जानिए क्या था चमचा युग जो दलितों को ले गया 100 साल पीछे

Kansiraam
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जब कांशीराम ने ‘जगजीवन राम’ और ‘रामविलास पासवान’ को बताया था ‘चमचा’

क्या आप जानते हैं चमचा युग क्या था ?

चमचा युग ने दलितों को कैसे प्रभावित किया?

क्या इसके पीछे क्रांग्रेसी ब्राह्मणों का षड्यंत्र था ?

कांशीराम ने क्यों अपनी ही बिरादरी के बड़े नेताओं की आलोचना की थी ?

 

कांशीराम ने क्या कहा था ?

दरअसल, अंग्रेजों ने अछूत समाज को अलग धर्म अलग समुदाय की पहचान देने की कोशिश की थी. बाबा साहेब के कारण देश में कमिनुअल अवॉर्ड की शुरुआत हुई थी और इसमें दलितों को अलग निर्वाचन का स्वतंत्र राजनीतिक अधिकार मिला था लेकिन मनुवादियों और कांग्रेसी ब्राह्मणों के षड्यंत्र में बाबा साहेब को रोते हुए यह फैसला वापस लेना पड़ा था. दलितों के धुर विरोधी बने गांधी के कारण दलितों को हक मिलते मिलते रह गया. इसी के बाद शुरु हुआ चमचा युग, जिसकी पुष्टि खुद कांशीराम भी करते हैं…

1932 में पूना पैक्ट के बाद कांग्रेस को यह डर सताने लगा था कि दलित अपने अधिकारों की लड़ाई के लिए अब काफी ज्यादा मुखर हो जाएंगे. ऐसे में दलित विरोधी गांधी के इशारे पर कांग्रेस ने एक बहुत ही भयंकर षड्यंत्र रचा. अपने षड्यंत्र के तहत तब दलितों के अधिकारों की आवाज उठाने वाले दलित नेताओं पर कांग्रेस अपनी पकड़ बनाने लगी. एक-एक  कर कई दलित नेताओं को कांग्रेसियों ने अपने पाले में ले लिया. उन्होंने बाबा साहेब पर भी डोरे डाले थे लेकिन वह सफल नहीं हो पाए. धीरे धीरे कांग्रेस, खुद को दलित हितैषी के रुप में पेश करने लगी. लोगों के दिमाग में यह भरा जाने लगा कि कांग्रेस दलित हितों के साथ समझौता नहीं करेगी…

यह सब कुछ कांग्रेस पार्टी एक प्लान के तहत कर रही थी. इस चक्कर में दलितों ने कांग्रेस का जमकर समर्थन किया, यहां तक कि कई नेता भी कांग्रेस की ओर खींचे चले आए. जगजीवन राम भी उन्हीं में से एक थे. जगजीवन  राम देश की पहली सरकार में श्रम मंत्री बनें…उसके बाद कांग्रेस की सरकार में उन्होंने अन्य कई मंत्रालय भी संभालें. उन्होंने तमाम वैसे कानून लागू किए, जिससे देश के आम नागरिकों को लाभ मिले…लेकिन सबसे अहम चीज यह रही कि जिस जगजीवन  राम ने अपने सार्वजनिक जीवन की शुरुआत दलितों की लड़ाई लड़ने  से की थी, वह कांग्रेस के रंग में रंगते चले गए.

दिग्गज दलित नेता रामविलास पासवान का भी यही हाल रहा. भारतीय राजनीति में उन्हें मौसम विज्ञानी कहा गया, जहां उन्हें फायदा दिखा, जिस पार्टी के साथ उन्हें फायदा दिखा, वह वहां पहुंच गए. दलित उत्थान की इनकी लड़ाई भी सत्ता के रंग में ओझल होती चली गई.

इन्हीं सब चीजों को देखते हुए मान्यवर कांशीराम के रक्त में उबाल आने लगा था. बीएसपी के संस्थापक ने पूना पैक्ट के 50 साल पूरा होने पर 23 सितंबर 1982 को अपनी एक किताब का विमोचन किया. किताब का नाम था- एन ऐरा ऑफ स्टूजेज यनी चमचा युग. कांशीराम ने लिखा था कि पूना पैक्ट की वजह से ही दलित अपने वास्तविक प्रतिनिधि चुनने से वंचित कर दिए गए. उन्हें हिंदुओं द्वारा नामित प्रतिनिधि को चुनने के लिए मजबूर कर दिया गया. ये थोपे गए प्रतिनिधि हिंदुओं के औजार या चमचे के रूप में कार्य करने के लिए मजबूर हैं. कांशीराम ने इस किताब में बताया है कि दलितों को अन्य दलों के साथ काम करते समय अपनी बातों और विचारधारा से समझौता नहीं करना चाहिए और पूरे समाज के विकास के लिए बोलना चाहिये. अप्रत्यक्ष तौर पर उनका इशारा, वैसे दलित नेताओं पर भी था जो कांग्रेस में शामिल होकर, उसकी विचारधार में रम चुके थे.

 

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