैं। वह घर-घर जाकर महिलाओं को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक कर रही हैं। उनका मानना है कि अगर महिलाएं शिक्षित और सशक्त होंगी, तो समाज में बदलाव जरूर आएगा। उनका सपना है कि आने वाली पीढ़ी को वह संघर्ष न करना पड़े, जो उन्होंने किया।

प्रिया मेघवाल की कहानी केवल एक बॉडीबिल्डर बनने की नहीं, बल्कि समाज की रूढ़ियों को तोड़ने और महिलाओं को सशक्त बनाने की कहानी है। उन्होंने यह साबित कर दिया कि अगर हौसले बुलंद हों, तो कोई भी बाधा आपको अपने लक्ष्य को हासिल करने से रोक नहीं सकती। उनकी यात्रा प्रेरणादायक है और समाज को एक नई दिशा देने का काम कर रही है।

 

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