बौद्ध धर्म में कैसे होता है नामकरण ?

Bhagwan Buddha
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नामकरण संस्कार को लेकर हिंदू धर्म में काफी पाखंड है…इसमें पुरोहितों से समय निकलवाया जाता है और तय समय पर यह संस्कार किए जाते हैं. जबकि बौद्ध धर्म में ऐसा बिल्कुल नहीं है. बौद्घ धर्म स्वतंत्रता देता है. नामकरण से लेकर मरण तक के लिए बौद्घ धर्म में चीजें काफी अलग है और यह पाखंड और अंधविश्वास से कोसों दूर है.

 बौद्ध धर्म में नामकरण की पद्धति के बारे में

बौद्ध धर्म में नामकरण संस्कार को काफी धूमधाम और विधिपूर्वक मनाया जाता है. भारतीय बौद्धों में यह संस्कार “संघ–पद्धति” यानी बहुमत से  नामकरण के माध्यम से किया जाता है. जिसके तहत संघ बच्चे का नाम सुझाता है और फिर प्रस्तावित नामों में से जिस नाम को ज्यादा बहुमत प्राप्त होता है, उस नाम को बच्चे का नाम घोषित कर दिया जाता है. आमतौर पर नाम सुझाने का काम संघ द्वारा ही किया जाता है. मगर, बच्चे के माता-पिता, पारिवारिक सदस्य तथा रिश्तेदार भी नाम सुझा सकते है. ऐसा करने पर संघ द्वारा कोई रोक नहीं है.

अन्य धर्मों की तरह बौद्ध धर्म में नामकरण संस्कार का कोई निश्चित समय नहीं है. मां-बाप अपनी सहुलियत के हिसाब से उचित  समय पर बच्चे का नामकरण करवा सकते हैं. काफी हद तक यह संस्कार बच्चे की मां के ऊपर निर्भर करता है. इसके सही समय  का निर्धारण मां और बच्चे के स्वास्थ्य से निर्धारित होता है. जब बच्चे की मां कुछ देर तक बैठने की स्थिति में हो जाए तब नामकरण संस्कार करवाया जा सकता है. इस बात पर गौर करें कि बौद्धों में किसी भी कार्य के लिए कोई शुभ-मूहुर्त, शुभ लग्न नहीं होता है. हर समय उनके लिए शुभ है. इसलिए, पुरोहितों, ब्राह्मणों से नामकरण का समय निकलवाने का पाखंड़ और मूर्खता ना करें.

नामकरण संस्कार केवल कुशल संस्कारक द्वारा ही कराया जाना चाहिए. किसी भी अन्य व्यक्ति द्वारा इस महत्वपूर्ण काम को ना करवाएं. भारतीय बौद्ध यह कार्य दो संस्कारकों द्वारा करवा सकते है….पहला संघ और दूसरा बौद्धाचार्य. अब आइए नामकरण संस्कार या नामकरण की विधि को समझते हैं…

  1. सबसे पहले घर की साफ-सफाई करनी चाहिए. इसके बाद उचित जगह पर घर के सदस्यों, मेहमानों और संघ के बैठने का समुचित प्रबंध करना चाहिए. इसके लिए हॉल या आँगन में दरी-पट्टी बिछा लें.
  2. आयोजक उपासक-उपासिका एवं परिवारजन सफेद पोशाक पेहनकर तैयार हो जाए. यदि सफेद वस्त्र नहीं पहनना चाहते है तो कोई बात नहीं है. आप अपनी पसंदानुसार कोई भी पोशाक पहन सकते है लेकिन, सफेद वस्त्र इसके लिए ज्यादा उचित है.
  3. अब भगवान बुद्ध, बाबासाहेब की प्रतिमा या चित्र को संघ एवं उपस्थित लोगों के सामने ऊंचे स्थान पर स्थापित करें.
  4. इसके बाद फूल, मोमबत्ती और अगरबत्ती जलाएं. फल, मिठाई या अन्य खाद्य सामग्री ना रखें और ना ही प्रतिमा पर भोग चढ़ाने की मूर्खता करें. क्योंकि प्रतिमा कुछ नहीं खाती है. यह आडंबर है.
  5. संस्कारक (भंते या बौद्धाचार्य) प्रतिमा के बाएं तरफ बैठकर एक लोटा पानी में पांच बोधिवृक्ष (पीपल) की पत्तियां रख दें. और सफेद धागे से बना हुआ तिहरा मंगल-सूत्र बनाकर उसका एक छोर लोटे में बांधकर प्रतिमा के पीछे से घुमाकर सामने बैठे बच्चे के माता-पिता तथा परिवारजनों के दोनों हाथों में पकड़ाकर उसके दूसरें छोर को लोटे में डाल दें.
  6. इस कार्य के पूर्ण होने पर वंदना की जाती है.
  7. आमतौर पर वंदना के दौरानत्रिशरण गमनऔर पंचशील ग्रहण करवाया जाता है. साथ में बाबासाहेब की अमरकृति “भगवान बुद्ध और उनका धम्म” तथा “धम्मपद” का पाठ करवाया जाता है. इसके लिए उपस्थित उपासक-उपासिकाओं को उकडू बैठकर यह कार्य करना चाहिए.
  8. इसके बाद नामकरण की प्रक्रिया आरंभ की जाती है और बच्चे के माता-पिता तथा उनकी अन्य संतानों के नामों का परिचय संघ को करवाया जाता है.
  9. अब बच्चे के नामकरण हेतु केवल पांच नाम प्रस्तावित किए जाते है. जिनमें से एक नाम बच्चे के परिवारजनों द्वारा, एक नाम उपासिका संघ (महिलाओं) द्वारा तथा शेष तीन नाम उपासक संघ (पुरुषों) द्वारा प्रस्तावित किए जाते हैं. फिर, इन पांच नामों पर बारी-बारी से संघ के सदस्यों का मत (हाथ-उठवाकर) लिया जाता है. जिस नाम को अधिक बहुमत प्राप्त होता है. उस नाम की घोषणा संस्कारक द्वारा कर दी जाती है.
  10. बहुमत मिलने के बाद भी नाम की उच्चारण सरलता, सुंदरता, सार्थकता तथा बौद्ध संस्कृति की अनुरुपता जांची जाती है. इसके बाद अंतिम नाम की घोषणा करने के बाद बच्चे को आशीर्वाद स्वरुप संस्कारक द्वारा सुत्त बोला जाता है.
  11. इसके बाद उपस्थित लोग बच्चे को उपहार देते है. उपहार पश्चात सभी प्राणियों के कल्याण के लिए “सब सुख गाथा” कहते हुए संस्कार पूरा हो जाता है.

बौद्ध धर्म में नामकरण की प्रक्रिया यही है और यह काफी सरल है.

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