बौद्ध धर्म को जहर क्यों मानता है चीन ?

China एंड Buddhist
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चीन एक धूर्त राष्ट्र है..कपटी है…भरोसे के लायक नहीं है..ये अपनी सीमा से लगने वाले किसी भी देश को चैन से बैठने नहीं देता…रूस, मंगोलिया, ताइवान, तिब्बत, भारत समेत तमाम देशों से इसके बॉर्डर डिस्प्यूट हैं. कई देशों पर तो वह अपना दावा भी कर चुका है. चीन आधिकारिक तौर पर एक नास्तिक देश है. यहां रहने वाले लोगों में सबसे ज्यादा संख्या नास्तिकों की है, जो किसी भी धर्म को नहीं मानते. इसके बावजूद दुनिया की नजरों में खुद को महान दिखाने के लिए चीन यह भी दावा करता है कि सभी धर्मालवंबियों अपनी आस्था को लेकर पूरी तरह से आज़ादी है.  बकायदा चीनी संविधान का आर्टिकल 36 धार्मिक स्वतंत्रता पर ही बेस्ड है. बौद्ध धर्म को लेकर चीन हमेशा से सख्त रहा है…चीन में बौद्ध धर्म को लेकर कहा जाता है कि यह इकलौता ऐसा विदेशी धर्म है, जिसकी चीन में सबसे ज्यादा स्वीकार्यता है…

आखिर चीन धर्म के नाम पर इतना डरता क्यों है और वह बौद्ध धर्म को जहर क्यों मानता है

चीन में लोकतंत्र नहीं है. एक पार्टी की सरकार है…और हर कुछ सालों में पार्टी द्वारा ही किसी नए नेता को राष्ट्र की कमान सौंपी जाती है. सीसीपी यानी चाइनीज कम्युनिस्ट पार्टी का पूरे चीन पर नियंत्रण है. रिपोर्ट्स के मुताबिक, चीन में सीसीपी के कार्यकर्ताओं की संख्या 8.5 करोड़ से ज्यादा है और उन्हें सख्त चेतावनी है कि वे किसी भी धर्म का पालन नहीं करेंगे. अगर कम्युनिस्ट पार्टी का कोई भी कार्यकर्ता किसी भी धर्म  में संलिप्त पाया जाता है तो उस पर काफी कठोर कार्रवाई होती है. चीन के सरकारी मीडिया ने कम्युनिस्ट पार्टी के प्रकाशित हुए नियमों का हवाला देते हुए बताया है कि अब पार्टी के रिटायर कार्यकर्ता भी किसी धर्म का पालन नहीं कर सकते हैं. चीन में भले धार्मिक आज़ादी मिली हुई है लेकिन वहां धार्मिक गतिविधियां को स्वतंत्र होकर अंजाम नहीं दिया जा सकता है.

चीन में हर धर्म के धार्मिक स्थलों पर सीधे तौर पर सरकार का नियंत्रण होता है. धार्मिक संस्कृति को लेकर वहां कोई स्वतंत्रता नहीं है. चीन के शिंजियांग जैसे कई हिस्सों में मुस्लिम समुदाय के लोग बंदिशों की जिंदगी जी रहे हैं. चीन में बौद्ध धर्म की स्वीकार्यता काफी ज्यादा है. शहर से लेकर ग्रामीण क्षेत्रों तक बौद्ध धर्म का प्रभाव है. चीन की कुल आबादी में करीब 17 फीसदी लोग बौद्ध धर्म से जुड़े हुए हैं. ऐसे में बौद्ध धर्म के प्रसार को रोकने के लिए चीन की ओर से अक्सर हथकंडे अपनाए जाते हैं. आये दिन दलाई लामा इन मसलों पर चीन पर बरसते दिखते हैं..नए साल के दौरान दलाई लामा ने चीनी सरकार पर बौद्ध धर्म को नुकसान पहुंचाने का आरोप लगाया था और कहा था कि चीन धर्म को जहर के रूप में देखता है.

दलाई लामा ने आगे कहा कि ‘चीन की सरकार धर्म को नष्ट करने की अपनी कोशिश में सफल नहीं होगी। चीन में बौद्ध धर्म से जुड़ी संस्थाओं को नष्ट करने, देश से बाहर निकाल फेंकने के लिए सरकार की ओर से सुव्यवस्थित तरीके से अभियान चलाया जा रहा है। हम बौद्ध धर्म में दृढ़ विश्वास रखते हैं। जब ट्रांस-हिमालयी क्षेत्रों के दौरे करता हूं तो स्थानीय लोगों को धर्म के प्रति बहुत समर्पित पाता हूं। ये मंगोलिया और चीन में भी है।’

दलाई लामा को तिब्बत छोड़ने पर मजबूर

आपको बता दें कि कम्युनिस्टों की क्रांति और उनकी बर्बरता के कारण ही दलाई लामा को तिब्बत छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा था. उन्होंने भारत में शरण लिया और उनके पीछे पीछे उनके लाखों अनुयायी भारत आ पहुंचे. भारत में शरण के बाद उन्होंने हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में अपना घर बनाया. वहां रहने वाले तिब्बती निर्वासितों की उच्च सांद्रता के कारण उस क्षेत्र को “मिनी तिब्बत” कहा जाता है.

चीन किसी भी धर्म के लिए सुरक्षित स्थान नहीं है. वहां की तानाशाही कम्युनिस्ट सरकार अपने हिसाब से धर्मों और उनके अनुयायियों को हैंडल करती है. चीन में भले धार्मिक आज़ादी मिली हुई है लेकिन वहां धार्मिक गतिविधियां को स्वतंत्र होकर अंजाम नहीं दिया जा सकता है। चीन के शिंजियांग प्रांत में मुस्लिम भी कई पाबंदियों के साथ जी रहे हैं। उन्हें अपने मस्जिदों के अंदर नमाज पढ़ने की भी अनुमति नहीं है। यही हाल चीन में रह रहे बाकी धर्मो का भी है। ईसाइयों को चर्च में प्रेयर करने के लिए भी प्रशासन से अनुमति लेनी पड़ती है. अनुमति के बाद भी वे चर्च के भीतर नहीं जा सकते, उन्हें बाहर से ही प्रेयर करना होता है.

चीन के कुछ नेताओं ने दशकों पहले बौद्ध धर्म को प्रचारित करने के लिए प्रोत्साहित किया था लेकिन यह संभव नहीं हो सका. चीन के कम्युनिस्ट शासन का मानना है कि धार्मिक आस्था वामपंथ को कमज़ोर करती है। चीनी सरकार धर्म को सामूहिक गतिविधि के रूप में विकसित नहीं होने देना चाहती। चीनी सरकार को डर है कि धार्मिक संस्थाएं पार्टी के अधिकार पर सवाल उठा सकती हैं और उसके लिए खतरा पैदा कर सकती हैं। इसलिए चीन की राजनीतिक पार्टी के सदस्यों को पूरी सख्ती से मार्क्सवादी नास्तिक बनने को कहा जाता है।

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