नहीं थम रहे दलितों पर हमले! भदोही में दलित महिला का मड़हा फूंका, धमकाने का आरोप

Bhadohi Dalit Mahila News
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Bhadohi Dalit Mahila News: भदोही जिले में हाल ही में एक दलित महिला का मड़हा (झोपड़ी) जलाने का मामला सामने आया है। आरोप है कि कुछ मनबढ़ों ने महिला के मड़हे में आग लगा दी और उसे धमकाया। इस घटना के बाद इलाके में तनाव बढ़ गया है, और स्थानीय पुलिस मामले की जांच कर रही है।

क्या हैं पूरा मामला

दलितों के खिलाफ अपराधों के मामले बढ़ते ही जा रहे हैं. महिलाओं के ख़िलाफ़ उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक संख्या में हिंसा होती है.और इसके साथ ही लड़कियों के ख़िलाफ़ होने वाले यौन हिंसा के मामलों में भी यह प्रदेश सबसे आगे है. वही अब हाल ही में एक उत्तर-प्रदेश के भदोही जिले के सुरियावा के कैडा गाँव में मनबढ़ यूवको ने दलित महिला का मड़हा फूंका दिया हैं.  दलित महिला का आरोप है कि उसके साथ गाली-गलौज की गई और उसे डराने-धमकाने की कोशिश की गई। इस घटना ने समाज में जातिवाद के आधार पर हो रहे भेदभाव और हिंसा की गंभीरता को उजागर किया है। महिला का कहना है कि इस हमले का मुख्य कारण उसकी जाति है और उसे डराया-धमकाया गया हैं।

वही इस मामले को लेकर स्थानीय पुलिस ने आरोपी के खिलाफ कार्रवाई करने का आश्वासन दिया है, और क्षेत्रीय प्रशासन ने पीड़िता को सुरक्षा प्रदान करने का वादा किया है। इस घटना से क्षेत्र में दलित समुदाय के लोगों में आक्रोश है, और वे न्याय की मांग कर रहे हैं।

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समाज में आज भी जातिवाद क्यों हैं – Bhadohi Dalit Mahila News

समाज में आज भी जातिवाद की मौजूदगी कई कारणों से है, जिनमें ऐतिहासिक, सामाजिक, और सांस्कृतिक कारण शामिल हैं। जातिवाद भारतीय समाज में पुराने समय से मौजूद है। यह व्यवस्था वर्ण व्यवस्था के रूप में वेदों और धार्मिक ग्रंथों में मिलती है, जिससे समाज में लोगों को उनकी जाति के आधार पर विभाजित किया गया था। यह व्यवस्था धीरे-धीरे एक मजबूत सामाजिक ढांचा बन गई, जिसमें लोग जन्म के आधार पर अपनी जाति से जुड़ गए थे। वही जातिवाद भारतीय समाज की सामाजिक संरचनाओं और रीति-रिवाजों में गहरे समाया हुआ है। गांवों और छोटे शहरों में लोग अपनी जाति के आधार पर विवाह, रोजगार, और अन्य सामाजिक कार्यों का पालन करते हैं। इन सामाजिक परंपराओं के कारण जातिवाद के खिलाफ मानसिकता बदलना कठिन हो जाता है। इसके अलवा भारत में शिक्षा की कमी और जागरूकता का अभाव जातिवाद को बढ़ावा देने में सहायक है। कई ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों में जाति आधारित भेदभाव के खिलाफ जागरूक नहीं है, जिससे जातिवाद की प्रथा जीवित रहती है।

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