इस समय सिनेमा में एक फिल्म ने खूब धमाल मचा रखा है। यह फिल्म न सिर्फ ब्राह्मणवादियों द्वारा दलितों पर थोपे गए रूढ़िवादी रीति-रिवाजों को दिखाती है बल्कि दलितों द्वारा किए गए त्याग और बलिदान को भी दिखाती है। फिल्म में यह भी स्पष्ट रूप से दिखाने का प्रयास किया गया है कि कैसे ब्राह्मणवादी ताकतों ने बौद्ध धर्म की शिक्षाओं को नष्ट करने का प्रयास किया और किसने उसकी रक्षा की…ये सारी चीजें इस फिल्म में दिखाई गई है…
फिल्म का नाम है थंगलान…जो रियल स्टोरी पर बेस्ड है. थंगलान का मतलब है Son of Gold. फिल्म में ब्रिटिश एरा दिखाया गया है, जिसमें कुछ आदिवासी जनजाति अपने देश की सोने की खदान को ब्रिटिश लोगो से बचाना चाहते हैं. फिल्म में तंत्र का कांसेप्ट भी मिलाया गया है. जिस सोने की खदान से ब्रिटिश सोना निकालना चाहते है, वो मायावी है और उसकी रक्षा करती है देवी “आरती”.
क्या कहती फिल्म की कहानी
दरअसल, प्राचीन काल में केजीएफ के कारण भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता था। अंग्रेजों ने दुनिया की सबसे बड़ी सोने की खदानों में से एक दोहन किया व 900 टन से से अधिक सोना इंग्लैंड ले गए। यह देखते हुए कि आज ज्यादातर लोग इस कहानी से अनजान हैं, फिल्म इन सोने की खदानों की वास्तविक कहानी को दिखाती है…
सुपरस्टार चियान विक्रम ने थंगलान की भूमिका निभाई है, जो एक अछूत व्यक्ति है, जो तमाम कठिनाइयों के बावजूद, ज़मीन का एक छोटा सा टुकड़ा अपने पास रखने में कामयाब हो जाता है। यह बहुत ज़्यादा नहीं है लेकिन एक ऐसी दुनिया में जहाँ उसके अस्तित्व को ही सामाजिक व्यवस्था के लिए अपमान के रूप में देखा जाता है, वहां थंगलान के पास ज़मीन का यह टुकड़ा जमींदारों की आंख में चुभ रहा है. ऐसे में स्थानीय जमींदार मिरासीदारी उसे प्रताड़ित करना शुरू कर देता है और कई तिकड़मों के साथ थंगलान से उसकी जमीन छीन लेता है.
इतना ही नहीं, जमीन छीनने के बाद जमींदार थंगलान और उसके परिवार के 7 सदस्यों को पन्नैयाल प्रथा में धकेल देता है. यह बंधुआ मज़दूरी का एक रूप है, जो गुलामी से भी बदतर है.
फिल्म ‘थंगलान’ भारत में हाशिए पर पड़े समुदायों के बीच साझा विरासत की अवधारणा की खोज करती है। उत्पीड़कों से संघर्ष के क्रम में थंगलान अपनी नागा पहचान की खोज करते हैं. फिल्म अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़े वर्गों के बीच एक समान वंश के विचार को प्रस्तावित करती है – एक ऐसी धारणा जो बहुजन विचार के राजनीतिक दर्शन में निहित है। पहचान की यह खोज आज के भारत में तत्काल प्रासंगिक लगती है, जहाँ संबद्धता और ऐतिहासिक आख्यानों के बारे में बहस पहले से कहीं ज़्यादा गर्म है।
‘थंगलान’ को जो चीज़ अलग बनाती है, वह है इसकी बौद्धिक रूप से उत्तेजक और सिनेमाई रूप से मनोरंजक होने की क्षमता। फिल्म बौद्ध धर्म से जुड़ी कहानी भी दिखाती है और साथ ही उस समय के समाज के धार्मिक और सामाजिक पहलुओं को दर्शाती है, जिसके माध्यम से इसे पुनर्स्थापित किया गया था। फिल्म यह भी दिखाती है कि बौद्धों की कितनी मूर्तियों को नष्ट किया गया और कैसे ब्राह्मणवादी ताकतों ने बौद्धों के खिलाफ जाकर उनकी मूर्तियों को नुकसान पहुंचाया।
दरअसल, ब्राह्मणवादी बौद्ध धर्म और उसकी शिक्षाओं की निंदा करते थे, इसलिए उन्हें बौद्ध धर्म से जुड़ी कोई भी बात पसंद नहीं थी। फिल्म यह भी दिखाती है कि कैसे नागवंशी संप्रदाय और अन्य संप्रदाय बौद्धों की मूर्तियों और शिक्षाओं की रक्षा के लिए लड़ रहे थे।
महिलाओं की महत्वपूर्ण
फिल्म में बौद्धों की शिक्षाओं की रक्षक नागनिका की भूमिका का भी उल्लेख किया गया है। इसमें उस समय की महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका दिखाई गई है, जिन्होंने बौद्ध धर्म के विचारों का बचाव किया। इस फिल्म में यह भी दिखाया गया है कि ब्राह्मणवादी हमेशा से ही बौद्ध धर्म के खिलाफ रहे हैं और हमेशा इसके अनुयायियों को दबाने की कोशिश करते रहे हैं।
हालांकि, भारत में रहकर ऐसी सच्चाई को पेश करना बहुत मुश्किल काम था, जिसे फिल्म के निर्देशक पा. रंजीथ ने फिल्म में बहुत ही निडरता से पेश किया है। अपनी फिल्म में उन्होंने बौद्ध धर्म की विचारधाराओं को बहुत ही यथार्थवादी ढंग से चित्रित किया है। फिल्म 15 अगस्त को ही रिलीज हो चुकी है और इसका कलेक्शन भी जबरदस्त रहा है…