बाबा साहेब से बौद्ध धर्म की दीक्षा लेने वाली ‘इकलौती’ महिला

Br Ambedkar
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जब बाबा साहेब ने 1935 में हिंदू धर्म के परित्याग का ऐलान किया तो सिख, इस्लाम से लेकर ईसाई धर्म तक के लोगों ने उनसे अपने धर्म में आने के लिए संपर्क किया था…हिंदू धर्म छोड़ने के बाद उन्होंने करीब सभी धर्मों के बारे में काफी गहरा अध्ययन किया लेकिन किसी भी धर्म में उन्हें नीची जाति के लोगों और महिलाओं के अधिकार नजर नहीं आए..इकलौता बौद्ध धर्म ही उनकी नजर में ऐसा धर्म था, जिसमें लोगों के समान अधिकार की वकालत की गई थी. लोगों को समान अधिकार मिले बाबा साहेब ने जीवन भर इसी की वकालत की थी, ऐसे में उन्होंने अपने समर्थकों के साथ बौद्ध धर्म अपना लिया था…श्रीलंकाई मूल के भिक्षु प्रज्ञानंद ने 7 भिक्षुओं के साथ बाबा साहेब को बौद्ध धर्म की दीक्षा दी थी लेकिन क्या आप जानते हैं कि किस-किस ने बाबा साहेब से बौद्ध धर्म की दीक्षा ली थी? आज की वीडियो इसी मुद्दे पर

बाबा साहेब अंबेडकर से बौद्ध धर्म की दीक्षा लेने वाली महिला

हिंदू धर्म त्यागने और अन्य धर्मों के बारे में अच्छी तरह से जानने और समझने के बाद बाबा साहेब ने बौद्ध धर्म को चुना था. आधिकारिक तौर पर उन्होंने 1956 में बौद्ध धर्म अपनाया लेकिन बौद्ध धर्म की ओर उनका झुकाव 1945 के बाद से ही होने लगा था..संविधान में और भारत के राष्ट्र चिह्नों में बौद्ध धर्म से संबंधित जो भी चिह्न हैं, वे सब बाबा साहेब अंबेडकर की ही देन है. बाबा साहेब के सुझाव पर ही तिरंगे के बीचोंबीच अशोक चक्र लगाया गया. 1950 के दशक में उन्होंने बौद्ध धर्म पर आधारित 2 विश्वविद्यालयों की स्थापना भी की. 1950 में ही वह एक बौद्ध सम्मेलन में भाग लेने के लिए सीलोन गए थे, जिसे अब श्रीलंका के नाम से जाना जाता है.

बाबा साहेब ने अन्य धर्मों में कुरीतियों का विरोध करते हुए कहा था कि “मुझे वह धर्म पसंद है जो स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व सिखाता है. मैं एक समुदाय की प्रगति को उस डिग्री से मापता हूं जो महिलाओं ने हासिल की है; धर्म मनुष्य के लिए है न कि मनुष्य धर्म के लिए.” बाबा साहेब को ये सारी चीजें बौद्ध धर्म में दिखी और यही कारण था कि वो बौद्ध धर्म की ओर खींचे चले जा रहे थे. फिर आया 14 अक्टूबर 1956 का दिन. महाराष्ट्र के नागपुर में बाबा साहेब के समर्थकों की भीड़ उमड़ पड़ी थी. पूरे देश से लाखों की संख्या में लोग नागपुर पहुंचे थे. इसी दिन बाबा साहेब ने अपनी पत्नी सविता माई और अपने 3 लाख 65 हजार समर्थकों के साथ बौद्ध धर्म अपना लिया था. नागपुर की दीक्षाभूमि में हुई इस घटना को इतिहास में धर्म परिवर्तन की सबसे बड़ी घटना के तौर पर याद किया जाता है.

जिस जगह पर बाबा साहेब ने बौद्ध धर्म अपनाया उसे आज भी दीक्षाभूमि के नाम से जाना जाता है. जब उन्होंने बौद्ध धर्म अपनाया तो उनके साथ बच्चों से लेकर बड़े और बूढ़े तक शामिल थे. इसी भीड़ में शामिल थीं 18 साल की लड़की गीता बाई, जो उस वक्त दो बच्चों की मां थीं. दीक्षाभूमि में ही गीता बाई ने भी बौद्ध धर्म अपनाया और आज करीब 67 साल बाद भी वह इस दीक्षा का पालन करती हैं.

नागपुर की दीक्षाभूमि

लल्लनटॉप को दिए इंटरव्यू में गीता बाई बताती हैं कि 1956 के दौरान जब डॉ अंबेडकर ने दीक्षा ली थी तो वह भी उनके शरण में दीक्षा लेने गई थीं. बाबा साहेब ने गीता बाई को प्यार से आशीर्वाद दिया और कहा कि बेटा तुम्हें कुछ नहीं होगा. वह बताती हैं कि उनके साथ कई अन्य अनुयायी भी थे, जो डॉ अंबेडकर की शरण में आकर दीक्षा लेने का इंतजार कर रहे थे. गीता बाई बताती हैं कि नागपुर की दीक्षा भूमि आज जरूर सफल है, यहां सड़कें हैं, डॉ अंबेडकर की याद में स्मारक बने हैं, लेकिन 1956 के दौरान यहां सिर्फ जंगल था.

सभी ने जंगल में ही स्थान बनाकर दीक्षा ले ली. इसके बाद जब बाबा साहेब का निधन हुआ तो उनके एक अनुयायी ने उनकी मूर्ति ली और उसे नागपुर में दीक्षाभूमि में स्थापित कर दिया. गीता बाई बताती है कि जब से उन्होंने अंबेडकर से दीक्षा ली है तब से वह उनके दिखाए रास्ते पर चल रही हैं. वह नागपुर के दीक्षाभूमि में ही रहती हैं और अंबेडकर की तस्वीरें और अंबेडकर से जुड़ी चीजें बेचकर अपना गुजारा कर रही हैं.

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