SC Commission office Inauguration: एससी आयोग (सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय) के कार्यालय उद्घाटन में दलित नेताओं को न्योता न मिलने का मुद्दा हाल ही में चर्चा में है। यह घटना राजनीतिक और सामाजिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, क्योंकि इस आयोग का उद्देश्य भारत में अनुसूचित जातियों (SCs) और अन्य कमजोर वर्गों के अधिकारों की रक्षा करना और उनका कल्याण सुनिश्चित करना है। वही नाहन गौरव विकास संस्था के अध्यक्ष सुधीर कांत रमौल ने गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि जहां एक ओर एससी आयोग का कार्यालय खोला गया, वहां किसी दलित नेता को आमंत्रित नहीं किया गया।
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पर्यावरण और कानून दोनों की अनदेखी
हिमाचल प्रदेश के नाहन के नौणी का बाग क्षेत्र में अवैध पेड़ कटान और दलित अधिकारों की उपेक्षा को लेकर विवाद गहराता जा रहा है। नाहन गौरव विकास संस्था के अध्यक्ष सुधीर कांत रमौल ने गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि जहां एक ओर एससी आयोग का कार्यालय खोला गया, वहां किसी दलित नेता को आमंत्रित नहीं किया गया। यह घटना दलित समुदाय के प्रति उदासीन रवैये और उनके अधिकारों को दरकिनार करने का स्पष्ट उदाहरण है। उन्होंने कहा कि सामाजिक न्याय और दलित सशक्तिकरण के नाम पर बड़े-बड़े वादे किए जाते हैं, लेकिन जमीनी हकीकत में इन्हें लागू नहीं किया जाता।
“पर्यावरण और कानून दोनों की अनदेखी” एक गंभीर समस्या है, जो वर्तमान समय में कई देशों, खासकर विकासशील देशों में अधिक दिखाई देती है। इसका मतलब है कि पर्यावरण संरक्षण और कानूनी प्रावधानों को नजरअंदाज किया जा रहा है, जो प्राकृतिक संसाधनों की हानि और सामाजिक असमानता की बढ़ती समस्याओं को जन्म दे रहा है। नौणी का बाग में नगर परिषद की भूमि पर सैकड़ों पेड़ों का अवैध कटान किया गया, लेकिन प्रशासन ने सिर्फ 7 पेड़ों पर जुर्माना लगाकर मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया। रमौल ने कहा कि वन संरक्षण अधिनियम 1980 की खुलेआम धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। जिस भूमि पर पेड़ काटे गए, वह गैर-मुमकिन चारागाह और दरख्तान की श्रेणी में आती है, जहां बिना अनुमति के किसी भी प्रकार की कटाई गैरकानूनी है। लेकिन न तो एफआईआर दर्ज की गई और न ही आरोपियों के खिलाफ कोई सख्त कार्रवाई हुई।
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पर्यावरण और वन संरक्षण – SC Commission office Inauguration
रमौल ने मीडिया के माध्यम से सरकार से अपील की है कि पर्यावरण और वन संरक्षण अधिनियम 1980 के तहत दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए। उन्होंने कहा कि यह मामला केवल अवैध कटान का नहीं है, बल्कि यह दलित समुदाय के अधिकारों और उनकी सामाजिक सुरक्षा से भी जुड़ा है। यदि सरकार और प्रशासन समय रहते इस मामले में हस्तक्षेप नहीं करते हैं, तो यह दलितों और अन्य कमजोर वर्गों के प्रति गंभीर अन्याय होगा। यह मुद्दा कई राजनीतिक और सामाजिक समुदायों द्वारा आलोचना का विषय बन सकता है, क्योंकि ऐसे आयोजनों में दलित नेताओं को शामिल करना, उनके अधिकारों और समावेशिता की भावना को मजबूत करने में मदद करता है।