“दलित हूं, इसलिए बार-बार हुआ ट्रांसफर”: जम्मू-कश्मीर के आईएएस अधिकारी के भेदभाव के आरोप के बाद की स्थिति पर डालें एक नज़र

Jammu kashmir, Jammu kashmir Ias Caste Discrimination
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Jammu and Kashmir: केंद्र शासित जम्मू-कश्मीर में वरिष्ठ आईएएस अधिकारी अशोक कुमार परमार ने साल 2023 में प्रशासन पर गंभीर आरोप लगाए थे। परमार का कहना था कि उन्हें उनकी जाति के कारण बार-बार उत्पीड़न और भेदभाव का सामना करना पड़ा है। उन्होंने अपनी शिकायत में बताया कि जल शक्ति विभाग में किए गए बड़े स्तर पर भ्रष्टाचार का खुलासा करने के बाद उनके साथ अधिकारियों ने गलत व्यवहार किया और उन्हें धमकियां दी गईं। उनका कहना है कि वे दलित हैं और पिछले एक साल में पांच बार उनका तबादला किया गया। इस मामले में परमार ने राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (NCSC) और केंद्रीय गृह मंत्रालय को पत्र भेजकर अपनी शिकायत दर्ज कराई थी।

अशोक परमार का आरोप

गुजरात के मूल निवासी और 1992 बैच के आईएएस अधिकारी अशोक परमार ने आरोप लगाया कि उनके बार-बार तबादले का कारण उनका दलित होना है। उनका कहना है कि जब उन्होंने जल शक्ति विभाग में बड़े पैमाने पर गड़बड़ी और भ्रष्टाचार को उजागर किया, तब से प्रशासन ने उनके खिलाफ साजिश रचनी शुरू कर दी। परमार के अनुसार, उन्हें दो उच्चस्तरीय बैठकों से बाहर किया गया और अन्य अधिकारियों के सामने अपमानित भी किया गया। इस दौरान उन्हें यह डर भी था कि प्रशासन उन्हें झूठे मामलों में फंसा सकता है।

पाँच बार हुआ तबादला

अशोक परमार के आरोपों के अनुसार, पिछले एक साल में उन्हें पांच बार तबादला किया गया। मार्च 2022 में उन्हें एजीएमयूटी कैडर में वापस भेजा गया था और फिर उन्हें सिंचाई और बाढ़ नियंत्रण विभाग में तैनात किया गया। इसके बाद, 5 मई 2022 को उनका फिर से तबादला कर जल शक्ति विभाग का प्रमुख सचिव बना दिया गया। इस दौरान उन्होंने विभागीय अनियमितताओं और भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाई। परमार का कहना है कि उनके इन प्रयासों के बाद ही उनका तबादला किया गया और उन्हें बार-बार प्रशासन द्वारा प्रताड़ित किया गया।

पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती और उमर अब्दुल्ला की प्रतिक्रिया

इस मामले में जम्मू-कश्मीर की राजनीति से भी प्रतिक्रियाएं आई थी। पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने ट्वीट करते हुए कहा कि जम्मू-कश्मीर में भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने का अब सही समय है। उन्होंने इसे भ्रष्टाचार के खिलाफ संघर्ष का हिस्सा बताया। वहीं, पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने भी इस मामले में निष्पक्ष जांच की मांग की है और कहा है कि अगर इन आरोपों में सच्चाई है तो प्रशासन के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए।

सोशल मीडिया पोस्ट्स को लेकर केंद्रीय गृह मंत्रालय की कार्रवाई – लेकिन इस बीच साल 2024 में एक विवाद खड़ा हो गया। जिसमें अशोक परमार पर एक गंभीर आरोप लगा है। उनके सोशल मीडिया पर की गई कुछ पोस्ट्स को लेकर केंद्रीय गृह मंत्रालय ने कार्रवाई शुरू की है। इन पोस्ट्स में परमार ने सरकारी नीतियों और कार्यों पर सवाल उठाए थे, जिनमें बेरोजगारी, सरकारी योजनाओं की नाकामी और प्रशासनिक भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों को उठाया गया था। गृह मंत्रालय ने इन पोस्ट्स को भारतीय प्रशासनिक सेवा के आचरण नियमों का उल्लंघन माना और परमार के खिलाफ कार्रवाई की प्रक्रिया शुरू कर दी है।

गृह मंत्रालय की जांच और परमार का बचाव

गृह मंत्रालय ने परमार के खिलाफ नियम 7 और 8 का उल्लंघन माना, जिसमें उन्होंने सरकारी नीतियों के खिलाफ सामग्री साझा की। परमार ने अपने बचाव में कहा कि उन्होंने जो भी पोस्ट्स शेयर किए, वे जनता के मुद्दों को उजागर करने के लिए थे और उनका उद्देश्य किसी भी सरकारी नीति की आलोचना करना नहीं था। उन्होंने यह भी कहा कि व्हाट्सएप ग्रुप में किए गए पोस्ट्स को आधिकारिक नहीं माना जा सकता, क्योंकि वह ग्रुप सरकारी नहीं था।

भ्रष्टाचार और सरकारी कार्यों में हस्तक्षेप के आरोप – परमार पर यह आरोप भी लगाया गया कि उन्होंने विभागीय कार्यों में हस्तक्षेप किया और उन्हें जिन विभागों का अधिकार नहीं था, उनमें हस्तक्षेप किया। 8 अप्रैल 2023 को पूंछ जिले के दौरे के दौरान उन्होंने कई आदेश जारी किए थे, जो उनके विभाग के अधिकार क्षेत्र से बाहर थे। इनमें सरकारी योजनाओं के लिए फंड की जांच और जल आपूर्ति बहाल करने के लिए इंजीनियरों को निर्देश देना शामिल था।

सीबीआई जांच और आने वाला रास्ता

अशोक परमार ने आरोप लगाया था कि जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने एक बड़े कॉन्ट्रैक्ट को बदलने के लिए एक निजी बीमा कंपनी को लाभ पहुंचाया। इस मामले की जांच केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) द्वारा की जा रही है, जो यह जांच रही है कि प्रशासन ने किस प्रकार से वित्तीय अनियमितताओं को अंजाम दिया और क्या भ्रष्टाचार की कोई साजिश रची गई थी।

अशोक परमार का यह मामला प्रशासनिक भ्रष्टाचार और भेदभाव की ओर इशारा करता है। इस मामले में उनकी लड़ाई न केवल उनके व्यक्तिगत संघर्ष की है, बल्कि यह एक बड़ा सवाल उठाता है कि क्या सरकारी अधिकारी जातिगत भेदभाव और भ्रष्टाचार का शिकार हो सकते हैं। आने वाले दिनों में इस मामले की जांच और सरकारी अधिकारियों के खिलाफ उठाए गए कदमों के परिणाम सामने आ सकते हैं। इस मुद्दे का राजनीतिक और प्रशासनिक असर राज्य की नीतियों और सुधारों को प्रभावित कर सकता है।

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