2012 Dharmapuri violence : 4 जुलाई 2013 को तमिलनाडु के नाइकेंकोट्टई गांव के रहने वाले दलित युवक इलावरासन की लाश धर्मपुरी गवर्नमेंट आर्ट्स कॉलेज के पीछे रेलवे ट्रैक पर मिली। यह घटना तब हुई जब उनकी पत्नी दिव्या, जो मोस्ट बैकवर्ड क्लास (MBC) की वन्नियार समुदाय से थीं, ने मद्रास हाईकोर्ट और मीडिया के सामने कहा कि वह अपने पति के पास वापस नहीं जाएंगी और अपनी मां के साथ रहेंगी।
संदिग्ध मौत या हत्या?
माना जा रहा था कि इलावरासन ने कूवाम्बटूर से मुंबई जा रही कूआला एक्सप्रेस के सामने कूदकर आत्महत्या कर ली, जिससे उन्हें सिर पर घातक चोट आई और उनकी मौत हो गई। हालांकि, इलावरासन के परिवार और रिश्तेदारों ने इस दावे को पूरी तरह नकार दिया और आरोप लगाया कि वन्नियार जाति के लोगों ने उन्हें मारकर रेलवे ट्रैक पर फेंक दिया। यह घटना जातीय संघर्ष का परिणाम मानी जा रही थी, जिसमें वन्नियार समुदाय और दलितों के बीच गहरी दुश्मनी थी।
8 अक्टूबर 2012 को नर्सिंग की छात्रा दिव्या ने इलावरासन से भागकर शादी कर ली। 4 नवंबर 2012 को दिव्या के गांव सेलंकोट्टई में वन्नियार समुदाय के लोगों ने बैठक बुलाकर दिव्या को अपने परिवार के पास लौटने का आदेश दिया। जब दिव्या ने मना कर दिया तो उसके पिता नागराजन ने आत्महत्या कर ली। इस घटना के कारण सांप्रदायिक तनाव बढ़ गया।
7 नवंबर 2012 को वन्नियार समुदाय के करीब 1500 लोगों की भीड़ ने धर्मपुरी जिले के नाथम, कोंडमपट्टी और अन्ना नगर के दलित बस्तियों पर हमला कर दिया। इस हिंसक हमले में 200 से अधिक घरों को लूटकर जलाया गया। चार घंटे तक चले इस उपद्रव में पुलिस मूकदर्शक बनी रही। आरोप लगे कि प्रशासन और पुलिस जातिवादी मानसिकता से ग्रसित थी और उन्होंने वन्नियार समुदाय का समर्थन किया।
राजनीति और जातीय नफरत का खेल
इस हिंसा के पीछे पाटाली मक्कल कच्ची (PMK) पार्टी की संलिप्तता की आशंका जताई गई, हालांकि पार्टी नेता डॉ. रामदास ने इससे इनकार किया। मीडिया रिपोर्टों और वीडियो फुटेज ने इस हिंसा में PMK की भूमिका को उजागर किया। PMK और वन्नियार संगठन ने यह प्रचार किया कि दलित युवक वन्नियार लड़कियों से शादी कर उनका आर्थिक शोषण कर रहे हैं।
2012 में PMK के विधायक काडुवेत्ती गुरु ने वन्नियार युवाओं की सभा में भाषण दिया, जिसमें उन्होंने कहा कि वन्नियार लड़कियों से शादी करने वाले अन्य जाति के पुरुषों को मार देना चाहिए। यह भाषण पूरे तमिलनाडु में जातीय नफरत भड़काने का कारण बना।
इलावरासन की मौत और न्याय की लड़ाई
इस घटना के इतने साल बाद भी दलित बस्तियों में आग लगाने वाले 92 लोगों में से किसी को सजा नहीं मिली। सरकार ने प्रभावित परिवारों को 7.35 करोड़ रुपये का मुआवजा दिया, लेकिन न्याय नहीं मिला। पुलिस ने इलावरासन की मौत को आत्महत्या करार देते हुए मामला बंद कर दिया, हालांकि दलित संगठनों और मानवाधिकार संगठनों ने इसे हत्या बताया।
इलावरासन के पास से कोई सुसाइड नोट नहीं मिला। उनकी मौत के दिन सुबह उन्होंने अपने पिता के ATM से 9000 रुपये निकाले थे और परिवार को बताया था कि वह आंध्र प्रदेश के चित्तूर जा रहे हैं।