Shravasti News: हाल ही में उत्तर प्रदेश के श्रावस्ती जिले से एक चौकाने वाले मामला सामने आया है यहाँ दलित किशोरी के अपहरण और दुष्कर्म के 15 साल पुराने मामले में अदालत ने अपना फैसला सुनाया है। अदालत ने मामले में मां-बेटे को दोषी मानते हुए प्रत्येक को तीन वर्ष की कैद और 40 हजार रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई है। तो चलिए आपको इस लेख में पूरे मामले के बारे में बताते है।
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तीन साल कैद की सजा
यह मामला दलित किशोरी के अपहरण और बलात्कार से जुड़ा है, जो एक गंभीर अपराध है। अदालत ने इस मामले में मां और बेटे को दोषी पाया और उन्हें तीन साल कैद की सजा सुनाई और 40-40 हजार रुपये जुर्माने की सजा सुनाई है। यह फैसला विशेष न्यायाधीश पॉक्सो कोर्ट ने सुनाया है, जो विशेष रूप से ऐसे मामलों की सुनवाई के लिए गठित है। बता दें, मामला 15 साल पुराना है।
बाद में मां और बेटे को पुलिस हिरासत में बहराइच जिला जेल ले जाया गया। आपको बता दें, यह मामला महिलाओं और दलितों के खिलाफ अपराधों के बारे में समाज में जागरूकता बढ़ाता है। यह ऐसे मामलों में सख्त कार्रवाई करने के लिए न्याय प्रणाली की भूमिका को भी रेखांकित करता है।
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घटना का विवरण
दरअसल यह मामला उत्तर प्रदेश के श्रावस्ती जिले के इकौना के एक गांव का है जहां 2010 में एक दलित लड़की का अपहरण कर लिया गया था। अपहरण के बाद लड़की के साथ दुष्कर्म किया गया और फिर उसे घर पर छोड़ दिया गया। लड़की के पिता की तहरीर पर इकौना पुलिस ने केस दर्ज किया। पुलिस ने बगही गांव के रनियापुर निवासी राम प्रताप और उसकी मां मंजू देवी को आरोपी बनाया। आरोपियों के खिलाफ अपहरण, दुष्कर्म और अन्य संबंधित धाराओं में केस दर्ज किया गया। दोनों आरोपियों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। बाद में मां-बेटे जमानत पर जेल से बाहर आ गए।
दलित महिलाओ के साथ दुष्कर्म
भारत में दलित महिलाओं के साथ बलात्कार एक गंभीर सामाजिक समस्या है। यह समस्या जातिगत भेदभाव और लैंगिक हिंसा का दुखद मिश्रण है। दलित महिलाओं को न केवल उनकी जाति बल्कि उनके लिंग के कारण भी भेदभाव और हिंसा का सामना करना पड़ता है।
इसके लिए जातिगत भेदभाव और लैंगिक असमानता को समाप्त करने के लिए सामाजिक जागरूकता बढ़ाना आति आवश्यक है जिसके लिए कानूनों को प्रभावी ढंग से लागू करना और न्याय प्रणाली में तेजी लाना। बलात्कार पीड़ितों को कानूनी, चिकित्सा और सामाजिक सहायता प्रदान करना। दलित महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए शिक्षा और रोजगार के अवसर प्रदान करना। सामाजिक संगठनों और सरकार को मिलकर काम करना चाहिए ताकि दलित महिलाओं को न्याय मिल सके और वे सुरक्षित महसूस कर सकें।