सब ठाकुरों का तो फिर अपना क्या ? जरूर पढ़िए ओमप्रकाश वाल्मीकि की कविता ठाकुर का कुआं

Om Prakash Valmki
Source: Google

उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में जन्में ओमप्रकाश वाल्मीकि को कौन नहीं जानता…वह दलित साहित्य के प्रख्यात रचनाकारों में  से एक हैं. हिंदी में दलित साहित्य के विकास में ओमप्रकाश वाल्मीकि की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है. उनके द्वारा रचित कई कविताएं दलितों की वास्तविक स्थिति को दर्शाती हैं. वाल्मीकि कुछ समय तक महाराष्ट्र में रहे थे. वहाँ वे दलित लेखकों के संपर्क में आए और उनकी प्रेरणा से बाबासाहेब अंबेडकर की रचनाओं का अध्ययन किया. इससे उनकी रचना-दृष्टि में बुनियादी परिवर्तन हुआ. उसके बाद उन्होंने कई ऐसी रचनाएं लिख डाली, जो काल-कालांतर तक पढ़ी और सराही जाएगी.

उनकी इन्हीं रचनाओं में से एक है ठाकुर का कुआं. इसके जरिए उन्होंने समाज की उस भयावह सच्चाई को सामने लाने का प्रयास किया, जिस पर बात करने से भी लोग डरते थे. इस रचना में दलितों की मार्मिक स्थिति को वर्णित किया गया है…उन पर हो रहे अत्याचार और शोषण को दिखाने का प्रयास किया गया है. आज के समय में भी, जब ओमप्रकाश वाल्मीकि की यह रचना कहीं पढ़ी जाती है तो मनुवादियों के पेट में मरोड़े उठने लगती है. इसके खिलाफ बयानबाजी शुरु हो जाती है और तर्क कुतर्क शुरु हो जाते हैं.

आइए उनकी पूरी रचना आपको सुनाते हैं…इसका शीर्षक है

ठाकुर का कुआं

ओमप्रकाश वाल्मीकि लिखते हैं..

चूल्हा मिट्टी का

मिट्टी तालाब की

तालाब ठाकुर का…

 

भूख रोटी की

रोटी बाजरे की

बाजरा खेत का

खेत ठाकुर का…

 

बैल ठाकुर का

हल ठाकुर का

हल की मूठ पर हथेली अपनी

फ़सल ठाकुर की…

 

कुआँ ठाकुर का

पानी ठाकुर का

खेत-खलिहान ठाकुर के

गली-मुहल्ले ठाकुर के

फिर अपना क्या?

गाँव?

शहर?

देश?

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *