History About Indian Politics: कहानी एक ऐसे नेता की, जिसने देश की आजादी के लिए अहम भूमिका निभाई, उत्पीड़न झेला, भेदभाव झेला और कई सालों तक संसद के सदस्य बने रहे.. कौन थे ये नेता ? तो चलिए आपको बताते है इस लेख में, ये नेता कोई और नहीं बल्कि बाबू जगजीवन राम हैं.
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मजदूरों और दलितों के मसीहा
भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में 1977-79 का ऐसा दौर था, जब प्रधानमंत्री की कुर्सी पर एक दलित नेता के आसीन होने की पूरी गुंजाइश थी और ये नेता थे बाबू जगजीवन राम, लेकिन ऐसा नहीं हो सका. बाबू जगजीवन राम भारतीय राजनीति के एक प्रमुख दलित नेता और समाज सुधारक थे, जिन्हें भारतीय राजनीति में उनके योगदान और विशेष रूप से दलित समुदाय के अधिकारों के लिए उनके संघर्ष के लिए जाना जाता है। वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य थे और उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भी भाग लिया था। बाबू जगजीवन राम का जन्म 5 अप्रैल 1908 को बिहार के सिताब दियारा गांव में हुआ था। वे भारतीय राजनीति के पहले दलित नेताओं में से एक थे, जो उपप्रधानमंत्री के पद तक पहुंचे। बाबू जगजीवन राम ने अपने जीवन में कई महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया, जिनमें कृषि मंत्री, रक्षा मंत्री और श्रम मंत्री के रूप में कार्य किया। वे भारतीय सरकार के उपप्रधानमंत्री भी रहे।
उनका सबसे बड़ा योगदान समाज के वंचित और दलित वर्ग के लिए था। उन्होंने हमेशा दलितों के अधिकारों की रक्षा के लिए संघर्ष किया और समाज में उनके लिए समानता की आवाज उठाई। बाबू जगजीवन राम ने भारतीय संविधान में समानता और सामाजिक न्याय के सिद्धांतों को स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उनका राजनीतिक जीवन विभिन्न संघर्षों से भरा था, और वे भारतीय राजनीति में एक प्रेरणास्त्रोत के रूप में जाने जाते हैं। उनके कार्य और विचार आज भी दलित अधिकारों और समाजिक समानता की दिशा में एक महत्वपूर्ण मार्गदर्शक माने जाते हैं।
जब फ़िल्म छोड़कर दलित नेता को सुनने भागे लाखों लोग
1973 में रिलीज़ हुई फिल्म बॉबी, जो ऋषि कपूर और डिम्पल कपाड़िया की अभिनीत थी, बॉलीवुड की एक बेहद हिट फिल्म साबित हुई थी। इस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर धूम मचाई और फिल्म उद्योग के लिए एक नया ट्रेंड सेट किया था। इसके अलावा, फिल्म का संगीत भी काफी हिट हुआ था और “बॉबी” के गाने हर जगह बज रहे थे। लेकिन इस फिल्म के बावजूद, कुछ ऐसा हुआ जो बॉलीवुड के स्टार्स को भी चौंका देने वाला था। उसी साल, जगजीवन राम, जो उस समय भारतीय सरकार में केंद्रीय मंत्री थे, एक यात्रा पर निकले थे।
कहा जाता है कि 1977 के चुनावों के दौरान दिल्ली के रामलीला मैदान में कांग्रेस के खिलाफ खड़े हो चुके बाबू जगजीवन राम की चुनावी सभा होनी थी. लेकिन दूरदर्शन ने इस सभा को असफल करने के लिए उसी वक्त बॉबी फिल्म दिखाई. इसके बावजूद भी भारी भीड़ दिल्ली के रामलीला मैदान में जुटी और अगले दिन अख़बारों में हेडलाइन छपी, ‘बाबू बीट्स बॉबी’ यानि बाबू ने बॉबी को हराया. जगजीवन राम ने पांच दूसरे कैबिनेट मंत्रियों के साथ कांग्रेस छोड़ दी थी और कांग्रेस फॉर डेमोक्रेसी नाम का संगठन बनाया था. बाद में जनता पार्टी के चुनाव जीतने के बाद वे नई सरकार में उप प्रधानमंत्री बने थे.
इस घटना को लेकर बाद में यह भी कहा गया कि फिल्म “बॉबी” के बाद, जगजीवन राम का नाम हर चर्चा में छा गया था, और उनका एक अलग ही प्रकार का सार्वजनिक आकर्षण था। “बाबू बीट्स बॉबी” की कहानी को अक्सर एक उदाहरण के तौर पर लिया जाता है कि कैसे एक नेता ने अपने प्रभाव और पॉपुलैरिटी का इस्तेमाल किया और फिल्म इंडस्ट्री को भी पीछे छोड़ दिया।
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