दलित साहित्य की ‘प्राण प्रतिष्ठा’ करने वाले पहले शख्स

Tukaram Bhaurao Sathe
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दलित साहित्य की रचनाओं ने हमेशा से समाज को नई दिशा देने का काम किया है. दलितों की स्थिति को दुनिया के सामने लाने में दलित साहित्य की भूमिका काफी महत्वपूर्ण रही है. पूरा दलित साहित्य दलित समुदाय के जीवन, अनुभवों और संघर्षों पर केंद्रित है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि किस महान शख्स को दलित साहित्य का संस्थापक माना जाता है? वह कौन थें जिनका साहित्य, परिवर्तन की दिशा में नई प्रेरणा बन गया…वह कौन थे जिनकी रचनाओं ने दलित साहित्य में जान फूंक दी…आज की वीडियो उसी महान शख्स पर..

दलित साहित्य के संस्थापक तुकाराम भाऊराव साठे

1 अगस्त 1920 को महाराष्ट्र के सांगली जिले में तुकाराम भाऊराव साठे का जन्म हुआ था…जिन्हें लोग प्यार से अन्नाभाऊ साठे भी बुलाते हैं. उनके पिता का नाम भाऊराव साठे और माता का नाम वलूबाई साठे था. साठे स्कूल नहीं गए, उन्होंने केवल डेढ़ दिन स्कूल में पढ़ाई की और फिर उच्च जातियों द्वारा भेदभाव के कारण पढ़ाई छोड़ दी. लेकिन डेढ़ दिन स्कूल में पढ़ाई करने वाले इस शख्स ने हमेशा के लिए साहित्य की परिभाषा की बदल कर रख दी. भारत की आज़ादी के बाद उन्हें भारत पर सवर्णों का शासन स्वीकार नहीं था इसलिए 16 अगस्त 1947 को उन्होंने मुंबई में बीस हज़ार लोगों का मार्च निकाला और उस मार्च का नारा था, ये आज़ादी झूठी है, देश की जनता भुखी है. वह पूर्ण रुप से मार्क्सवादी और अंबेडकरवादी विचार से प्रभावित थे. डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर की शिक्षाओं का अनुसरण करते हुए, उन्होंने दलित कार्यों की ओर रुख किया और दलितों और श्रमिकों के जीवन के अनुभवों को प्रकट करने के लिए अपनी कहानियों का उपयोग किया. अपने लेखन से वो दलितों की सामाजिक स्थिति का बखान करने लगे. अन्नाभाऊ साठे अपनी कहानियों से दलितों के कष्टों को समाज के आगे रखने लगे.

1958 में बॉम्बे में हुए पहले दलित साहित्य सम्मेलन में अपने उद्घाटन भाषण में उन्होंने कहा, “पृथ्वी शेषनाग के सिर पर नहीं बल्कि दलितों और श्रमिकों की हथेलियों पर है.” साठे ने मराठी में 35 से ज्यादा उपन्यास लिख डाले. जिनमें से फकीरा, जिला और अन्य कई उपन्यास अभी भी लोगों द्वारा पसंद किए जाते हैं. 1961 में, उन्हें राज्य सरकार का सर्वश्रेष्ठ उपन्यास पुरस्कार मिला. साठे के पास लघु कथाओं के 15 संग्रह थे, जिनका बड़ी संख्या में कई भारतीय भाषाओं और 27 गैर-भारतीय भाषाओं में अनुवाद किया गया. उन्होने अपनी लेखनी से दलित साहित्य को नया रूप प्रदान किया था.

अन्ना भाऊ साठे ने उपन्यास के अलावा नाटक, मराठी पोवाड़ शैली में  12 पटकथाएं और 10 गानें भी लिखे. उन्होंने संयुक्त महाराष्ट्र आंदोलन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. महाराष्ट्र के समग्र गठन और परिवर्तन में इस साहित्य का योगदान महत्वपूर्ण माना जाता है. आज भी बड़ी संख्या में छात्र और विद्वान उनके साहित्य पर शोध करते देखे जाते हैं. उनके द्वारा लिखी गई रचनाओं के माध्यम से दलित साहित्य दुनिया के सामने आया था, उनकी रचनाओं ने दलितों को जीवंत किया था, दलितों  में जोश भरा था…इसलिए उन्हें दलित साहित्य का संस्थापक भी कहा जाता है.

 

 

 

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