Why political war on Baba Saheb: हाल ही, में गृह मंत्री अमित शाह के राज्यसभा में संविधान निर्माता बाबा साहब भीम राव आंबेडकर को लेकर दिए गए बयान पर देश की राजनीति में हलचल मच गई थी। जिसके बाद बसपा प्रमुख मायावती और उनकी पार्टी के नेता इस मुद्दे पर बीजेपी से ज्यादा कांग्रेस के खिलाफ मुखर दिखाई दे रहे हैं। जिसमें दलित राजनीति, इतिहास, और राजनीतिक रणनीतियाँ शामिल हैं। वही बाबा साहब भीमराव अंबेडकर और दलित वोटों को लेकर नई राजनीति शुरू हो गई है. बीजेपी, कांग्रेस के साथ बसपा प्रमुख मायावती और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव भी इस बयानबाजी में कूद पड़ी हैं। तो चलिए इस लेख में जानते आखिर बाबा साहेब पर सियासी संग्राम के पीछे की वजह क्या हैं ।
बाबा साहेब पर सियासी संग्राम क्यों?
यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण सवाल है जो भारत की राजनीति में अक्सर उठता रहता है। बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर, भारत के संविधान के निर्माता और दलित समुदाय के एक प्रतीक हैं। उनके नाम का इस्तेमाल राजनीति में अक्सर इसलिए किया जाता है क्योंकि उनका योगदान भारतीय राजनीति और समाज में बेहद महत्वपूर्ण रहा है। लेकिन इन दिनों बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर को लेकर सियासी हलचल काफी तेज हो गई हैं। दरअसल, बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर, संविधान को लेकर दिल्ली से लेकर लखनऊ विधानसभा तक को देखने को मिला। संसद में बीजेपी और कांग्रेस सांसदों के विरोध प्रदर्शन और धक्कामुक्की के साथ लखनऊ विधानसभा में सपा कार्यकर्ताओं का विरोध इतना बढ़ गया कि सदन स्थगित करना पड़ा।
वही राजनीतिक जानकारों का कहना है कि दलितों वोटों पर बसपा की कमजोर होती पकड़ के बाद सपा, कांग्रेस और भाजपा इस बड़े हिस्से को अपने पाले में लाने के लिए सारे दांव आजमा रहे हैं. यूपी में ही अकेले 21 फीसदी दलित वोट हैं और राज्य की 180 के करीब विधानसभा सीटों पर दलित मतदाता निर्णायक हैं. ऐसे में संविधान के बाद बाबा साहेब पर इतना सियासी घमासान देखने को मिल रहा है. हरियाणा और फिर झारखंड और महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में दलित और आदिवासी वोटों के झुकाव का परिणाम भी चौंकाने वाले नतीजों में देखने को मिला है. 2029 के पहले 2027 का उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव सेमीफाइनल की तरह होगा।
बाबा साहेब पर सियासी संग्राम के पीछे कई कारण
- वोट बैंक: दलित समुदाय भारत की जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा है। इसलिए, राजनीतिक दल उनके वोट हासिल करने के लिए बाबा साहेब के नाम का इस्तेमाल करते हैं। वे दावा करते हैं कि वे ही बाबा साहेब के असली वारिस हैं और उनके विचारों को आगे बढ़ा रहे हैं।
- सामाजिक न्याय: बाबा साहेब ने सामाजिक न्याय और समानता के लिए लड़ाई लड़ी थी। राजनीतिक दल इस मुद्दे को उठाकर लोगों को अपनी ओर आकर्षित करने की कोशिश करते हैं।
- विपक्षी दलों पर हमला: राजनीतिक दल एक-दूसरे पर आरोप लगाते हैं कि वे बाबा साहेब के विचारों का अपमान कर रहे हैं। इससे राजनीतिक माहौल गरमा जाता है और लोगों का ध्यान अन्य मुद्दों से हट जाता है।
- ऐतिहासिक व्यक्तित्व का राजनीतिकरण: बाबा साहेब जैसे महान व्यक्तित्वों को राजनीतिकरण से बचाना बहुत जरूरी है। लेकिन, दुर्भाग्य से, राजनीतिक दल अपने स्वार्थ के लिए उनके नाम का इस्तेमाल करते हैं।