दुनिया के 5 सबसे बड़े धर्मों की बात करें तो इसमें ईसाई धर्म, इस्लाम, सनातन, बौद्ध धर्म और यहूदी धर्म का नाम आता है…इनके अलावा जैन धर्म, सिख धर्म और शिंतो धर्म के लोगों की संख्या भी काफी अधिक है. लेकिन आपको जानकर आश्चर्य होगा कि दुनिया के टॉप 7 में से 4 धर्मों का जन्म भारत की पावन धरा पर हुआ है. सनातन धर्म की उत्पति का कोई सोर्स ही नहीं है…जैन धर्म की उत्पत्ति भारत की धरा पर हुई…सिख धर्म भी भारत में ही अस्तित्व में आया…वहीं बौद्ध धर्म की उत्पत्ति भी भारत की पावन भूमि पर ही हुई. लेकिन क्या आप जानते हैं कि बौद्ध धर्म की उत्पत्ति कैसे हुई? भगवान बुद्ध ने कैसे और क्या किया, जिसके कारण आज दुनिया के कई देशों में बौद्ध धर्म का पताका लहरा रहा है. बौद्ध धर्म के वो कौन से सिद्धांत हैं, जिनके कारण दलित समुदाय के लोग इसकी ओर काफी तेजी से अट्रैक्ट होते है….
बौद्ध धर्म और दलित
बौद्ध धर्म का अस्तित्व गौतम बुद्ध के साथ इस दुनिया में आया. इस्लाम से पहले बौद्ध धर्म की उत्पत्ति हो चुकी थी. भारत की भूमि से यह धर्म प्रचलन में आया लेकिन इस धर्म को प्रचलन में लाने वाले शख्स यानी भगवान बुद्ध का जन्म भारत में हुआ ही नहीं था. दरअसल, गौतम बुद्ध का जन्म नेपाल के लुम्बिनी में हुआ था…उनके पिता का नाम शुद्धोदन और माता का नाम महामाया देवी था. राजा शुद्धोदन शाक्य वंश से संबंध रखते थे…जो भगवान श्रीराम के बेटे कुश के वंश से निकला हुआ वंश है…
परंतु गौतम बुद्ध के जन्म के 7 दिनों के बाद ही उनकी माता का देहांत हो गया. जिसके बाद 7 दिन के बच्चे की लालन पालन का जिम्मा राजा शुद्धोदन पर आ गया. उनके लालन पालन में कोई परेशानी न आए, इसके लिए राजा ने गौतम बुद्ध की मौसी प्रजापति गौतमी से शादी कर ली. उनके बचपन का नाम सिद्धार्थ रखा गया. जब शुद्धोदन ने गौतम बुद्ध की कुंडली ऋषियों को दिखाई तो ऋषि मुनी आश्चर्य में पड़ गए. गौतम बुद्ध की कुंडली से निकल रहे ज्योत ने उन्हें सोचने पर मजबूर कर दिया. हालांकि, कुंडली देखने के बाद ऋषियों ने स्पष्ट कर दिया था कि राजा शुद्धोदन के घर में पैदा हुआ बालक या तो चक्रवर्ती सम्राट बनेगा या फिर ऐसा संन्यासी बनेगा, जिसे कालांतर तक दुनिया याद रखेगी.
ऋषियों की इस भविष्यवाणी ने राजा को चिंता में डाल दिया. वो अपने पुत्र को राजा के रुप में देखना चाहते थे, इसलिए उनका मन पीडा से भर उठा. सिद्धार्थ सन्मार्ग की राह पर न चले जाएं, इसके तमाम इंतजाम किए गए…लेकिन इन सबसे इतर सिद्धार्थ का मन ध्यान और चिंतन में ही लगा रहता था…राजकाज से उनका मन दूर भागता था…यह सब देख राजा का दिल बैठ जाता था…उम्र से पहले ही वो बूढ़े दिखने लगे थे…सिद्धार्थ की चिंता उन्हें खाए जा रही थी…इसी डर में राजा ने मात्र 16 साल की उम्र में ही उनकी शादी कर दी. उनकी शादी का फैसला इसलिए लिया गया क्योंकि राजा का मानना था कि सांसारिक जीवन के बीच सिद्धार्थ का ध्यान संन्यास से हट जाएगा…लेकिन ऐसा हुआ नहीं.
सिद्धार्थ की शादी यशोधरा नामक राजकुमारी से हुई और उनदोनों का एक पुत्र भी हुआ, जिसका नाम राहुल रखा गया. परंतु विवाह और उसके पश्चात बच्चा होने के बाद भी सिद्धार्थ अपने आप को संन्यास की ओर जाने से नहीं रोक पाए. 16 साल की उम्र में शादी हुई और 29 साल की उम्र में उन्होंने संन्यास लेने का फैसला ले लिया. जब पूरा राज्य घोर निद्रा में सो रहा था…राज्य में कहीं कोई खटपट नहीं थी…उस अंधेर रात्रि को चीरते हुए गृहत्याग कर सिद्धार्थ संन्यास के लिए निकल पड़े. बौद्ध धर्म में इस घटना को महाभिनिष्क्रमण कहा जाता है. गृह त्याग के बाद सिद्धार्थ ज्ञान प्राप्ति के लिए भटकने लगे…इस क्रम में वो कई गुरुओं के पास गए…बिहार के वैशाली में उनकी मुलाकात आलार कलाम नामक शख्स से हुई, जो सांख्य दर्शन से संबंधित थे…उनसे सिद्धार्थ ने शिक्षा प्राप्त की थी. बौद्ध धर्म में इन्हें सिद्धार्थ का पहला गुरु माना जाता है.
जब सिद्धार्थ बन गए महात्मा
इसके बाद गौतम बुद्ध को उनके दूसरे गुरु मिले,जिनका नाम रुद्रक रामपुत्र था.उनकी मुलाकात बिहार के राजगृह में हुई थी…सिद्धार्थ ने उनसे भी ज्ञान प्राप्त किया. गुरुओं से मिलने के बाद सिद्धार्थ को ज्ञान की प्राप्ति तो हो रही थी लेकिन यह उस तरह से नहीं थी, जैसा खुद सिद्धार्थ चाहते थे. इसी क्रम में वो बिहार के बोधगया पहुंच गए.
बोधगया पहुँचने के बाद उन्होंने निरंजन नदी जिसे फल्गू नदी भी कहते हैं उसके किनारे 49 दिनों तक एक पीपल के पेड़ के नीचे कठोर तपस्या की और इसके बाद अंत में वैशाख पूर्णिमा के दिन उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई. अगर आप गौतम बुद्ध के जीवन को निकट से देखेंगे तो आपको पता चलेगा कि गौतम बुद्ध का जन्म, ज्ञान की प्राप्ति और उनकी मृत्यु…सब के सब वैशाख पूर्णिमा के दिन ही हुए..इसलिए इसे बुद्ध पूर्णिमा भी कहा जाता है.
जिस समय सिद्धार्थ को ज्ञान की प्राप्ति हुई तब उनकी आयु मात्र 35 वर्ष थी यानी उनके गृह त्याग करने के 6 वर्ष बाद उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई थी. सिद्धार्थ की इस ज्ञान की प्राप्ति को “बुद्धत्व” कहा गया. बाद में बुद्धत्व को भी श्रेणीबद्ध किया, जो इस प्रकार हैं-
(1) सम्यक सम्बुद्ध
(2) प्रत्येक बुद्ध
(3) सावक बुद्ध
ज्ञान प्राप्ति के बाद अब सिद्धार्थ महात्मा बुद्ध बन गए थे…उनके चेहरे पर तेज था…वाणी में सौम्यता थी…रुप ऐसा कि कोई भी देखे तो देखता ही रह जाए…ज्ञान की प्राप्ति के बाद उन्होंने बौद्ध धर्म का प्रचार प्रसार करना आरंभ कर दिया. इस क्रम में सबसे पहले उनके 5 शिष्य बनें और इन शिष्यों में से आनंद उनके सबसे प्रिय शिष्य थे. अपने इन 5 शिष्यों को गौतम बुद्ध ने अपना सबसे पहला उपदेश दिया…स्थान था वाराणसी का सारनाथ….सारनाथ को ऋषिपत्तन के नाम से भी संबोधित किया जाता है.
महात्मा बुद्ध ने अपने प्रवचनों और उपदेशों के माध्यम से बौद्ध धर्म का प्रसार और समाज को जागृत करने का प्रयास किया था, वर्तमान में भी बौद्ध धर्म कई देशों में विस्तृत है. इस धर्म को मानने वाले ज्यादातर लोग चीन, जापान, कोरिया, थाईलैंड, कंबोडिया, श्रीलंका, नेपाल, भूटान और भारत जैसे देशों में रहते हैं. बौद्ध धर्म के प्रसार के क्रम में उन्होंने अपने बहुत सारे संघ भी बनाए,जिसके माध्यम से लोग उनके अनुयायी बनते चले गए. स्थिति ऐसी हुई कि देखते ही देखते बौद्ध धर्म के अनुयायियों की संख्या लाखों में पहुंच गई.
मगध पर शासन करने वाले तत्कालीन शासक बिंबिसार, गौतम बुद्ध के घनिष्ट मित्र थे…सर्वप्रथम उन्होंने ही इस धर्म का प्रचार किया. उनके बाद उनके बेटे अजातशत्रु ने भी यही कार्य किया. अजातशत्रु के शासनकाल के दौरान ही महात्मा बुद्ध की मृत्यु हुई थी.उन्होंने अपना अंतिम उपदेश अपने शिष्य सुभद्र को दिया था और 80 वर्ष की आयु में उत्तर प्रदेश के कुशीनगर में उनकी मृत्यु हो गई थी. बौद्ध धर्म में इस घटना को महापरिनिर्वाण कहा जाता है. बुद्ध की स्मृति को संजोय रखने के लिए अजातशत्रु ने राजगृह की पहाड़ी पर स्तूप बनवाया. भारत में गौतम बुद्ध का पहला स्तून बनवाने का श्रेय अजातशत्रु को ही जाता है.
महात्मा बुद्ध के शिष्य
आपको बता दें कि बौद्ध धर्म के प्रसार के क्रम में बहुत सारे संघ, मठ और विहार बनाए गए थे जहाँ पर बौद्ध धर्म को मानने वाले लोग रहा करते थे, परंतु तब इसमें सिर्फ पुरुष ही रहा करते थे.बाद में महात्मा बुद्ध के प्रिय शिष्य आनंद के आग्रह के बाद उनके द्वारा इन जगहों पर महिलाओं को भी रहने की अनुमति दे दी गई थी. गौतम बुद्ध ने कहा था कि जब तक यहां पुरुष होंगे यानी जब तक विहारों में पुरुष होंगे तब तक बौद्ध धर्म अच्छा चलेगा और इसकी प्रगति होती रहेगी, लेकिन महिलाओं के आने के बाद यह धर्म आने वाले 500 से 1000 वर्ष में अपनी प्रगति खोता चला जाएगा.
हालांकि, महात्मा बुद्ध के बाद उनके शिष्यों और अनुयायियों ने इस धर्म के प्रचार प्रसार की बागडोर संभाली. बुद्ध के वचनों को एकत्रित कर ग्रंथ का रुप दिया गया. इस धर्म में अन्य धर्मों की अपेक्षा हर तरह की छूट दी गई. इसमें ऊंची और नीची जाति का कोई भेदभाव नहीं था और आज के समय में भी बौद्ध धर्म में किसी भी तरह का कोई जातिवाद नहीं है. हिंदू धर्म छोड़ने के बाद 21 वर्षों तक बाबा साहेब अंबेडकर ने सभी धर्मों का विस्तृत रुप से अध्य्यन किया था और उसके बाद वह भी इसी नतीजे पर पहुंचे थे कि बौद्ध धर्म जैसी स्वतंत्रता किसी अन्य धर्म में नहीं है. यही कारण है कि दलित समाज के तमाम लोग बौद्ध धर्म में परिवर्तित होते रहते हैं.