JoshiMath: उत्तराखंड का जोशीमठ सुर्खियों में बना रहता है। साल 2023 में भूधंसाव के कारण चर्चा में रहा यह क्षेत्र 2024 में दलित परिवारों के सामाजिक बहिष्कार और भेदभाव की वजह से खबरों में रहा। ये मामला एक धार्मिक अनुष्ठान से जुड़ा था, जिसमें ढोल बजाने से इनकार करने पर एक दलित व्यक्ति पर जुर्माना लगाया गया। हालांकि, उच्च जाति के लोगों का दावा था कि यह जुर्माना शराब पीकर माहौल खराब करने की वजह से लगाया गया था। लेकिन दलित समुदाय इसे जातिगत भेदभाव का मामला बताया। आइए जानते हैं इस मामले के बारे में विस्तार से।
मामला कैसे शुरू हुआ?
जोशीमठ से 35 किलोमीटर दूर सुभाई ग्राम पंचायत में अप्रैल 2024 में बैसाखी मेले के दौरान पूजा का आयोजन किया गया था। इस पूजा में दलित समुदाय के पुष्कर लाल ढोल बजाने पहुंचे, लेकिन वह पूरी रात ढोल नहीं बजा सके। इस घटना को लेकर विवाद शुरू हो गया। पुष्कर लाल का कहना है कि उनकी तबीयत खराब थी, इसलिए वह ढोल नहीं बजा पाए। वहीं, उच्च जाति के लोगों का आरोप है कि वह शराब के नशे में थे और गाली-गलौज कर रहे थे, जिससे माहौल बिगड़ गया।
इस घटना के बाद ग्राम पंचायत ने पुष्कर लाल पर ₹5000 का जुर्माना लगा दिया। दलित पक्ष की तरफ से कहा गया कि यह सजा सिर्फ इसलिए दी गई क्योंकि उन्होंने पूजा में हिस्सा लेने से इनकार कर दिया। वहीं, पंचायत के सदस्यों का दावा है कि जुर्माना केवल पुष्कर लाल पर ही नहीं, बल्कि अन्य लोगों पर भी लगाया गया था।
एक और विवाद और बहिष्कार का ऐलान
मामला यहीं शांत नहीं हुआ। जुलाई 2024 में जब बगड़वाल नृत्य के दौरान शंकर लाल नामक दलित ढोल बजाने पहुंचे, तो एक बार फिर विवाद खड़ा हो गया। शंकर लाल का कहना है कि उन्हें जातिसूचक गालियां दी गईं और ढोल बजाने से रोका गया। इसके बाद 14 जुलाई को ग्राम पंचायत ने सभी दलित परिवारों पर ₹5000 का अतिरिक्त जुर्माना लगा दिया और कहा कि यदि यह जुर्माना नहीं दिया गया तो उनका सामाजिक बहिष्कार कर दिया जाएगा।
पुलिस में शिकायत और मुकदमा दर्ज – दलित समुदाय ने 16 जुलाई 2024 को पुलिस में शिकायत दर्ज कराई, जिसके बाद 28 लोगों के खिलाफ नामजद एफआईआर दर्ज की गई। एसपी चमोली सर्वेश पंवार के अनुसार, प्राथमिक जांच में मामला सही पाया गया और आगे की कार्रवाई जारी है। इस बीच, दलित पक्ष ने तीन और लोगों के नाम एफआईआर में जोड़ने की मांग की है।
महापंचायत और संघर्ष समिति का गठन
इस घटना से नाराज जोशीमठ और आसपास के दलित समुदाय ने एक महापंचायत आयोजित की और न्याय के लिए संघर्ष समिति का गठन किया। इस समिति के अध्यक्ष कांग्रेस के प्रदेश सचिव मोहन बजवाल को चुना गया। बजवाल का कहना है कि यह पूरी तरह से गैर-राजनीतिक आंदोलन है और इसमें केवल एससी-एसटी समुदाय के लोग शामिल हैं।
उन्होंने चेतावनी दी कि यदि तीन-चार दिनों में अभियुक्तों की गिरफ्तारी नहीं होती तो पूरे जिले में बड़े स्तर पर आंदोलन किया जाएगा। उन्होंने कहा कि संघर्ष समिति भविष्य में किसी भी प्रकार के दलित उत्पीड़न के खिलाफ आवाज उठाएगी।
विरोध और उच्च जाति के लोगों का डर
इस पूरे मामले में जहां एक ओर दलित समुदाय अपने हक के लिए संघर्ष कर रहा है, वहीं उच्च जाति के लोगों को यह डर सता रहा है कि पुलिस एकतरफा कार्रवाई कर सकती है। सौरभ सिंह, जो इस विवाद में एक प्रमुख नाम हैं, का कहना है कि मीडिया और पुलिस केवल एक पक्ष की बात सुन रही है और एससी-एसटी कानून का दुरुपयोग किया जा सकता है।
क्या मिलेगा न्याय?
जोशीमठ में इस तरह की घटनाएं सामाजिक ताने-बाने को नुकसान पहुंचा रही हैं। जहां एक ओर पुलिस प्रशासन दलितों के साथ हो रहे भेदभाव को रोकने का दावा कर रहा है, वहीं दूसरी ओर अभियुक्तों की गिरफ्तारी में देरी से दलित समुदाय में आक्रोश बढ़ रहा है।
इस संघर्ष में दलित समुदाय पूरी ताकत से खड़ा है और इंसाफ की लड़ाई को राष्ट्रीय स्तर पर ले जाने की तैयारी कर रहा है। लेकिन दुख की बात यह है कि समय के साथ यह मामला ठंडे बस्ते में चला गया और मीडिया ने भी इस केस से दूरी बना ली जिसके कारण इस केस में अंतिम फैसले की जानकारी सामने नहीं आ सकी।