“मन चंगा तो कठौती में गंगा”, संत रविदास से जुड़ी है इसकी कहानी

Sant Ravidas
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जातिप्रथा की वजह से होने वाले सामाजिक भेदभाव का इतिहास बहुत पुराना है। आज़ादी के बाद संविधान के जरिए इसके उन्मूलन के प्रयास शुरू हुए जो कुछ हद तक दलितों और हाशिए पर रह रहे समुदायों को समान अधिकार के लिए जागरूक करने में कामयाब रहे हैं। हालांकि, देश में कई ऐसे महापुरुष हुए हैं जिन्होंने सदियों पहले ही जाति की इस कुप्रथा के विरूद्ध समाज में जागरूकता फैलाने का काम शुरू कर दिया था…इन्हीं में से एक थे संत रविदास जी महाराज..इनका जन्म जिस जाति में हुआ उसका पारंपरिक व्यवसाय जूते बनाना था, जो उस काल में निम्न जाति का माना जाता था। मन चंगा तो कठौती में गंगा का संदेश रविदास जी महाराज ने ही दिया था…लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस कहावत के पीछे की कहानी क्या है? रविदास जी महाराज ने कब इसका जिक्र किया था.

संत रविदास को रैदास की कहानी

1377 ई. में उत्तर प्रदेश के वाराणसी में जन्मे संत रविदास को रैदास, रोहिदास और रूहिदास के नाम से भी जाना जाता है। समाज से जाति विभेद को दूर करने में संत रविदास का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। वह एक भक्तिकालीन संत और महान समाज सुधारक थे। एक निम्न जाति माने जाने वाले गरीब परिवार में जन्म लेने के बावजूद, संत रविदास ने अपना जीवन मानव अधिकारों और समानता के उपदेश के लिए समर्पित कर दिया।

संत रविदास ने समाज से जातिगत असमानता को खत्म करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। वे भक्ति काल के संत और एक उत्कृष्ट समाज सुधारक थे। उनके जन्मस्थान सीर गोवर्धनपुर में एक विशाल सात मंजिला इमारत है। इसे गुरु रविदास जन्म स्थान के नाम से भी जाना जाता है। वे ईश्वर तक पहुँचने का केवल एक ही तरीका जानते थे और वो है- ‘भक्ति’। ‘मन चंगा तो कठौती में गंगा’ आज भी उनकी सबसे प्रसिद्ध अभिव्यक्तियों में से एक है।

संत शिरोमणि रविदास बचपन से ही दयालु और दानशील थे। वे अपने कार्य के प्रति सदैव समर्पित रहते थे। वे आडंबरों में विश्वास नहीं रखते थे। एक बार उनके पड़ोसी गंगा स्नान के लिए जा रहे थे, तो उन्होंने रविदास से कहा कि वे भी उनके साथ गंगा स्नान के लिए चलें। इस पर रविदास ने कहा, ‘मैं आपके साथ गंगा स्नान के लिए अवश्य चलता, लेकिन मैंने आज शाम तक किसी के लिए जूते बनाने का वचन दिया है। यदि मैं आपके साथ गंगा स्नान के लिए चला गया, तो न केवल मेरा वचन झूठा होगा बल्कि मेरा मन भी जूते बनाने के वचन में लगा रहेगा। जब मेरा मन ही नहीं रहेगा, तो गंगा स्नान का क्या मतलब।

बात को स्पष्ट करते हुए रैदास ने कहा, ‘यदि हमारा मन सच्चा है तो कठौती में भी गंगा विराजमान होगी।” सतगुरु रविदास के संदेश का सार प्रगतिशील आम जनों के बीच ‘मन चंगा तो कठौती में गंगा’ लोक संदेश के रूप में बहुत ही प्रसिद्ध है।

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