West Bengal News: आजादी के इतने सालों बाद भी देश में जातिवाद खत्म नहीं हुआ है। इसका जीता जागता उदाहरण पश्चिम बंगाल में देखने को मिला, जहां गांव के 130 दलित परिवार मंदिर में प्रवेश के लिए कड़ा संघर्ष कर रहे थे। इन लोगों को मंदिर की सीढ़ियां चढ़ने का भी अधिकार नहीं है। बुधवार को यह संघर्ष खत्म हुआ, जिसके बाद 130 दलित परिवारों के प्रतिनिधियों ने तीन सदी बाद पश्चिम बंगाल के मंदिर में प्रवेश किया और शिवलिंग पर दूध और जल चढ़ाया। तो चलिए आपको इस लेख में आपको पूरा मामला बताते हैं।
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300 साल पुरानी प्रथा हुई खत्म
जातिगत हिंसा एक पुरानी समस्या है, जो समाज में लंबे समय से मौजूद है। अक्सर हमें देश के अलग-अलग हिस्सों से जातिगत उत्पीड़न की घटनाएं सुनने को मिलती रहती हैं। हाल ही में पश्चिम बंगाल के पूर्वी बर्धमान जिले से भी ऐसा ही मामला सामने आया है। वहां एक गांव के 130 दलित परिवारों को गांव के एकमात्र शिव मंदिर में प्रवेश करने से इसलिए रोक दिया गया क्योंकि वे निचली जाति से ताल्लुक रखते हैं। लेकिन पश्चिम बंगाल के एक ग्रामीण क्षेत्र में लगभग तीन शताब्दियों से चली आ रही जातिवाद की परंपरा बुधवार को समाप्त हो गई।
पूर्वी बर्धमान जिले के गिधेश्वर शिव मंदिर में पहली बार 130 दलित परिवारों के प्रतिनिधियों ने प्रवेश किया। गिधग्राम गांव के दासपारा इलाके से चार महिलाओं और एक पुरुष समेत दास परिवारों के पांच सदस्यों का एक समूह सुबह करीब 10 बजे मंदिर की सीढ़ियां चढ़ गया और शिवलिंग पर दूध चढ़ाया। इस मौके पर मंदिर के आसपास सुरक्षा बल भी तैनात किए गए थे।
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महाशिवरात्रि के दौरान मंदिर परिसर से किया बाहर
बता दें, पिछले महीने महाशिवरात्रि के दौरान कुछ परिवारों को मंदिर परिसर से बाहर निकाल दिया गया था। प्राप्त जानकारी के अनुसार, इन परिवारों को 26 फरवरी को इस घटना का सामना करना पड़ा था। प्रशासन और पुलिस से मदद मांगने के बाद उन्हें आर्थिक बहिष्कार का भी सामना करना पड़ा। ग्रामीणों ने बताया कि कुछ दिन पहले आर्थिक बहिष्कार के तौर पर लागू किया गया दास परिवारों से दूध खरीदने का सिलसिला बुधवार सुबह तक जारी रहा।
उसी दिन इन परिवारों ने प्रशासन और पुलिस का आभार जताया। एक व्यक्ति ने बताया, “पुलिस ने दूध संग्रह केंद्रों को निर्देश दिया है कि वे हमसे दूध लेना शुरू करें। अगर शाम तक यह प्रक्रिया शुरू नहीं होती है, तो हमें अधिकारियों को सूचित करना होगा।”