मध्य प्रदेश सरकार ने पिछले साल चीतों के संरक्षण के लिए बड़ा कदम उठाया था, जिसमें कूनो राष्ट्रीय उद्यान के आस-पास के 11 आदिवासी गांवों को खाली कराया गया। इस कदम से चीतों के लिए एक सुरक्षित और प्राकृतिक रहवास बनाने का प्रयास किया गया है, लेकिन इस निर्णय ने आदिवासी समुदाय के बीच कई सवाल खड़े कर दिए हैं। इन गांवों की भूमि अब वनखंड के रूप में घोषित कर दी गई है, जिससे चीतों के लिए एक निर्बाध और सुरक्षित क्षेत्र सुनिश्चित किया जा सके। हालांकि, इस प्रक्रिया में आदिवासी समुदाय के जीवन और उनके पारंपरिक निवास स्थान से जुड़ी कई चुनौतियाँ भी सामने आई हैं।
चीतों के लिए सुरक्षित आवास और कूनो का महत्व
मध्य प्रदेश सरकार का यह कदम चीतों के संरक्षण के उद्देश्य से उठाया गया है, जो भारत में विलुप्त हो चुके थे और अब उन्हें पुनर्स्थापित करने की कोशिश की जा रही है। कूनो राष्ट्रीय उद्यान का क्षेत्रफल पहले 54,249 हेक्टेयर था, लेकिन अब इसे बढ़ाकर 1,77,761 हेक्टेयर कर दिया गया है, जिससे चीतों के लिए एक बड़ा और निर्बाध रहवास मिलेगा। सरकार का लक्ष्य यह है कि चीतों का संरक्षण सिर्फ कूनो तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और राजस्थान की सीमाओं तक एक विशाल वन क्षेत्र तैयार किया जाएगा, जिससे चीतों के लिए सुरक्षित मार्ग बन सके।
आदिवासी समुदाय का पुनर्वास और उनके आक्रोश
कूनो के अंदर बसे 18 गांवों में से अब तक 11 गांवों को खाली कराया जा चुका है। इनमें बरेड, लादर, पांडरी, खजूरी, पालपुर जैसे गांव शामिल हैं, जहां आदिवासी समुदाय के लोग निवास करते थे। इन गांवों को खाली करने के बाद, सरकार ने इन ग्रामीणों को अन्य जगहों पर भूमि और मुआवजा प्रदान किया है। हालांकि, इस पुनर्वास प्रक्रिया में कई ग्रामीणों में असंतोष और आक्रोश देखा जा रहा है।
आदिवासी समुदाय के लोग अपनी पारंपरिक भूमि और रहन-सहन से जुड़ी अपनी पहचान से बहुत गहरे जुड़े होते हैं। गांवों से विस्थापित होने के बाद, उन्हें नए स्थानों पर अपनी आजीविका और सांस्कृतिक जीवन के नए तरीके अपनाने में कठिनाई हो रही है। कई ग्रामीणों का कहना है कि उन्हें अपनी जीवनशैली को बदलने के लिए मजबूर किया जा रहा है, और यह उनके लिए एक कठिन निर्णय है।
सरकार की योजना और ग्रामीणों के लिए समर्थन
सरकार ने आदिवासी समुदाय के लिए भूमि और मुआवजा देने का वादा किया है, लेकिन इस कदम से उनकी सांस्कृतिक पहचान और पारंपरिक जीवनशैली पर असर पड़ा है। हालांकि, सरकार का यह कहना है कि यह कदम चीतों के संरक्षण और पर्यावरण संतुलन को बनाए रखने के लिए आवश्यक था, लेकिन इस प्रक्रिया में आदिवासी समुदाय के विचारों को भी समझने की जरूरत है।
सरकार ने गांवों के पुनर्वास के लिए अन्य स्थानों पर भूमि आवंटित की है, लेकिन यह देखना होगा कि इन स्थानों पर आदिवासी लोगों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति कैसी होगी। इसके अलावा, आदिवासी समुदाय के लिए रोजगार और शिक्षा के अवसरों का प्रावधान भी महत्वपूर्ण है, ताकि वे नए स्थानों पर खुद को अनुकूलित कर सकें।
कूनो राष्ट्रीय उद्यान में चीतों के संरक्षण के प्रयासों को सफलता मिलने के बावजूद, आदिवासी समुदाय के पुनर्वास और उनकी जीवनशैली के लिए काम करने की जरूरत है। सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि आदिवासी लोग अपने पारंपरिक निवास स्थानों से हटने के बाद भी सम्मान और बेहतर जीवन जीने के अवसर प्राप्त कर सकें। केवल चीतों के संरक्षण से पर्यावरण की स्थिति बेहतर नहीं हो सकती; इसके लिए आदिवासी समुदाय के जीवन में बदलाव लाने के साथ-साथ उनके अधिकारों और उनके सांस्कृतिक जीवन को भी बचाए रखने की जरूरत है।