ऐसी तमाम चीजें सोशल मीडिया पर आये दिन देखने को मिलती रहती है. ईवीएम को लेकर सवाल उठते रहते हैं. ईवीएम को लेकर भाजपा, चुनाव आयोग और मोदी सरकार पर सवाल उठाए जाते रहे हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि ईवीएम को लेकर दलितों की राय क्या है…बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने ईवीएम को लेकर क्या कहा है.
EVM से चुनाव न हो तो मोदी जीत ही नहीं सकते
अगर हम ईवीएम के इस्तेमाल की बात करें तो इसका इस्तेमाल सबसे पहले 1982 में हुआ..वोटों की गिनती में हो रही देरी और बूथ कैपचरिंग जैसी समस्याओं से निजात पाने के लिए तत्कालीन सरकार और चुनाव आयोग ने ईवीएम पर जोर दिया..कुछ बूथों पर ईवीएम से चुनाव कराए गए लेकिन ईवीएम को लेकर ठोस कानून न होने की वजह से उन चुनावों को रद्द कर दिया गया. इसके बाद साल 1989 में संसद ने लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 में संशोधन किया और चुनावों में ईवीएम के इस्तेमाल का प्रावधान किया गया.
इसके बाद भी कुछ सालों तक चुनावों में पूर्णरुप से ईवीएम का इस्तेमाल नहीं हुआ. ईवीएम को लेकर आम सहमति 1998 में बन पाई. इसके बाद जो भी चुनाव हुए उनमें ईवीएम के इस्तेमाल में बढोत्तरी देखने को मिली. साल 2001 में 3 लोकसभा और 110 से ज्यादा विधानसभा सीटों पर ईवीएम का इस्तेमाल हुआ.
ईवीएम पर पहली बार सवाल उठाने वाली पार्टी भारतीय जनता पार्टी ही थी. 2009 के लोकसभा चुनाव में पहली बार ईवीएम को लेकर सवाल खड़े किए गए. इस दौरान लालकृष्ण आडवाणी और सुब्रमण्यम स्वामी ने ईवीएम पर सवाल खड़े किए थे और स्वामी तो इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गए थे. इसके बाद ही सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर वीवीपैट के उपयोग को मंजूरी मिली थी. इसके बाद 2014 में भाजपा सत्ता में आई लेकिन 2017 में 13 राजनीतिक पार्टियां ईवीएम पर सवाल उठाते हुए चुनाव आयोग पहुंच गई. उसके बाद से अभी तक ईवीएम पर लगातार सवाल उठाए जा रहे हैं.
ऐसे आरोप लगाए जाते हैं कि ईवीएम को हैक किया जा सकता है…जिस पर चुनाव आयोग ने कई बार इसके लिए ओपेन सेशन भी रखा है कि जिन्हें भी लगता है कि ईवीएम हैक हो सकता है, वे आएं और इसे हैक करके दिखाएं…लेकिन किसी भी राजनीतिक पार्टी के किसी भी नेता ने इसमें दिलचस्पी नहीं ली और वे सिर्फ और सिर्फ सवाल ही उठाते रहे हैं. यहां तक कि कई राज्यों में विपक्षी पार्टियों ने इसी ईवीएम से हुए चुनावों में बेहतरीन जीत हासिल की है, इसके बाद भी सवाल ज्यों के त्यों बने हुए हैं.
हालांकि, कई बार ईवीएम में गड़बड़ियां देखने को भी मिली है. हाल ही में ट्रायल के दौरान केरल के एक बूथ पर ईवीएम में गड़बड़ी देखने को मिली थी, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से रिपोर्ट मांगी थी. आपको बता दें कि बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती भी कई बार EVM का विरोध कर चुकी हैं।
साल 2022 में उत्तर प्रदेश के चुनावी नतीजे के तुरंत बाद ही मायावती ने EVM की भूमिका पर सवाल उठाए थे। वहीं पिछले साल उन्होंने मुख्य निर्वाचन आयुक्त से मत पत्र से चुनाव कराए जाने के लिए पुरजोर मांग करते हुए कहा था कि देश में EVM के जरिए चुनाव को लेकर यहां की जनता में किस्म-किस्म की आशंकाएं व्याप्त हैं और उन्हें खत्म करने के लिए बेहतर यही होगा कि अब यहां आगे छोटे-बड़े सभी चुनाव पहले की तरह मत पत्रों से ही कराए जाएं।
ईवीएम में गड़बड़ियां
वहीं, 2024 के लोकसभा चुनाव को लेकर जब न्यूज 24 ने दलित समुदाय के कुछ लोगों से बात की तो यह बात सामने आई कि आज भी दलित वोट मायावती के पक्ष में हैं। दलित मतदाताओं का कहना है कि मायावती के प्रति उनका समर्थन वास्तविक स्क्रीन पर नजर नहीं आता क्योंकि EVM वोटों में हेराफेरी करती है। अगर बैलेट पेपर से वोट किया जाए तो पूरे देश में मायावती के समर्थन का डंका बजता नजर आएगा। वहीं मतदाताओं ने मायावती सियासी समीकरण से बाहर होने पर भी EVM को जिम्मेदार ठहराया।
अगर मायावती के सियासी समीकरण की बात करें तो उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 के दौरान 403 सीटों में से 1 सीट पर सिमटने वाली पार्टी बीएसपी फिलहाल लोकसभा के सियासी समीकरण से गायब नजर आ रही है। 2024 चुनाव में मायावती के नेतृत्व में पार्टी लड़खड़ाती नजर आ रही है लेकिन अभी भी कई सीटों पर बीएसपी की पकड़ है. नतीजें बीएसपी के पक्ष में जाएंगे या नहीं जाएंगे इस पर सभी की नजरें टिकी हुई है.
ईवीएम को लेकर एक चर्चा यह भी है कि दुनिया के तमाम विकसित देश, जिन्होंने ईवीएम की शुरुआत की…वो अब वैलेट पेपर की ओर लौट चुके हैं लेकिन भारत में ईवीएम अभी भी सर्वोपरि है. ईवीएम को लेकर चीजें क्या हैं…यह कितना सही और कितना गलत है…इस पर टिप्पणी नहीं किया जा सकता…आप ईवीएम को लेकर क्या सोचते हैं हमें कमेंट सेक्शन में जरुर बताएं