घर पर मां इंतजार करती रही लेकिन वह नहीं आए…उन्होंने काफी कम उम्र में अपना घर त्याग दिया…चुनौती स्वीकार की और निकल पड़े बहुजनों का उत्थान करने…जी हां, दलितों की लड़ाई के लिए राह बनाने वाले महान सुधारक कांशीराम की कहानी कुछ ऐसी ही है…कांशीराम अगर आज जीवित होते तो दलित राजनीति का चेहरा कुछ और होता…दलितों की स्थित ही कुछ और होती…कांशीराम ने बहुजनों की लड़ाई सड़क से लेकर सदन तक लड़ी… सब कुछ त्याग कर उन्होंने अपना पूरा ध्यान सिर्फ और सिर्फ बहुजनों की लड़ाई पर लगाया और काफी हद तक उसमें कामयाब भी रहे.
दलितों के मसीहा कांशीराम
कांशीराम ने 1981 में दलित शोषित समाज संघर्ष समिति का गठन किया था, जिसे DS-4 के नाम से भी जाना जाता है. इस दौरान उन्होंने नारा दिया, ठाकुर, बनिया, बाभन छोड़ बाकी सब है डीएस-4…यह नारा इतना प्रभावशाली था कि बहुजन समाज समेत निचली जातियों के लोग सीधे तौर पर कांशीराम से जुड़ गए. इन नारे पर मनुवादियों ने आपत्ति भी दर्ज कराई लेकिन कांशीराम तो सर में कफन बांधकर बहुजनों को उनका अधिकार दिलाने के लिए रणभूमि में कूद चुके थे…ऐसे में मनुवादियों के विरोध का कुछ खास असर पड़ा नहीं.
बहुजन समाज के लोगों पर हो रहे नृशंसता के बीच कांशीराम ने 90 के दशक में ही एक और नारा दिया था…ये नारा था तिलक, तराजू और तलवार, इनको मारो जूते चार. उनके नारे में तिलक…ब्राह्मणों को प्रदर्शित करता है…तराजू…वैश्य और तलवार…क्षत्रिय को प्रदर्शित करता है… कांशीराम के इस नारे में गुस्सा दिखाई देता है…बहुजनों को समाज में उनके अधिकार दिलाने का ललक दिखाई देता है…संघर्ष दिखाई देता है…लड़ाई दिखाई देती है.
90 के दशक में जब कांशीराम देश में अपनी राजनीतिक स्थिति मजबूत कर रहे थे, तब उनका एक और नारा काफी ज्यादा चर्चा में रहा था. उनका नारा था वोट हमारा-राज तुम्हारा, नहीं चलेगा-नहीं चलेगा. कांशीराम के बोल और उनके नारे बहुजनों के दिलों पर सीधा असर कर रहे थे और काफी ज्यादा संख्या में लोग उनसे जुड़ते जा रहे थे. इस महान नेता के बोल ने दलितों को खिलौना समझने वाले राजनीतिक दलों की हेकड़ी निकाल दी थी….
इसके अलावा कांशीराम का नारा था…जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी. इसके अलावा एक नारा जो सबसे ज्यादा मशहूर हुआ वह था, “वोट से लेंगे CM/PM, आरक्षण से लेंगे SP/DM” इस नारे में वोट के जरिए मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री पद और आरक्षण के जरिए डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट और पुलिस सुपरिटेंडेंट के पद लेने की बात कही गई थी.
एक बार कांशीराम मंच पर भाषण देने के लिए खड़े हुए. उन्होंने पहली लाइन में कहा, अगर श्रोताओं में ऊंची जाति के लोग हों तो अपने बचाव के लिए वे वहां से चले जाएं. इसके बाद कांशीराम के समर्थन में जोरदार नारेबाजी हुई. उनकी रैलियों से ऊंची जाति के लोग गायब होते चले गए. वहीं, कांशीराम का एक काफी फेमस कोट है..जिसे हर जगह संदर्भित किया जाता है. उन्होंने कहा था कि जिनको जवानी में चमचागिरी की लत लग जाती है, उनकी पूरी उम्र दलाली में गुजर जाती है. हालांकि, सत्ता प्राप्ति के बाद कांशीराम बहुजनों के लिए काम तो करते रहे लेकिन अपनी तल्ख जबान और नारेबाजियों को कम कर दिया था. वह अपनी राजनीति के अंतिम समय में नारों के जरिए ऊंची जाति पर हमला करने से बचते रहे.