दलित ईसाइयों के अधिकार खतरे में, कैथोलिक नेताओं ने सरकार से कार्रवाई की मांग की

Dalit Christian: भारत में दलित ईसाइयों के साथ भेदभाव एक गंभीर मुद्दा है। कैथोलिक नेताओं ने इस पर चिंता जताई है और इसे संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन बताया है। तो चलिए आपको इस लेख में पुरे मामले के बारे में बताते है।

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दलित ईसाइयों के साथ भेदभाव

दलित ईसाई, जिन्हें हिंदू वर्ण व्यवस्था में “अछूत” कहा जाता था, भारत में सबसे हाशिए पर रहने वाले समुदायों में से एक हैं। वे सामाजिक और आर्थिक भेदभाव का सामना करते हैं, और उन्हें अक्सर शिक्षा, रोजगार और आवास जैसे अवसरों से वंचित किया जाता है।

कैथोलिक नेताओं ने सरकार से दलित ईसाइयों के खिलाफ भेदभाव को समाप्त करने के लिए ठोस कदम उठाने का आह्वान किया है। उन्होंने यह भी कहा है कि चर्च दलित ईसाइयों के अधिकारों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है। वही मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, चंगनास्सेरी आर्चडायोसिस के सिरो-मालाबार चर्च ने चर्चों को एक सर्कुलर जारी किया है, जिसमें केंद्र और राज्य सरकारों की आलोचना की गई है।

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कैथोलिक नेताओं ने जताई चिंता

चंगनास्सेरी के आर्कबिशप मार थॉमस थारायिल ने सरकार पर ईसाई समुदाय की अनदेखी करने का आरोप लगाया। सर्कुलर में कहा गया है, “बफर जोन, पर्यावरण कानून, वन्यजीवों पर हमले, वन कानून और वक्फ से जुड़े कानूनी मामलों के कारण दैनिक जीवन कठिन होता जा रहा है। अगर जन कल्याण ही लक्ष्य है, तो केंद्र और राज्य सरकारों का हस्तक्षेप जरूरी है।”

चर्च ने यह भी उल्लेख किया कि ईसाई अल्पसंख्यक समूहों के शैक्षणिक, सामाजिक और आर्थिक पिछड़ेपन का अध्ययन करने के लिए जस्टिस बेंजामिन कोशी आयोग की नियुक्ति की गई थी। हालांकि, 17 मई, 2023 को सरकार को सौंपी गई रिपोर्ट अब तक सार्वजनिक नहीं की गई है और प्रक्रियागत देरी में उलझी हुई है।

वही रजिस्ट्रार ने पूछा, “यदि यह आरोप लगाया जाता है कि इस रिपोर्ट के प्रकटीकरण में निहित स्वार्थों द्वारा बाधा उत्पन्न की जा रही है, जिसमें केरल में ईसाई समुदाय की धारणा के लिए कई महत्वपूर्ण कार्यकर्ता शामिल हैं, तो इसे कौन स्वीकार कर सकता है?”

दलित ईसाइयों को अनुसूचित जातियों की श्रेणी में शमिल

कैथोलिक चर्च के कुछ नेता इस बात पर जोर देते हैं कि दलित ईसाइयों को अनुसूचित जातियों की श्रेणी में शामिल किया जाना चाहिए, ताकि उन्हें सरकारी योजनाओं और सहायता का लाभ मिल सके। इसके अलावा, वे दलित ईसाइयों के अधिकारों की रक्षा के लिए कानूनी और राजनीतिक कदम उठाने की आवश्यकता पर भी बल दे रहे हैं।

वही कैथोलिक बिशप्स कॉन्फ्रेंस ऑफ इंडिया (CBCI) के दलित और पिछड़े वर्ग कार्यालय के पूर्व सचिव फादर देवसागया राज ने कहा कि दलित ईसाई पूरे भारत में फैले हुए हैं, खासकर दक्षिणी राज्यों में। उन्होंने कहा, “केरल में देश में सबसे ज़्यादा ईसाई आबादी है। पुर्तगाली मिशनरियों के आने के बाद कई दलितों ने ईसाई धर्म अपना लिया, न सिर्फ़ लैटिन रीति से बल्कि दो अन्य सीरियाई रीतियों से भी।”

“चूंकि दलित ईसाइयों को अनुसूचित जाति (SC) का दर्जा नहीं दिया गया है, इसलिए वे आर्थिक रूप से पिछड़े हैं और सामाजिक रूप से अभी भी बहिष्कृत हैं। कुछ साल पहले केरल में एक दलित ईसाई की ऑनर किलिंग से समाज में दलित ईसाइयों (Dalit Christian) के साथ भेदभाव साफ़ तौर पर दिखता है। केंद्र सरकार को सभी लोगों के साथ बिना किसी भेदभाव के समान व्यवहार करना चाहिए।

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