दलितों के हित की Fight से कुछ सदी पहले ही आरंभ हो गई थी. अंग्रेजों के समय में लोगों का ध्यान प्रमुखता से इस ओर गया और लोगों ने आवाज उठानी शुरु कर दी. दबे, कुचले लोगों की आवाज बनकर कुछ लोग सामने आएं और उन्हें समाज की मुख्यधारा में लाने हेतु वो सबकुछ किया, जो मुमकिन था. दलितों के मसीहा काफी हद तक इसमें सफल भी हुए. हमारी आज की वीडियो इन्हीं जाबांजों पर है, जिन्होंने पीड़ित तबकों को न्याय दिलाने में अपना सर्वस्व अर्पण कर दिया.
संवैधानिक पदों पर बैठने वाले 5 दलित नेताओं की…
इसमें पांचवें नंबर पर हैं मायावती
आजादी के बाद देश के सबसे बड़े दलित नेताओं में मायावती का नाम भी आता है. मायावती द्वारा दलितों के हित में किए गए कार्यों को नकारा नहीं जा सकता है. 4 बार उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री रह चुकी मायावती ने अपने कार्यकाल में दलितों के लिए काफी काम किया. वह दलित समाज की बड़ी नेता मानी जाती हैं. देश की राजनीति में उनकी पकड़ पहले से थोड़ी ढीली जरुर हुई है लेकिन अभी भी कई इलाकों में उनके आगे कोई नहीं टिकता. मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए इन्होंने जिस तरह से दलितों के उत्थान के लिए कार्य किया उसे स्वीकार करने से कोई नकार नहीं सकता. दलितों के उत्थान के लिए लगातार काम कर रही मायावती पर कई पुस्तकें भी लिखी जा चुकी हैं.
इसमें चौथे नंबर पर हैं कांशी राम
दलितों की आवाज कांशी राम का नाम तो आपने कई दफा सुना होगा. बहुजन नायक के नाम से प्रसिद्ध राजनीतिज्ञ और समाज सुधारक कांशी राम ने 1984 में बहुजन समाज पार्टी की स्थापना की. जिसका कार्यभार आज मायावती संभालती हैं. बाबा साहेब अंबेडकर के विचारों पर चलते हुए कांशी राम ने लगातार दलितों और पिछड़ों के लिए काम किया. 1991-1996 तक उत्तर प्रदेश के इटावा से सांसद रहे कांशीराम ने 2001 में मायावती को अपना उत्तराधिकारी चुना था.
इस सूची में तीसरे नंबर पर हैं
के आर नारायणन दलितों के सबसे बड़े नेताओं में से एक थे. समय समय पर उन्होंने दलितों के उत्थान के लिए आवाज भी उठाई और उनके हित में कार्य भी किया. केरल के कोट्टयम जिले के रहने वाले आर नारायणन साल 1997 में आजाद भारत के 10वें राष्ट्रपति बनें. राष्ट्रपति बनने से ठीक पहले तत्कालीन राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा के कार्यकाल में यानी 1992-1997 तक वह उपराष्ट्रपति के पद पर थे. लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिकक्स से राजनीतिशास्त्र की पढ़ाई करने वाले नारायणन जापान, यूके, थाईलैंड, तुर्की, चीन और अमेरिका में भारत के राजदूत भी रहें.
इस लिस्ट में दूसरे नंबर पर हैं बाबू जगजीवन राम
जगजीवन राम दलितों के ऐसे नेता थे, जिन्होंने एक बार तो इंदिरा गांधी को झंकझोर कर रख दिया था. भले ही इनका नाम मुख्यधारा में काफी कम सुनने को मिला लेकिन दलितों के लिए किए गए कार्य और उनके उत्थान हेतु दिया गया इनका योगदान अतुलनीय रहा. नेहरू कैबिनेट में श्रम, ट्रांसपोर्ट, रेलवे जैसे कई मंत्रिमंडल संभालने के बाद ये 1977 में भारत के चौथे उप प्रधानमंत्री बनें. 1971 में भारत- पाक युद्ध के दौरान वो भारत के रक्षा मंत्री थे और इसी युद्ध के बाद बांग्लादेश का जन्म हुआ था.
पहले नंबर पर हैं बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर
आजादी से पहले और आजादी के बाद तक बाबा साहेब ने दलितों के हित में जमीन से लेकर सरकार तक, हर हिसाब से काम किया. उन्हें समाज में उनकी पहचान दिलाने, उन्हें उनके हक दिलाने आदि को लेकर उन्होंने काफी संघर्ष किया. भारतीय संविधान के निर्माता डॉ भीम राव अम्बेडकर ने स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान अपनी सक्रिय भूमिका निभाई थी. सामाजिक व्यवस्था और कानून के जानकार होने के कारण जवाहरलाल नेहरू ने अपने पहले मंत्रिमंडल में उन्हें कानून और न्याय मंत्रालय का जिम्मा दिया. जाति व्यवस्था के खिलाफ लगातार लड़ने वाले अम्बेडकर को सामाजिक और आर्थिक विषयों का अच्छा ज्ञान था. उन्होंने कोलंबिया यूनिवर्सिटी और लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से भी पढ़ाई की थी. 1990 में भारत सरकार ने उनके भारतीय समाज में अहम योगदान को लेकर मरणोपरान्त भारत रत्न से सम्मानित किया था.