हिंदू धर्म में शादी का कॉनसेप्ट काफी वृहद है. 4-5 घंटे तक मंडप में बैठकर पंडित के मंत्रों के साथ विवाह संपन्न होते हैं. वहीं, मुस्लिमों की शादी दिन में होती है और कुछ मिनटों में हो जाती है. सिखों की शादी को लेकर भी स्थिति कुछ ऐसी ही है लेकिन क्या आप जानते हैं कि बौद्ध धर्म में शादी कैसे होती है? क्या हिंदू धर्म की तरह ही बौद्ध धर्म में सिंदूर और मंगलसूत्र का कॉनसेप्ट है? क्या बौद्ध धर्म में होने वाली शादियों में भी काफी रीति रिवाज हैं..
बौद्ध धर्म में शादी की प्रक्रिया क्या है
ऐसा माना जाता है कि बौद्ध धर्म का जन्म सनातन धर्म से हुआ है. लेकिन इसके बाद भी बौद्ध धर्म और हिंदू धर्म में शादी के रीति-रिवाज काफी अलग हैं. बौद्ध धर्म में शादी के दौरान सिंदूर, मगंलसूत्र का उपयोग नहीं किया जाता है. बौद्ध धर्म में शादी के लिए सिंदूर की आवश्यकता नहीं होती है.
इसे लेकर बाबासाहेब ने कहा था कि “मुगल आक्रमणकारी भी अपने साथ औरतें लेकर नहीं आए. वह विजेता थे, ऐसी दशा में उन्होंने हिंदु युवतियों को अपनी हवस का शिकार बनाया. आर्य ब्राह्मणों ने तत्कालीन उत्पन्न परिस्थिति का सामना करने के लिए कम उम्र की बालिकाओं के माथे पर विवाह के प्रतीक चिह्न के रूप में सिंदूर को स्थान दिया. इस प्रकार बाल विवाह प्रथा का जन्म हुआ. मुगल किसी विवाहित स्त्री के साथ छेड़खानी नहीं करते थे. उन्हें जब यह पता चल गया कि जिस युवती के माथे पर सिंदूर लगा है, वह विवाहिता है तो वह उसे बिल्कुल स्पर्श नहीं करते थे. आज जब भारत स्वतंत्र हो चुका है हमारे सामने न अंग्रेज हैं न आक्रमणकारी मुगल, फिर इस सिंदूर प्रथा का क्या औचित्य?”
हिंदू धर्म में जहां शादी के समय लाल और पीले रंग को महत्व दिया जाता है. वहीं, बौद्ध धर्म में दूल्हा-दुल्हन लाल रंग नहीं बल्कि सफेद कलर के कपड़े पहनते हैं. इस धर्म में सफेद रंग को परिशुद्ध माना जाता है. इसी वजह से दूल्हा-दुल्हन शादी के लिए सफेद रंग के कपड़े पहनते हैं.
बौद्ध धर्म में शादी के लिए एक टेबल पर गौतम बुद्ध की तस्वीर रखा जाता है और मोमबत्ती जलाई जाती है. उस टेबल के सामने जमीन से ऊपर आसन बिछाया जाता है. इस आसन पर दूल्हा-दुल्हन एक साथ बैठते हैं. इसके बाद बौद्ध गुरू, गौतम बुद्ध को साक्षी मानकर पूजा से विवाह संस्कार की शुरुआत करते हैं. दूल्हा-दुल्हन वेदिका के सामने दीप और अगरबत्ती जलाकर पुष्प अर्पित करते हैं और फिर तीन बार पंचांग प्रणाम करते हैं.
बौद्ध धर्म में शादी के लिए फेरे नहीं
हिंदू धर्म में शादी के समय 7 फेरे लिए जाते हैं लेकिन बौद्ध धर्म में शादी के लिए फेरे नहीं बल्कि प्रतिज्ञाएं ली जाती हैं. वर-वधू जीवनभर साथ रहने का वादा करते हैं. भगवान गौतम बुद्ध को चढ़ाई हुई माला कपल को आशीर्वाद के रूप में दिया जाता है. इसके बाद कपल बड़ों का आशीर्वाद लेते हैं. हिंदू धर्म में शादी और शुभ काम के लिए सफेद रंग को अशुभ माना जाता है लेकिन सफेद रंग अशुभ नहीं होता है, बौद्ध धर्म में वर-वधू को सफेद पोशाक ही पहनाया जाता है. इनके अलावा ईसाइ धर्म में भी शादी के दौरान सफेद रंग पहनना शुभ माना जाता है.
बौद्ध विवाह संस्कार में किसी धम्मचारी द्वारा वर-वधू को त्रिशरण और पंचशील ग्रहण कराया जाता है. इस पद्धति से विवाह में वर-वधू को प्रमाण पत्र भी दिया जाता है. प्रतिज्ञापन के तुरंत बाद वर-वधू एक दूसरे के गले में फूलों की माला डालते हैं और उपस्थित जनसमूह उनपर फूलों की वर्षा करता है. मंगल कामनाओं के साथ बिना किसी ढोंग और कर्मकांड के शादी संपन्न होती है.
बौद्ध धर्म में शादी का समय
बौद्ध धर्म में फिजूलखर्ची मना है. अतः तिथि का निर्धारण ऐसे समय में किया जाता है, जब सामान्यतः लगन का समय नहीं हो. इस प्रकार धन के अपव्यय को रोका जाता है. बहुत अधिक गर्मी अथवा बहुत अधिक ठंड अथवा बरसात के मौसम में विवाह की तैयारी करने में कठिनाई होती है, ऐसे में बौद्ध धर्म के लोग उस मौसम में शादी करते हैं जब न ज्यादा ठंड हो न ज्यादा गर्मी.
वहीं, बौद्ध धर्म के लोग विवाह की तिथि बौद्ध धम्म के त्योहारों के दिन रखने से भी बचते हैं. क्योंकि इन दिनों बौद्ध विहार खाली नहीं होते और साथ ही योग्य भिक्षु भी नहीं मिल पाते. ऐसे में वर-वधू का परिवार आम सहमति से सार्वजनिक अवकाश के दिन विवाह संस्कार की तैयारी करते हैं. इसके अलावा विवाह की तिथि से एक या दो दिन पूर्व भिक्षु संघ को घर पर बुलाकर परित्राण पाठ भी कराया जाता है.
आपको बताते चलें कि बौद्ध परम्परा में कन्यादान नहीं होता है क्योंकि पुत्री कोई वस्तु नहीं है. इसका एक मतलब यह भी है कि दान दी हुई वस्तु पर दानदाता का अधिकार नहीं रह जाता लेकिन बौद्ध धर्म में ऐसा नहीं है कि विवाह के बाद पुत्री से कोई सम्बंध ही न रहे. यही कारण है कि बौद्ध धर्म में इसे समर्पण विधि कहा गया है.