Trivendra Singh Rawat’s statement: बीते रविवार उत्तरप्रदेश के मुजफ्फरनगर एक चौकाने वाली खबर सामने है जहाँ पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के एक कथित बयान को लेकर दलित समुदाय में गुस्सा है। इस बयान को लेकर कई जगहों पर विरोध प्रदर्शन हुए हैं। त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कथित तौर पर एक आईएएस अधिकारी के खिलाफ अभद्र टिप्पणी की, जिससे दलित समुदाय नाराज है। दलित संगठनों का आरोप है कि रावत की टिप्पणी दलित विरोधी मानसिकता को दर्शाती है। तो चलिए आपको इस लेख में पूरे मामले के बारे में बताते है।
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जानें क्या है पूरा मामला?
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के एक दलित प्रशासनिक अधिकारी पर दिए गए बयान ने भीम आर्मी को काफी आहत किया है। संगठन का कहना है कि यह बयान दलित समुदाय की गरिमा को नुकसान पहुँचाता है। इस सिलसिले में, कार्यकर्ताओं ने अपने आक्रोश को प्रकट करने के लिए पुतला फूँकने का सहारा लिया। विरोध प्रदर्शन के दौरान, भीम आर्मी ने त्रिवेंद्र सिंह रावत के खिलाफ जोरदार नारेबाजी की और उनके बयान की तीव्र आलोचना की।
वही उत्तराखंड के हल्द्वानी और पिथौरागढ़ सहित कई शहरों में दलित संगठनों ने त्रिवेंद्र सिंह रावत के खिलाफ प्रदर्शन किया है। प्रदर्शनकारियों ने रावत से माफी मांगने की मांग की है। भीम आर्मी ने रावत के खिलाफ एससी-एसटी एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज करने की मांग की है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हरीश रावत ने भी त्रिवेंद्र रावत के बयान की निंदा की है। उन्होंने कहा कि सभी पूर्व मुख्यमंत्रियों को अधिकारियों का सम्मान करना चाहिए।
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राजनीतिक प्रतिक्रिया
भीम आर्मी के दर्जनों कार्यकर्ता विरोध प्रदर्शन के लिए बुढ़ाना मोड़ पर एकत्र हुए। अमरकांत मलिक उर्फ चीकू ने कार्यकर्ताओं का नेतृत्व किया और पुतला दहन किया। इस दौरान त्रिवेंद्र सिंह रावत मुर्दाबाद और दलित सम्मान की रक्षा जैसे नारे गूंजते रहे। कार्यकर्ताओं ने कहा कि वे इस तरह की बयानबाजी बर्दाश्त नहीं करेंगे और जरूरत पड़ने पर बड़े स्तर पर विरोध प्रदर्शन करेंगे। इस घटना ने स्थानीय राजनीति को भी गरमा दिया है। भीम आर्मी का यह कदम त्रिवेंद्र सिंह रावत और उनकी पार्टी के लिए चुनौती बन सकता है।
आपको बता दें, वरिष्ठ कांग्रेस नेता हरीश रावत ने एक अन्य ट्वीट में रावत की निंदा की है। उन्होंने कहा कि सभी पूर्व लॉटरी अधिकारियों का सम्मान किया जाना चाहिए। मामला अभी भी चल रहा है और दलित संगठन रावत के खिलाफ कार्रवाई की मांग कर रहे हैं। यह घटना राजनीतिक रूप से भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि पेंटर उत्तराखंड में हुए दंगों का मुद्दा फिर से उठ खड़ा हुआ है।