Dalits issue in Madhya Pradesh: भारत जैसे विकासशील देश में, जहाँ आधुनिकता और प्रगति की बात की जाती है, देश का एक बड़ा हिस्सा आज भी बुनियादी सुविधाओं से वंचित है। मध्य प्रदेश के सागर जिले का तिली गाँव इसका एक उदाहरण है, जहाँ दलित-आदिवासी समुदाय के लोग बेहद दयनीय स्थिति में रह रहे हैं।
झोपड़ियों में जीवन: बुनियादी सुविधाओं का अभाव
तिली गाँव के पठार पर स्थित इस बस्ती में लगभग 100-150 झोपड़ियाँ हैं। यहाँ रहने वाले ज़्यादातर लोग अनुसूचित जाति और जनजाति समुदाय से हैं। यह बस्ती पक्के मकान, सड़क, बिजली, पानी और स्वास्थ्य सेवाओं जैसी बुनियादी सुविधाओं से पूरी तरह वंचित है।
बस्ती में पानी का संकट इतना गंभीर है कि महिलाएँ गंदे पानी में कपड़े धोने को मजबूर हैं। लोगों को पीने और घरेलू पानी के लिए दो किलोमीटर से ज़्यादा का सफ़र तय करना पड़ता है। सुदामा नाम की एक महिला कहती है, “हम पानी के लिए पठार पर चढ़ते हैं, जो हमारी कमर तोड़ने जैसा है।”
सड़क की स्थिति: कीचड़ और गंदगी वाली सड़कें
बस्ती में न तो पक्की सड़कें हैं और न ही उचित परिवहन सुविधाएँ। बारिश के दिनों में कीचड़ के कारण सड़कें इतनी खराब हो जाती हैं कि लोग आए दिन फिसलकर गिरते हैं। बस्ती में रहने वाले धनराज कहते हैं, “गर्भवती महिलाओं और गंभीर रूप से बीमार मरीजों को खाट पर उठाकर मुख्य सड़क तक लाना पड़ता है, जहां से एंबुलेंस उन्हें अस्पताल ले जाती है।”
स्वास्थ्य सेवाओं का अभाव
बस्ती में न तो आंगनबाड़ी केंद्र है और न ही प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाएं। बुजुर्ग महिला पान बाई कहती हैं कि उनकी बीमार सास को इलाज के लिए खाट पर ले जाना पड़ता है। मच्छरों के प्रकोप से बच्चे बीमार हो रहे हैं, लेकिन चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं।
शिक्षा का संकट
बस्ती में कोई स्कूल नहीं है, जिसके कारण अधिकांश बच्चे शिक्षा से वंचित हैं। 17 वर्षीय युवक शिवा नोना कहते हैं, “यहां स्कूल न होने के कारण मैं पढ़ नहीं पाया। अब मैं बेरोजगार हूं और परिवार की मदद नहीं कर सकता।”
बस्ती में रहने वाले तेजा कहते हैं, “मेरे बच्चों को पढ़ने का मौका नहीं मिल रहा है, क्योंकि आसपास कोई स्कूल नहीं है। बच्चों का भविष्य अंधकार में है।”
राशन और आवास योजनाओं का क्रियान्वयन
सरकारी योजनाओं का लाभ बस्ती तक नहीं पहुंचा है। सुदामा कहते हैं, “लाडली बहना और उज्ज्वला योजना जैसी सुविधाओं का लाभ हमें नहीं मिला।” कुछ लोगों को पीएम आवास योजना के तहत आवास मिला, लेकिन कई घर अधूरे रह गए।
चंदा बाई कहती हैं, “हमारा पीएम आवास अधूरा है। योजना की किस्त महीनों से नहीं आई है। नेताओं से गुहार लगाने के बाद भी कोई मदद नहीं मिली।”
रोजगार का अभाव: आत्मनिर्भरता का सपना अधूरा
रोजगार के अभाव में लोग दिहाड़ी मजदूरी पर निर्भर हैं। रामजी आदिवासी कहते हैं, “हमें सरकार से कुछ नहीं चाहिए। बस हमें इतना रोजगार दे दो कि हम सम्मान से जीवन जी सकें। रोजगार ही हमारी आत्मनिर्भरता का आधार है।”
सामाजिक और राजनीतिक उपेक्षा
बस्ती के लोगों का कहना है कि नेता चुनाव के दौरान वादे तो करते हैं, लेकिन चुनाव खत्म होते ही उनकी सुध लेना बंद कर देते हैं। शांति बाई कहती हैं, “नेता सिर्फ वोट मांगने आते हैं। चुनाव के बाद न तो बिजली, न पानी और न ही सड़क का काम पूरा होता है।”
बुनियादी सुविधाओं के लिए संघर्ष
सागर जिले के तिली गांव की यह बस्ती भारत में सामाजिक और आर्थिक असमानता का स्पष्ट उदाहरण है। यहां के लोग बुनियादी सुविधाओं के लिए संघर्ष कर रहे हैं, जबकि सरकारी योजनाएं और नीतियां उनके जीवन को बदलने में विफल रही हैं।
इन मुद्दों पर प्रशासन और स्थानीय नेताओं को गंभीरता से काम करने की जरूरत है। सड़क, पानी, शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार जैसी बुनियादी सुविधाएं मुहैया कराना सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए। यह न केवल इस बस्ती के लिए, बल्कि भारत के समग्र विकास के लिए भी जरूरी है।