मातृभूमि पर गर्व करने वालों, मेरे इन सवालों के जवाब दो
मैं उस मातृभूमि पर क्यों गर्व करुं, जहां छुआछूत है
मैं उस मातृभूमि पर क्यों गर्व करुं, जहां भेदभाव है
मैं उस मातृभूमि पर क्यों गर्व करुं, जहां दलित उत्पीड़न आम बात है
मैं उस मातृभूमि पर क्यों गर्व करुं, जहां महिलाओं को समान अधिकार नहीं हैं
मैं उस मातृभूमि पर क्यों गर्व करुं, जहां लोगों को आज भी जानवर समझा जाता है…
अपनी मातृभूमि को लेकर बाबा साहेब को भी यही लगता था…मातृभूमि के प्रति उनकी सोच भी ऐसी ही थी.
आज के इस लेख में हम आपको उस किस्से के बारे में बताएंगे, जब डॉ अंबेडकर ने गांधी की बोलती बंद करते हुए कहा था कि मैं मातृभूमि पर गर्व नहीं करता.
‘गांधी खुद नस्लवादी थे’
बाबा साहेब और मोहनदास गांधी में हमेशा से वैचारिक मतभेद थे…गांधी, डॉ अंबेडकर को देखना तक पसंद नहीं करते थे..कई बार उन्होंने बाबा साहेब को अपने पाले में करने की कोशिश भी की थी लेकिन उन्होंने हर बार गांधी को दुत्कार दिया था. मातृभूमि पर गर्व न करने वाला किस्सा डॉ अंबेडकर और मोहनदास गांधी की पहली मुलाकात के समय का है. दरअसल, गांधी ने बाबा साहेब से मिलने की इच्छा जताई थी और इस बावत एक पत्र भी लिखा था.
जिसके बाद बाबा साहेब उनसे मिलने पहुंचे. दोनों की पहली ही मुलाकात सख्त रही. गांधी समाज में वर्ण व्यवस्था को अच्छा मानते थे..जो इसके खिलाफ आवाज उठाता था, गांधी उस पर बिफर पड़ते थे. गांधी दलितों का हितैषी होने का ढोंग करते थे. वह खुद नस्लवादी थे, जिसके तमाम साक्ष्य इतिहास में मौजूद हैं. दूसरी ओर बाबा साहेब, देश में दलितों की जर्जर स्थिति के लिए वर्ण व्यवस्था को जिम्मेदार ठहराते थे. ऐसे में जब ये दोनों मिले होंगे तो माहौल कैसा बना होगा, इसका अंदाजा आप लगा सकते हैं.
1931 में बाबा साहेब और गांधी की पहली मुलाकात हुई. बाबा साहेब से मिलने से पहले तक गांधी को लगता था कि डॉ अंबेडकर दलित नहीं, एक ब्राह्मण हैं, जिनके मन में दलितों के लिए करुणा का भाव है. इस मुलाकात में ही गांधी को पता चला कि बाबा साहेब दलित हैं. गांधी ने कहा कि ‘मैं अपने स्कूल के दिनों से ही अछूतों की समस्याओं पर विचार करता रहा हूं.’ इसे कांग्रेस के मंच का हिस्सा बनाने के लिए मुझे भारी प्रयास करना पड़ा. ‘कांग्रेस ने अछूतों के उत्थान पर 20 लाख से कम खर्च नहीं किया है.’
इस पर बाबा साहेब ने अपनी विशिष्ट स्पष्टता के साथ जवाब दिया कि पैसा बर्बाद हो गया है क्योंकि इससे उनके समुदाय के उत्थान के लिए कोई व्यावहारिक लाभ नहीं मिला है. कांग्रेस अस्पृश्यता को अस्वीकार करने को सदस्यता की शर्त बना सकती थी, जैसे उसने घरेलू खादर पहनने की शर्त रखी थी. लेकिन हिंदुओं की ओर से कोई वास्तविक हृदय परिवर्तन नहीं हुआ था और यही कारण है कि दलित वर्गों को लगा कि वे अपनी दुर्दशा को हल करने के लिए कांग्रेस पर नहीं, बल्कि केवल खुद पर भरोसा कर सकते हैं.
कांग्रेस की आलोचना, मातृभूमि की आलोचना नहीं…
गांधी ने बाबा साहेब को शांत कराने की कोशिश की थी उत्कृष्ट देशभक्त के रुप में संबोधित किया…जिस पर बाबा साहेब ने कहा, ‘गांधीजी, मेरी कोई मातृभूमि नहीं है,कोई भी स्वाभिमानी अछूत इस भूमि पर गर्व नहीं करेगा।’ उन्होंने आगे कहा, ‘मैं इस भूमि को अपनी मातृभूमि और इस धर्म को अपना कैसे कह सकता हूं, जहां हमारे साथ बिल्लियों और कुत्तों से भी बदतर व्यवहार किया जाता है, जहां हमें पीने के लिए पानी नहीं मिलता है? आपको बता दें कि वह समय ऐसा था कि कांग्रेस ही सर्वेसर्वा थी…कांग्रेस के खिलाफ विरोध को, भारत के खिलाफ विरोध समझा जाता था..कांग्रेस की आलोचना को, मातृभूमि की आलोचना समझा जाता था…ऐसे समय में बाबा साहेब ही वो शख्स थे, जो सीधे तौर पर गांधी और कांग्रेस की धुलाई करते रहते थे.