जातिवाद, छुआछुत जैसी कुरीतियां भारत में उत्तर वैदिक काल के समय से ही चली आ रही है…ब्राह्मणवाद और मनुवाद का ऐसा बोलबाला था कि नीची जाति के लोग त्रस्त थे. उनके कोई अधिकार नहीं थे..उन्हें कोई पूछने वाला नहीं था. उस अंधकार रूप कूप में भगवान बुद्ध प्रकाश के समान आए और एक ऐसे धर्म की स्थापना की, जिसमें ऊंच नीच जैसी कोई बात ही नहीं थी. जिसमें सभी के अधिकार सामान्य थे. आपने देखा होगा कि हर धर्म में पाप और पुण्य का कॉन्सेप्ट है. सनातन में पाप को पाप बोला जाता है, इस्लाम उसे हराम कहकर संबोधित करते हैं लेकिन क्या आप जानते हैं कि बौद्ध धर्म में पाप की परिभाषा क्या है…
बौद्ध धर्म के 10 पाप
दरअसल, बौद्ध धर्म में पाप की कोई अवधारणा नहीं है. कहा जाता है कि बौद्ध धर्म के लोगों का अच्छा या बुरा काम उनपर स्वचालित प्रभाव डालता है…वह एक ऐसा प्रभाव होता है जो कि ईश्वर की इच्छा से इजाद होता है, इसलिए बौद्ध धर्म के लोगों का मानना होता है कि अच्छे या बुरे कर्मों का प्रभाव उनकी जिंदगी पर पड़ेगा…इससे पाप का कोई लेना देना नहीं है. काफी अधिक लोग यह मानते हैं कि बौद्ध धर्म में पाप नहीं होता. वहीं, कुछ लोग ऐसे भी हैं जो अपने बुरे कर्मों को पाप में गिनते हैं. यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि बौद्ध धर्म में पाप में विभिन्न कर्मों को गिना जाता है.
बौद्ध धर्म के महत्वपूर्ण आदर्शों में से एक “दसपाप” या “दस अधार्मिक कार्यों” की प्रमाणिक मार्गदर्शिका है, जिससे आप अपने मनोबल को शुद्ध करने और आध्यात्मिक प्रगति की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं. चलिए बौद्ध धर्म के दसपाप के बारे में गहराई से समझते हैं.
असत्य बोलना (प्रत्याख्यान): इसका संबंध सिर्फ झूठ बोलने से नहीं है. इसमें किसी भी प्रकार की भ्रान्तिपूर्ण बात, सत्य को मोड़ना या दूसरों को जानबूझकर गुमराह करने की कोशिश भी शामिल है.
चोरी करना (स्तेय): शारीरिक चोरी से परे, इसमें दूसरों की संपत्ति को अनैतिक या न्यायिक रूप से प्राप्त करना शामिल है, चाहे वह भौतिक धन हो या बौद्धिक संपत्ति.
अशुद्ध बोलना (मृषावाद): इसका मतलब है किसी भी प्रकार की गलत जानकारी, चाहे उसका उद्देश्य कुछ भी हो, जिससे दूसरों को भटकाने या भ्रमित करने की संभावना हो, यह पाप की श्रेणी में ही आता है.
संस्कार (मिताचार): आपके जीवन से जुड़ी हर एक चीज इसमें शामिल है..जैसे आपके रहन सहन, चाल ढाल से भी अगर किसी को परेशानी हो रही है तो यह भी पाप की श्रेणी में ही आता है.
कठोर वाक्य (पारुष्य): यह सिर्फ अशुद्ध शब्दों का प्रयोग नहीं है.यह आपत्तिजनक या अवज्ञापूर्ण शब्दों का उपयोग है, जो दूसरों को अवमानित करते हैं या उन्हें भावनात्मक रूप से हानि पहुंचाते हैं.
परिग्रह: यह सिर्फ सामग्री की लालसा नहीं है.इसमें दूसरों के लाभ की लालसा या भले ही यह सामग्री हो, धन हो या संपत्ति, अधिकतम आवश्यकताओं से परे बढ़ जाने की भावना शामिल है. यह भी पाप की श्रेणी में ही आता है.
क्रोध: यह सिर्फ गुस्सा से संबंधित नहीं है. यह गहरी घृणा, द्वेष या आपत्ति है, जो व्यक्ति के विचारों को अंधाधुंध बना देती है और हानिकारक क्रियाएं करने का कारण बनती है.
गलत दृष्टिकोण (मानसिक दोष): यह सिर्फ गलत दृष्टिकोण नहीं है. इसमें भ्रान्तिपूर्ण धारणाओं को धारण करना शामिल है, जिससे व्यक्ति को वास्तविकता और आत्मा के स्वरूप की पहचान में बाधा होती है.
अशांति: इसका अर्थ सिर्फ चिंतित होने से नहीं है. यह अत्यधिक तपस्या या अध्यात्मिक लक्ष्यों की आकांक्षा से उत्पन्न होने वाली बेचैनी है, जो व्यक्ति के शरीर और मानसिक स्वास्थ्य को खतरे में डाल सकती है.