‘ठकुरई’ के इस ज़माने में किसी दलित को इंसाफ मिल पायेगा?

Dalit Condition in UP
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Dalit condition in Uttar Pradesh: उत्तर प्रदेश में दलित दूल्हे के घोड़ी पर बैठ कर बारात ले जाने के कारण उसकी बेहरमी से पिटाई होने की खबर आई, तो वहीं रामपुर में एक 12 साल की मासूम मूक दलित बच्ची के साथ बलात्कार कर हत्या करने की घटना ने पूरे यूपी में दलितों के अंदर रोष पैदा कर दिया है। योगी सरकार आने के बाद यूपी में दलितों के साथ होने वाली घटनाएं तेजी से बढ़ी है, लेकिन हैरानी की बात तो ये है कि योगी सरकार एक तरफ तो राज्य में सख्त कानून का दावा कर रही है तो वहीं दलितों के साथ अन्नाय होते हुए देख कर भी आखिर क्यों सीएम योगी चुप्पी साध लेते है। आखिर क्यों प्रशासन भी अनदेखी करके बैठ जाता है। तो इसका कारण है ठाकुरवाद।

क्या है ठाकुरवाद?

दलित वर्सेस ठाकुरवाद की तुलना करें उससे पहले ये जान लेते है कि आखिर क्या है ठाकुरवाद। ठाकुरवाद से अक्सर अभिप्राय होता है ऊची जाति के लोग, जिसमें ब्राह्ण, राजपूत और स्वर्ण समुदाय के लोग आते है। सीएम योगी आदित्यनाथ को ठाकुरवाद का हितैषी माना जाता है।  राज्य में ठाकुरों का वर्चस्व इसलिए भी कायम है क्योंकि आर्थिक रूप से ये दलितों के मुकाबले में काफी संपन्न होते है और दलितों को बराबरी का हक देने के पक्ष में ठाकुर समुदाय कभी था ही नहीं।

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सीएम योगी को ठाकुरवाद प्रेम!

सीएम योगी भले ही योगी आदित्यनाथ के नाम से प्रचलित है लेकिन इस बात को भी अनदेखा नहीं किया जा सकता है कि वो खुद एक राजपूत जाति है। जो ठाकुरों की प्रमुख जाति है। योगी जी के इतिहास को खंगाले तो पता चलता है कि उनके मठ गोरखनाथ पीठ के महंत दिग्विजयनाथ हिंदू महासभा से जुड़े हुए थे। इन्होंने ही बाबरी मस्जिद की जगह रामजन्मभूमि होने का मुद्दा उठाया था। महंक दिग्विजयनाथ ठाकुर थे और उन्होंने ठाकुर अवैधनाथ को अपना उत्तराधिकारी बनाया था, इस समय भी हिंदू महासभा दलितों और पिछड़े वर्गों को सम्मान औऱ पूर्ण अधिकार देने की बात करती थी। फिर समय आया योगी आदित्यनाथ था। अवैधनाथ की मृत्यु के बाद योगी आदित्यनाथ महंत बने जो कि खुद एक ठाकुर है।

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योगी आदित्यनाथ की ठाकुरवादी नीति

योगी आदित्यनाथ ने सीएम बनने के बाद कई ऐसे फैसले लिए जो उनके कट्टर हिंदूवादी और ब्राह्मणवादी नीति को साफ करता है। हिंदू महासभा के राजनैतिक तौर पर वर्चस्व खत्म होने के बाद योगी आदित्यनाथ ने हिंदू युवा वाहिनी का गठन किया था, जो केवल मजबूत ठाकुरों का समूह था। पूरे गोरखपुर में ठाकुरों का बोलबाला शुरु हो गया था, इसका नतीजा ये हुआ कि दलित और ज्यादा कटने लगे थे। करीब 20 साल बाद राज्य में कोई दलित के बजाय एक ठाकुर सीएम आया था। योगी आदित्यनाथ ने ठाकुरों के वर्चस्व को फिर बढ़ाने के लिए उनकी वापसी और उन्हें ताकतवर बनने दिया।

ठाकुर बनाम दलित

ठाकुरों के दबदबे का सबसे बड़ा उदाहरण है उन्नाव की वो घटना जब एक दलित लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार की घटना में बीजेपी नेता और ठाकुर समुदाय से आने वाले कुलदीप सिंह सेंगर का नाम सामने आया था। इस घटना में सेंगर समेत 6 लोगो पर 17 साल की एक दलित लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार करने का आरोप लगा था। ये मामला करीब 1 साल मीडिया के सामने आया, वो भी तब जब पीड़ित लड़की को जान से मारने की कोशिश की गई। इस मामले में पीड़ित और उसके परिवार के लोग लगातार थाने के चक्कर लगाते रहे लेकिन ठाकुर समुदाय का होने के कारण प्रशासन ने भी इस मामले को अनदेखा कर दिया। पीड़ित ने सेंगर के खिलाफ इस लड़ाई में अपने पिता, अपने चाचा चाची सबको खो दिया, लेकिन वो फिर भी लड़ती रही। ठाकुरों के वर्चस्व के कारण, एक दलितों को दर दर भटकना पड़ा। दलितों के साथ होने वाली ये घटना कोई पहली नहीं है। सीएम योगी के सत्ता पर बैठने के बाद जैसे ठाकुरों को शक्ति मिल गई है दलितों का शोषण करने की।

सरकार में ठाकुर का ऊंचा पद! 

सीएम योगी ने ठाकुरों की ताकत को बढ़ाने के लिए कई ठोस कदम उठाये। उन्होंने राज्य सरकार में लगभग 18 प्रतिशत सीटों पर ठाकुरों को जगह दी तो वहीं प्रशासनिक पदों पर पर ठाकुरों को बिठाया। ठाकुरों की आर्थिक हैसियत के कारण उनसे राजनैतिक तौर पर भी कोई भिड़ना नहीं चाहता है। एक रिपोर्ट के अनुसार राज्य के करीब 47 प्रतिशत ठाकुर राज्य के 20 प्रतिशत भूमि और संपत्ति के मालिक है। ऐसे में आए दिन दलितों पर होने वाले अत्याचारों की घटना भी इसी दबदबे और सरकार की ढिलाई का ही नतीजा है। दलित जो कि एक बड़ा वोट बैंक है उनके साथ इस तरह का व्यवहार कई बीजेपी और सीएम योगी को भारी न पड़ जायें।

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