1980 के दशक में कांग्रेस एक के बाद एक राज्यों में बढ़त हासिल कर रही थी। मई 1980 में राजस्थान विधानसभा चुनाव हुए। संजय गांधी ने टिकट वितरण से लेकर मुख्यमंत्री की नियुक्ति तक सब कुछ संभाला। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस 200 विधानसभा सीटों पर जीत के साथ राजस्थान में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। दिल्ली के राजस्थान सदन में विधायक दल की बैठक हुई और दलित नेता जगन्नाथ पहाड़िया को राजस्थान के मुख्यमंत्री पद के लिए चुना गया। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि पहाड़िया को कुर्सी तक पहुंचाने वाले संजय गांधी ही थे। जगन्नाथ पहाड़िया संजय गांधी के करीबी माने जाते थे। लेकिन आपको जानकर आश्चर्य होगा कि एक छोटी सी गलती ने उन्हें सीएम की कुर्सी से हमेशा के लिए दूर कर दिया था।
चार बार सांसद और चार बार विधायक
दरअसल, जगन्नाथ पहाड़िया राजस्थान के पहले और अब तक के एकमात्र दलित मुख्यमंत्री थे। वो 26 साल की उम्र में लोकसभा में शामिल हुए…चार बार सांसद और चार बार विधायक रहे। उन्होंने केंद्र में मंत्री और बाद में बिहार-हरियाणा के राज्यपाल के रूप में कार्य किया। कहा जाता है कि कांग्रेस उन्हें मुख्यमंत्री बनाकर उत्तर भारत के दलितों को आकर्षित करना चाहती थी लेकिन इससे पहले कि कांग्रेस अपना सपना पूरा कर पाती, 13 महीने के भीतर ही जग्गनाथ राजस्थान की सत्ता से बाहर हो गए।
10 जनवरी 1981 का वक्त था…जब आधुनिक हिंदी की मीरा कही जाने वाली कलमकार, सामाजिक कार्यकर्ता और स्वतंत्रता सेनानी महादेवी वर्मा जयपुर के रवीन्द्र मंच पर एक कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में पहुंची थीं और इसके अध्यक्ष थे- जगन्नाथ पहाड़िया। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे सीएम जगन्नाथ पहाड़िया ने मंच से महादेवी वर्मा की कविता पर बोलना शुरू किया। मंच पर बोलते हुए पहाड़िया ने कहा था कि मुझे कभी समझ नहीं आया कि महादेवी वर्मा की कविताएं क्या कहना चाहती हैं…
उन्होंने आगे कहा, “महादेवी वर्मा रहस्यवाद और छायावाद की कवियित्री हैं। उनकी रहस्यवादी और गूढ़ कविताएं जनसामान्य के सिर के ऊपर से निकल जाती हैं। मुझे खुद आज तक उनकी कविताएं कभी समझ नहीं आईं। आज का साहित्य जन-जन का साहित्य होना चाहिए।” उनकी इस टिप्पणी से लेखकों की मंडली में खलबली मच गई और उन्होंने इंदिरा गांधी से जगन्नाथ की जमकर शिकायत की।
जयपुर घटना के ठीक छह महीने बाद 14 जुलाई 1981 को पहाड़िया को अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी। सत्ता छोड़ने से पहले पहाड़िया ने एक पुल का उद्घाटन किया था, जिसके बारे में यह मिथक था कि जो भी उस पुल का उद्घाटन करने का फैसला करेगा, उसके साथ बुरा होगा। स्थानीय लोग इस पुल को सीता ब्रिज कहते हैं। यह पहाड़िया का अपना क्षेत्र भरतपुर की वैर तहसील में था।
कुर्सी जाने के बाद उन्होंने कहा था कि “जब से हाईकमान ने मुझे मुख्यमंत्री बनाया, मुझे पता था कि मैं राजस्थान जैसे समस्याग्रस्त राज्य को चलाने के लिए उपयुक्त व्यक्ति नहीं होऊंगा। प्रदेश में तो पार्टी समिति भी कभी एकजुट नहीं थी।”
जगन्नाथ पहाड़िया का कार्यकाल भले ही 13 महीने का रहा, लेकिन उन्होंने उस अवधि में ही राज्य में पूरी तरह शराबबंदी लागू कर दी थी। पहाड़िया ने एक इंटरव्यू में बताया था कि ”केंद्र सरकार ने वित्त आयोग की सिफारिश के अनुसार शराबबंदी के कारण होने वाले घाटे की पूर्ति नहीं की। इसके बावजूद मैंने शराबबंदी को नहीं हटाया क्योंकि मैं जानता था कि शराबखोरी से गरीब आदमी ही मरता है। दिन भर काम करता है और रात को शराब पीकर, औरत को पीटता है।”
मुख्यमंत्री बनने से पहले पहाड़िया लोकसभा और राज्यसभा सांसद थे। राजीव गांधी के कार्यकाल में वह बिहार के राज्यपाल बनें। 2009 से 2014 तक हरियाणा के राज्यपाल रहे। हालांकि, 20 मई 2021 को कोरोना से उनका निधन हो गया।