आज़ादी के पहले की फिल्मों में अछूत चरित्र को जिस तरह से दर्शाया गया है, फिल्मों की कहानियों में सामाजिक भेदभाव के इस पक्ष को फिल्मों का विषय बनाया गया.
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सत्यजीत रे की मुंशी प्रेमचंद की कथा से प्रेरित ‘सद्गति’ में दिखाया है कि विवाह का मुहूर्त निकलवाने आए दलित से बामन इतना कठोर परिश्रम कराता है.
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हिमांशु राय की अशोक कुमार एवं देविका रानी अभिनीत ‘अछूत कन्या’ पहली फिल्म थी, जिसमें उच्च जाति का नायक एक अछूत से प्रेम विवाह करता है.
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गोविंद निहलानी की ‘तमस’ दलित आक्रोश की सबसे अधिक प्रभावोत्पादक रचना है. दलित आंदोलन की एक विशेषता यह थी कि इसका कोई नेता नहीं था.
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प्रकाश झा की फिल्म ‘दामुल’ में दलितों को मतदान नहीं करने दिया जाता दलितों पर अत्याचार हमेशा जारी रहा है और सदियों पुरानी दकियानूसी सोच बदल ही नहीं पा रही है.