Dalit discrimination:हाल ही में मध्य प्रदेश के छतरपुर से एक शर्मनाक खबर आई है। जहाँ कुछ लोगों ने सरपंच के साथ मिलकर 20 परिवारों को समाज से इसलिए बहिष्कृत कर दिया क्योंकि उन्होंने छुआछूत और जातिगत भेदभाव के चलते एक दलित के हाथ से प्रसाद खाया और लिया था। यह एक गंभीर सामाजिक मुद्दा है जो भारतीय समाज में जातिवाद और भेदभाव की जड़ों को दर्शाता है।
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जैसे कि आप सब जानतें ही कि इंसान चांद पर पहुंच गया है और भारत में कहीं-कहीं अभी भी लोग छुआछूत और जातिगत भेदभाव में लगे हैं। जी हाँ, ऐसा ही एक मामला मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले के अतरार गांव में छुआछूत और जातिगत भेदभाव के चलते एक दलित के हाथ से प्रसाद खाया और लिया था। जिस कारण गाँव के लोगो ने सरपंच के साथ मिलकर 20 परिवार को समाज से बहिष्कृत कर दिया है।
जिसके बाद सभी ग्रामीणों ने मिलकर गांव के सरपंच संतोष तिवारी पर आरोप लगाते हुए पुलिस अधीक्षक से शिकायत दर्ज कराई है, और जल्द से जल्द कार्रवाई करने की भी मांग की है। दरअसल, ग्रामीणों का आरोप है कि सरपंच के फरमान के चलते लोग उन्हें सामाजिक कार्यों में नहीं बुला रहे हैं, न ही कोई उनसे बात कर रहा है, इसके अलावा उन्हें सामान खरीदने के लिए गांव से बाहर जाना पड़ रहा है।
हनुमान मंदिर में चढ़ाया था प्रसाद
इस मामले को लेकर बिजावर थाने के एसडीओपी शशांक जैन ने गांव में बैठक कर ग्रामीणों से मामले पर चर्चा की और मौके पर ग्रामीणों के बयान भी दर्ज किए। आगे बात करते हुए एसडीओपी ने कहा कि शिकायत के आधार पर जांच की जा रही है, जो भी दोषी पाया जाएगा उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।
आपको बता दें कि अतरार गांव निवासी जगत अहिरवार ने आरोप लगाया है कि उसने पिछले साल 20 अगस्त 2024 को हनुमान मंदिर में प्रसाद चढ़ाया था। पुजारी ने प्रसाद चढ़ाया, जिसके बाद प्रसाद लोगों में बांटा गया। इसके बाद से गांव वालों ने उन सभी लोगों का बहिष्कार कर दिया है, जिन्हें उसने प्रसाद बांटा था।
ऐसे घटनाएं यह दर्शाती हैं कि कैसे कुछ समुदायों में भेदभाव के कारण लोगों के जीवन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। हनुमान जी का प्रसाद धार्मिक एकता का प्रतीक होना चाहिए, लेकिन जब जातिगत भेदभाव इसे प्रभावित करता है, तो यह एक चिंताजनक स्थिति बन जाती है।
छुआछूत और जातिगत भेदभाव
जातिगत भेदभाव भारतीय समाज में गहराई से जड़ जमाए हुए है। जातिगत भेदभाव का मतलब है सामाजिक और धार्मिक लक्ष्यों से कुछ लोगों को अलग-थलग करना या बहिष्कृत करना। यह मुख्य रूप से विभिन्न वर्गों के बीच ऊंच-नीच के आधार पर होता है, जिसमें ऊंची और निचली जातियों को नीची नजर से देखा जाता है। जिसमे निम्न जातियों को रोजगार, शिक्षा और आर्थिक संसाधनों से वंचित रखा जाता है, जिससे वे गरीबी में रहते हैं।
इन सब मुद्दों का समाधान करने के लिए जागरूकता, शिक्षा, और सामाजिक सुधारों की आवश्यकता है। विभिन्न संगठन और सरकारें इन प्रथाओं को समाप्त करने के लिए प्रयासरत हैं, लेकिन इसे समाप्त करने के लिए समाज के सभी वर्गों का सहयोग भी आति आवश्यक है।