शिक्षा में एससी-एसटी आरक्षण के लाभ
शिक्षा के क्षेत्र में एससी-एसटी (आदिवासी और अनुसूचित जाति) के लिए आरक्षण भारतीय संविधान में उल्लिखित है, जिसका उद्देश्य इन समुदायों के छात्रों को समान अवसर प्रदान करना और उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति को सुधारना है। इस आरक्षण का प्रभाव विभिन्न शैक्षिक संस्थानों, विश्वविद्यालयों, और सरकारी स्कूलों पर देखा जाता है। वही लोकसभा में 103वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम, 2019 के पारित होने के बाद अब भारत में, सभी सरकारी नौकरियों और उच्च शिक्षण संस्थानों में 10% सीटें सामान्य श्रेणी के आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्लूएस) के लिए आरक्षित किया जाएगा। जबकि, कुछ लोगों का मानना है कि यह एक बेहतर कदम है और इससे उच्च शिक्षा और सरकारी नौकरी के अवसरों तक पहुंच बेहतर होगी, अन्य लोगों को लगता है कि यह केवल एक राजनीतिक कदम है।
1.गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुंच – आरक्षण से अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के छात्रों को शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश पाने और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त करने में मदद मिलती है। वही एससी-एसटी वर्ग के छात्रों को उच्च शिक्षा में प्रवेश प्राप्त करने के लिए अतिरिक्त अवसर मिलते हैं, जिससे वे समाज की मुख्यधारा में शामिल हो सकते हैं और उनका सामाजिक और आर्थिक उत्थान होता है।
2. आरक्षण का प्रतिशत – आरक्षण के कारण एससी-एसटी वर्ग के छात्रों को विभिन्न सरकारी संस्थानों और विश्वविद्यालयों में प्रवेश मिलने की संभावना बढ़ जाती है, जिससे वे अपनी क्षमताओं को पूरी तरह से उजागर कर सकते हैं। वही भारतीय संविधान के तहत, एससी (अनुसूचित जाति) के लिए 15% और एसटी (अनुसूचित जनजाति) के लिए 7.5% आरक्षण निर्धारित किया गया है। इसके अलवा यह प्रतिशत सरकारी कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में प्रवेश और सरकारी नौकरियों में लागू होता है।
5. समाज में बदलाव – आरक्षण से एससी और एसटी वर्ग के छात्रों को उच्च शिक्षा प्राप्त करने के अवसर मिलते हैं, जिससे वे न केवल अपनी सामाजिक और आर्थिक स्थिति सुधार सकते हैं, बल्कि समाज में परिवर्तन ला सकते हैं। यह नीति सामाजिक न्याय को सुनिश्चित करती है और उत्पीड़न और भेदभाव को कम करने में मदद करती है। इसके अलवा आरक्षण से अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति समुदायों में अपनेपन की भावना पैदा करने में मदद मिल सकती है।